15वां दीक्षांत समारोह अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में गुजरात के सूरत में आयोजित
भारत सरकार जैविभा विश्वविद्यालय को प्राकृत भाषा का केन्द्र बनाएगी- धर्मेन्द्र प्रधान केन्द्रीय शिक्षा मंत्री
जैविभा विश्वविद्यालय के 15वें दीक्षांत समारोह में न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी को मानद डी.लिट. उपाधि दी गई तथा 21 को पी.एचडी. व 10 को गोल्ड मैडल सहित कुल 1917 विद्यार्थियों को डिग्रियां प्रदत्त
लाडनूँ, 11 नवम्बर 2024। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का 15वां दीक्षांत समारोह सोमवार को अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में गुजरात के सूरत में भगवान महावीर विश्वविद्यालय केम्पस वेसू में आचार्य महाश्रमण चातुर्मास प्रवास स्थल पर आयोजित किया गया। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह में मुख्य अतिथि भारत सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान थे। दीक्षांत समारोह में 1895 स्नातक एवं स्नातकोत्तर उपाधियां, 10 स्वर्ण पदक, 21 पीएचडी एवं 1 मानद डी.तिट. उपाधि प्रदान की गई। विश्वविद्यालय क समस्त विभागों के विभागाध्यक्षों ने अपने-अपने विद्यार्थियों को उपाधियों के लिए आमंत्रित किया तथा कुलपति प्रो. दूगड़ एवं मुख्य अतिथि केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान द्वारा सभी को उपाधियां प्रदान करवाई गई। जस्टिस दिनेश महेश्वरी को समारोह में डी.लिट. की मानद उपाधि प्रदान की गई।
यह देश का पहला चलंतमान विश्वविद्यालय
भारत सरकार के शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने अपने सम्बोधन में कहा कि पढाई केवल किताबों तक सीमित नहीं होती, बल्कि जिस माहौल व परिवेश में पढाई की जाती है, वह अधिक महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने केवल डिग्री को उपलब्धि मानने के बजाय कार्य दक्षता और मानसिक दक्षता को भी जरूरी बताया और कहा कि यह जीवन मूल्यों से भी संभव बताया। उन्होंने बताया कि अब तक भारतीय शिक्षा पद्धति पाश्चात्य से प्रभावित रही हे, अब नई शिक्षा पद्धति से इसे भारतीय संस्कृति से जोड़ा गया है। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय की सराहना करते हुए कहा कि यह ज्ञान व चरित्र का निर्माण करने वाला हैै। उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि उन्हें 1100 विश्वविद्यालयों को नजदीक से देखने का अवसर मिला है। इनमें यह देश का पहला चलंतमान विश्वविद्यालय है। इसका दीक्षांत समारोह आचार्यश्री के चातुर्मास की अंतिम समयावधि के दौरान उनके सान्निध्य में ही होता है। केन्द्रीय शिक्षामंत्री ने कहा कि प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा की मान्यता दी जा चुकी है और अब यह मेरा दायित्व है कि जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय को भारत सरकार की ओर से प्राकृत भाषा को शोध केन्द्र बनाया जाए। उन्होंने जैनिज्म के मूल में और कण-कण में इशर््वरत्व, देवत्व और जीवन बताया और कहा कि इन मूल्यों का महत्व हैं। भारत 2047 तक विकसित होने का मन बना चुका है और आप सभी उसका आधार हो। हमें दुनियां की कोई ताकत भौतिक विकास में नहीं रोक सकती है। मनुष्य को उनकी चेतना ही चलाएगी। अच्छे व्यक्तित्व से ही संतुलन बन पाएगा।
शराब और नशे से दूर रहने का दिलाया संकल्प
विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने अपने अनुशासन के प्रेरणा प्राथेय में ज्ञान के साथ संयम की चेतना आने को भी जरूरी बताया तथा कहा कि ज्ञानप्राप्ति का एक लाभ यह भी होना होता है कि आदमी के मन की एकाग्रता बढे। मन की चंचलता से आदमी परेशान हो सकता है, जबकि एकाग्रता से मन की स्थिति अच्छी हो सकती है। व्यक्ति ज्ञान हाने पर ही दूसरों का भी भला कर सकता है, किसी का मार्गदर्शन कर सकता है। उन्होंने समाज और राष्ट्र की विभिन्न समस्याओं का मूल कारण असंयम को बताते हुए कहा कि मन और इंद्रियों का नियंत्रण नहीं होने से समस्याएं पैदा हाती हैं। जैन दर्शन इच्छा परिमाण, अपरिग्रह, भोगोपभोग की बात करता है। जीवन के लिए आवश्यकताओं पूर्ति तक तो ठीक है, लेकिन लालसा से असंयम होता है। विद्यार्थियों के लिए ज्ञान के साथ संयम की प्रवृति भी जरूरी है। नैतिकता, मैत्री, संयम जरूरी है। आचार्य तुलसी के अणुव्रत का प्राणतत्व संयम है। अणुव्रत गीत में भी यही आता है। उन्होंने इस अवसर पर सभी विद्यार्थियों को जिन्दगी में कभी शराब नहीं पीने एवं किसी भी तरह की ड्रग्स को नशे के रूप में नहीं लेने का संकल्प ग्रहण करवाया।
विभिन्न क्षेत्रों में देश का पहला विश्वविद्यालय हाने का श्रेय
कार्यक्रम में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोेधन में सभी को अहिंसक, प्रामाणिक व व्यसनमुक्त जीवन जीने सम्बंधी संकल्प सूत्र ग्रहण करवाया तथा विश्वविद्यालय की विशिष्टताओं को चित्रित किया और बताया कि यह विभिन्न क्षेत्रों में पहल करने वाला देश का पहला विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय ने योग एवं जीवन विज्ञान का पहला स्नातकोत्तर कोर्स प्रारम्भ किया। प्राकृत विभाग को स्नातकोत्तर स्तर पर स्वतंत्र रूप से प्रारम्भ करने वाला पहला विश्वविद्यालय रहा। संवैधानिक रूप से अनुशास्ता के पद वाला पहला व एकमात्र विश्वविद्यालय है। अपनी स्थापना से आज तक दूरस्थ शिक्षा का संचालन बिना किसी अवरोध के संचालित रखने वाला एकमात्र विश्वविद्यालय है। गांधी दर्शन के अलावा अहिंसा एवं शांति को स्नातकोत्तर स्तर पर कोर्स प्रारम्भ करने वाला भी पहला विश्वविद्यालय है तथा साधु-साध्वियों को उच्च शिक्षा प्रदान करने वाला भी यह पहला विश्वविद्यालय बना हुआ है।
2500 साधु-साध्वियों को शिक्षित किया और 140 को पीएचडी भी
कुलपति प्रो. दूगड़ ने बताया कि यही देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है, जिसमें बिना किसी साम्प्रदायिक भेदभाव के साधु-साध्वियों को उच्च शिक्षा प्रदान की जा रही है। इस विश्वविद्यालय ने अब तक कुल इन साधु-साध्वियों को 140 पीएचडी और 2500 साधु-साध्वियों को शिक्षित किया है। इन साधु-साध्वियों के लिए उनके स्थान पर ही परीक्षाएं संचालित की जाती हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय के सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुतिकरण के बारे में बताया कि यह विश्वविद्यालय नैक से ‘ए’ एक्रीटेडेट है, यूजीसी की 12बी से मान्यता प्राप्त है। क्वालिटी मैनेजमेंट, ओक्यूपेशनल हेल्थ मैनेजमेंट, एनवायर्नमेंट मैनेजमेंट में आईएसओसे सर्टिफाइड है। अन्य विभिन्न उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि यह गर्व की बात है कि यहां के विद्यार्थियों को योग में 7 विश्व रिकाॅर्ड बनाने सहित भारतीय संसद में युवा विद्यार्थियों की सहभागिता, राष्ट्रीय स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस समारोह में भी सहभागिता रही, प्रशासनिक सेवाओं में विद्यार्थियों के चयन आदि उपलब्धियों को भी बताया। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा केन्द्र में 8500 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। मल्टी मीडिया में 100 वीडियो लेक्चर्स तैयार किए गए हैं। विश्वविद्यालय अपने श्रेष्ठ 10 शोध प्रबंधों को प्रतिवर्ष प्रकाशित करता है। उन्होंने बताया कि भारतीय पुरातन ज्ञान व्यवस्था के सुदृढीकरण में यह संस्थान प्रयत्नशील है।
व्यक्ति की गरिमा और अन्तर्निहित मूल्यों का महत्व
डी. लिट. की मानद उपाधि प्राप्त करने के बाद न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने अपनी उपाधि को अपने गुरूजनों, परिवारजनों एवं जीवन की विधिक यात्रा के दौरान सहभागी रहे समस्त कार्यकर्ताओं आदि का समर्पित करते हुए कहा कि व्यक्ति की गरिमा को भारती संविधान की उद्देश्यिका में सम्मिलित किया गया है, जो काफी महत्वपूर्ण है। व्यक्ति में अन्तर्निहित मूल्य ही उसकी गरिमा होते हैं। उन्होंने जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय को मूल्यों के लिए अनोखा, प्रतिष्ठित और सुदृढ योगदानकर्ता बताया तथा कहा कि यह विश्वविद्यालय राष्ट्र के निर्माण में अनूठा योगदान कर रहा है आर हम सभी उससे लाभान्वित हो रहे हैं। कार्यक्रम के प्रारम्भ में विश्वविद्यालय की छात्राओं ने कुल-प्रार्थना प्रस्तुत की। अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण द्वारा मंगलाचरण एवं कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की अनुमति से समारोह प्रारम्भ किया गया। कार्यक्रम में मुनिश्री कुमार श्रमण, मुनिश्री विश्रुत कुमार, मुख्य मुनिश्री महावीर कुमार का सान्निध्य भी रहा तथा जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लूंकड़ मंचस्थ रहे। साथ ही विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति रहे प्रो. संजीव शर्मा, प्रो. आरएस यादव, प्रो. गोपाल शर्मा, प्रो. धर्मचंद जैन, प्रो. जगतराम भट्टाचार्य आदि कार्यक्रम में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन एवं अंत में आभार ज्ञापन कुलसचिव डाॅ. अजयपाल कौशिक ने किया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम सम्पन्न किया गया।
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