जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी वर्ष में पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम का आयोजन
जैन गीता के रूप में प्रसिद्ध कालजयी रचना है सम्बोधि- प्रो. त्रिपाठी
लाडनूँ, 25 सितम्बर 2019। आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में महाप्रज्ञ रचित ग्रंथ ‘‘सम्बोधि’’ पर समीक्षा प्रस्तुत की गई। प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने इसके बारे में बोलते हुये बताया कि सम्बोधित एक महत्वपूर्ण एवं कालजयी रचना है, जिसका सृजन आचार्य महाप्रज्ञ ने सन् 1953 में शुरू किया और 1960 में इसे पूर्ण किया था। सम्बोधि को जैन गीता के रूप में स्थान प्राप्त है। जिस प्रकार महाभारत में युद्ध की कुरूक्षेत्र के समरांगण में अपने परिजनों को देखकर अर्जुन ने कर्मक्षेत्र से हटते हुये गांडीव को जमीन पर धर दिया था, तब कृष्ण ने गीता का उपदेश अर्जुन को प्रदान किया था। उसी प्रकार सम्बोधि में युद्ध के स्थान पर साधना का मैदान है और अर्जुन व कृष्ण के स्थान पर मेघमुनि और महावीर हैं। इसमें राजा श्रेणिक के पुत्र मेघ कुमार के विरक्त भाव आने और मुनि रूप में नवदीक्षित होने के बाद पीड़ाओं से गुजर कर अपने कर्तव्यपथ से हटने की कामना की तो महावीर ने जातिस्मृति द्वारा उन्हें पूर्वजन्म की स्मृति करवाई और कर्मों की सहनशीलता के बारे में बताया। सम्बोधि में महावीर के समक्ष मेघमुनि अनेक जिज्ञासाओं की प्रस्तुति करके उनकी शांति और समाधान भगवान महावीर से प्राप्त करता है। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि नचिकेता का वर्णन हमें कठोपनिषद, गीता और सम्बोधि तीनों में मिलता है, जिनमें शरीर की नश्वरता, आत्मा की अमरता और आत्मा का बोध बताया गया है। सम्बोधि का अर्थ ही सम्यक रूप से बोध करना है। इसमें महावीर बताते हैं कि धर्म के मार्ग से सांसारिक दुःख मिल सकते हैं, लेकिन आत्मा का सुख प्राप्त होता है। भौतिक वस्तुओं के आधार पर सुख की तुलना नहीं करना चाहिये। इसमें कर्मवाद और व्यवस्थावाद को भी अलग-अलग बताया गया है।
सोलह अध्यायों में 703 श्लोकों में है वर्णित
प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि यह ग्रंथ 16 अध्यायों में वर्णित है और विविध कथाओं का उल्लेखकर करके आत्मा और आत्मज्ञान का महत्व प्रतिपादित किया गया है। दिशाबोध देने वाले इस ग्रंथ में कुल 703 संस्कृत श्लोक हैं। मुनि दुलहराज एवं मुनि शुभकरण ने इनका अनुवाद किया है। इस ग्रंथ के आधार पर शोध की जाकर समणी स्थितप्रज्ञा ने पीएचडी भी की है। उन्होंने बताया कि सम्बोधि ग्रंथ में चित की अस्थिरता को दूर करने, सुखबोध की समझ, पुरूषार्थ का बोध, सहज आनन्द की प्राप्ति का बोध, निर्वाण के साधन, आत्मा व अनात्मा का उद्बोधन, वीतरागता, बंध और मोक्षवाद, सम्यक् ज्ञान वाद, सम्यक धर्म, सम्यक चर्या, आत्मदृष्टि, हेय व उपादेय, साधन-साध्यवाद सम्बंध, कर्मबोध, आत्मबोध, परमात्म प्राप्ति से सहजानन्द प्राप्ति करना आदि को समझाया गया है। कार्यक्रम में उपस्थित आचार्यों ने सम्बोधि के सम्बंध में विभिन्न सवाल भी किये, जिनका जवाब समाधान के रूप में प्रो. त्रिपाठी ने प्रस्तुत किये। इस अवसर पर कमल कुमार मोदी, अभिषेक चारण, डाॅ. बलवीर सिंह चारण, डाॅ. प्रगति भटनागर, मांगीलाल, अभिषेक शर्मा, श्वेता खटेड़ आदि उपस्थित थे। संचालन सोमवीर सांगवान ने किया।
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