जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में मंगल भावना समारोह आयोजित
जो सदा मंगलमय, आनन्दमय व सत्य की खोज में हो वही संत- मुनिश्री जयकुमार
लाडनूँ, 26 फरवरी 2019। मुनिश्री जयकुमार ने कहा है कि जो सदा मंगलमय रहे, सदा आनन्दमय रहे और सदा सत्य की खोज में रहता है, वही संत होता है। संत के लिये स्थान की प्रतिबद्धता नहीं रहनी चाहिये। जहां आसक्ति हो, वहां अध्यात्म का मार्ग नहीं होता। अनासक्ति से ही व्यक्ति भीतर आत्मा तक पहुंच पाता है। संतों के पास जाने से व्यक्ति का कल्याण हो सकता है। अगर उनके दो वचन भी व्यक्ति धारण कर ले तो कल्याण निश्चित है। महापुरूषों की शक्ति से व्यक्ति आगे बढ सकता है। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) स्थित सेमिनार हाॅल में आयोजित मंगल भावना समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। समारोह उनके यहां वृद्ध साधु सेवा केन्द्र के व्यवस्थापक प्रभार से मुक्त होने व यहां से सरदार शहर के लिये प्रस्थान से पूर्व आयोजित किया गया था। मुनिश्री ने कहा कि जहां आनन्द होता है, वहां अध्यात्म है और जहां अध्यात्म होता है, वहां आनन्द है। बाह्य खोज में व्यक्ति को सविधा मिल सकती है, लेकिन सुख प्राप्त नहीं हो सकता। अध्यात्मिक जगत सदैव आंतरिकता की खोज कर रहा है। हमें औपचारिकताओं से उपर उठ कर सदैव अध्यात्म को धारण करने की शक्ति संत-समागम से ही मिल सकती है। संतों की वाणी वरदान बन सकती है।
राग-द्वेष से रहित होती है साधना
समारोह में लाडनूँ पधारे व सेवा केन्द्र के नये व्यवस्थापक मुनिश्री जम्बूकुमार स्वामी के स्वागत भी किया गया। सेवा केन्द्र के नव-व्यवस्थापक मुनिश्री जम्बू कुमार ने कहा कि जैन दर्शन में साधना राग-द्वेष से रहित होती है। साधना का प्रथम तत्व वैराग्य है। उन्होंने कहा कि अन्तर्मुखी सदैव खिलता है, जबकि सूर्यमुखी पुष्प दिन में खिलता है और रात में मुरझा जाता है तथा चन्द्रमुखी पुष्प रात में खिलता है और दिन में मुरझा जाता है। परन्तु अन्र्तमुखी सदैव खिलता रहता है। संतता में सुख-दुःख, अनुकूलता-प्रतिकूलता सब निर्भाव होती है। आनन्द हमारे भीतर है। ज्ञाता व दृष्टा का भाव बनने पर आनन्द स्वतः ही प्राप्त हो जाता है। कार्यक्रम में संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में मुनिश्री जम्बू कुमार का स्वागत किया एवं मुनिश्री जयकुमार के प्रति आभार ज्ञापित करते हुये उनके लाडनूं पुरागमन के लिये निवेदन किया। प्रो. दूगड़ ने कहा कि जिस संस्थान में संत का आवागमन ज्यादा होता है, उसका उतना ही ज्यादा विकास होता है। उन्होंने मुनि जयकुमार की तप साधना की प्रशंसा करते हुये कहा कि उनके पास जैन धर्मावलम्बियों के अलावा भी बहुत सारे महत्वपूर्ण लोगों का आना-जाना रहता था, जिससे विश्वविद्यालय के बारे में लोगों को जानकारी मिली। उन्होंने अधूरे रहे महाप्रज्ञ स्मृति ग्रंथ के पूर्ण करने के लिये एवं अन्य कार्यों के लिये उनसे पुनः लाडनूँ पधारने का निवेदन किया।
आसक्ति को तोड़ने के लिये होती है साधना
प्रो. दामोदर शास्त्री ने कहा कि एक जगह रहने से संतों में उस जगह के प्रति आसक्ति हो जाती है और जैन पद्धति में आसक्ति को तोड़ने की साधना की जाती है। अन्य क्षेत्र के लोगों को भी उनके प्रवास का लाभ मिले इसलिये संतों का आवागमन सभी क्षेत्रों के लिये निर्धारित किया जाता है। जैन विश्व भारती के सहमंत्री जीवनमल मालू ने पीपीटी के माध्यम से मुनिश्री जयकुमार के प्रवास काल के कार्यक्रमों को प्रदर्शित किया एवं मंगल भावनायें व्यक्त की। विमल विद्या विहार सीनियर सैकेंडरी स्कूल की प्राचार्या विनीता धर ने अपनी भावनायें व्यक्त की। प्रारमभ में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने सभी संतों का परिचय प्रस्तुत किया। अंत में विजयश्री शर्मा ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम मेें मुनिश्री मोहित कुमार, मुनिश्री धवल कुमार, कुलसचिव रमेश कुमार मेहता, प्रो. अनिल धर, प्रो. रेखा तिवाड़ी, प्रो. बीएल जैन, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान, डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच, डाॅ. जसबीर सिंह, आरके जैन आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया। मुनि जम्बू कुमार ने कार्यक्रम से पूर्व जैविभा विश्वविद्यालय का सहवर्ती संतों एवं कुलपति के साथ अवलोकन किया और जानकारी प्राप्त की।
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