प्राकृत भाषा और साहित्य पर 16 वीं व्याख्यानमाला का आयोजन

जीवन के रहस्यों को उद्घाटित करता है ‘गाथासप्तशती’ ग्रंथ- डॉ. राजश्री राजन

लाडनूँ, 1 नवम्बर 2022। पूना विश्वविद्यालय पूना महाराष्ट्र की संस्कृत-प्रकृत विभाग की सेवानिवृत आचार्या डा. राजश्री राजन मोहाडीकर ने कहा है कि प्राकृत साहित्य भारतीय साहित्य परम्परा की अनमोल निधि है। इस साहित्य में जीवन के अनेक आयाम निबद्ध होने से यह साहित्य जीवन जीने की कला सिखाता है। प्राकृत साहित्य का अनमोल रत्न ‘गाथासप्तशती’ हाल कवि द्वारा विरचित 700 गाथाओं का विशिष्ट संग्रह है। इस ग्रंथ की प्रत्येक गाथा जीवन के रहस्यों का उद्घाटन करती है, साथ ही जीवनोपयोगी शिक्षाएं देती हैं। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित ‘भारत का गौरवः प्राकृत भाषा एवं साहित्य’ मासिक व्याख्यानमाला के 16वें व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में ‘प्राकृत साहित्य में गाथासप्तशती का महत्व’ विषय पर बोल रही थी। उन्होंने गाथासप्तशती के वैशिष्ट्य को प्राकृत साहित्य के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करते हुए अनेक उदाहरणों के माध्यम से जीवन केे अनुक आयामों को प्रस्तुत किया। डॉ. राजश्री राजन ने गाथासप्तशती की तुलना गीता से की।

गुरूकुल परम्परा से पढाया जाए

व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के विभगााध्यक्ष प्रो. दामोदर शास्त्री ने कहा कि गाथासप्तशती ग्रंथ प्राकृत साहित्य ही नहीं साहित्य की प्रत्येक परम्परा में समादृत है। ऐसे ग्रंथों को साधारण रीति से नहीं पढा या पढाया जाकर गुरूकल परम्परा से पढाया जाए तब ही सार्थक होगा। प्रो. शास्त्री ने इस ग्रंथ को जीवन की डायरी बताया और कहा कि इसमें प्रत्येक पक्ष समाहित है। कार्यक्रम का प्रारमभ मुमुक्षु बहिनों के मंगलाचरण से किया गया। प्रारम्भ में स्वागत वक्तव्य डॉ. समणी संगीतप्रज्ञा ने प्रस्तुत किया। अंत में डॉ. सव्यसाची षड़ंगी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। व्याख्यान में देशभर के 38 प्रतिभागियों की सहभािगता रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज ने किया।

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