‘जैन आचार सिद्धांतों का उद्भव एवं विकास’ पर व्याख्यान आयोजित
आचार का आधार सूत्र संयम होता है- डाॅ. सुनीता इंदौरिया
लाडनूँ, 29 मार्च 2025। जैन विश्वभारती के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग के तत्वावधान में शनिवार को ‘जैन आचार सिद्धांतों का उद्भव एवं विकास’ विषय पर सहायक आचार्या डा. सुनीता इंदौरिया का व्याख्यान आयोजित किया गया। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के मार्गदर्शन में विभागाध्यक्ष प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी के निर्देशन में आयोजित इस व्याख्ख्यान में मुख्य वक्ता डा. इंदौरिया ने कहा कि ज्ञान के लिए आचार को आवश्यक बताया और कहा कि ज्ञान से आचार के श्रेय या अश्रेय होने का पता चलता है। उसे जानकर ही दुःख के हेतु का निवारण किया जा सकता है। कर्मबंध को तोड़ने के लिए जानना जरूरी होता है। उन्होंने संयममय जीवन पर जोर देते हुए कहा कि आचार का आधार सूत्र संयम ही है। भगवान महावीर ने कर्मबंध को दुःख का मूल कारण बताया है और इसका कारण होता है परिग्रह। परिग्रह का मूल प्रेरक तत्व है- ममत्व ओर आसक्ति। सम्पति वगैरह का संग्रह आसक्ति के कारण ही होता है और वह कर्मबंध से दुःखों में वृद्धि करता है। इससे पूर्व विषय प्रवत्रन करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. त्रिपाठी ने बताया कर्म करना आचरण का विषय है। अच्छे कर्म करके आत्मा मेंजोड़े जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि जैन दर्शन को पुरूषार्थ को महत्व देता है। वर्धमान भी महावीर बने पुरूषार्थ के कारण। अगर कर्म के बाजार में व्यक्ति जीवन भर क्रय-विक्रय करता रहा तो आवागमन से मुक्त नहीं हो सकता। इसके लिए सम्यक् आवार जरूरी है। आचार से पहले ज्ञान जरूरी है। ज्ञान होने से ही सम्यक् आचार संभव है। जैन दर्शन ज्ञान को महत्व देता है और ज्ञान का मूल आचार है। हमारे विचारों में अनेकांत हो, वाणी में स्याद्वाद हो और कर्म में अहिंसा व शांति आवश्यक है। व्याख्यान कार्यक्रम का संचालन ईर्या जैन ने किया। कार्यक्रम में 60 प्रतिभागी उपस्थित रहे।
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