जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी का आयोजन
शैक्षिक पाठ्यक्रमों में शोध एवं कौशल विशेषज्ञता को बढावा जरूरी- प्रो. यादव
लाडनूँ, 5 सितम्बर 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 - शिक्षा का श्रेष्ठ दस्तावेज’’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी में द्वितीय दिवस पर एकेडमिक अफेयर्स पी.टी. लक्ष्मीचंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ पेर्फोमिंग एंड विसुअल आर्ट्स रोहतक के डीन प्रो. आर.एस. यादव ने अपने सम्बोधन में भारतीय उच्च शिक्षा की चुनौतियों एवं उनके समाधान पर प्रकाष्श डाला। उन्होंने उच्च शिक्षा में बहुअनुशासनात्मक विश्वविद्यालय, पाठ्यचर्या में लोचशीलता, उच्च शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता आदि विषयों पर समालोचनात्मक चिंतन एवं विश्लेषण प्रस्तुत किया। प्रो. यादव ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की उच्च शिक्षा तक पहुंच के तरीकों तथा केन्द्र व राज्यों की सरकारों के बीच समन्वय की आवश्यकता के बारे में बताते हुये विदेशी विश्वविद्यालयों के आगमन पर भी चिंता व्यक्त की। प्रो. यादव ने कहा कि बहुअनुशासनात्मक शिक्षा का दायरा सीमित करने के साथ’-साथ विषय एवं कौशलों में विशेषज्ञता को बढावा दिया जाना आवश्यक है। उच्च शिक्षा संस्थानों में अकादमिक पाठ्यक्रमों एवं शोध के बीच समन्वय होने से ही सम्पूर्ण विकास का आधार बनना संभव होता है।
गरीब, दिव्यांग व महिला वर्ग तक उच्च शिक्षा की पहुंच जरूरी
केन्द्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के प्रो. आशुतोष प्रधान ने सामाजिक समावेशन पर विचार व्यक्त करते हुये कहा कि शिक्षा के माध्यम से समाज के समस्त वर्गों का समुचित विकास समानरूप से होना आवश्यक है। शिक्षा की पहुंच दिव्यांगों, गरीबों तथा महिलाओं तक होनी जरूरी है। शिक्षा नीति की अनुपालना से सामाजिक न्याय, समरसता तथा समग्र विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना संभव होगा। नेशनल विश्वद्यालय जयपुर की स्कूल शिक्षा की रिसर्च एडवाईजर प्रो. रीटा अरोड़ा ने उच्च शिक्षा से जुड़े संदर्भों पर विचार व्यक्त करते हुये बताया कि उच्च शिक्षा के माध्यम से वैश्विकता और सांस्कृतिकता का समन्वय अत्यन्त चुनौतीपूर्ण है। शिक्षा के द्वारा रोजगारपरकता, सांस्कृतिक विकास, सामाजिक उत्थान जैसे लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रशासन, शिक्षक व नीतिगत निर्णयों की परस्परता आवश्यक है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में संयोजक व शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने अतिथियों का परचिय प्रस्तुत किया एं अंत में डाॅ. भाबाग्रही प्रधान ने आभार जताया।
रामकृष्ण ने विवेकानंद और रामदास ने देश को शिवाजी दिये थे- प्रो. त्रिपाठी
जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा है कि शिक्षक राष्ट्र का निर्माता होता है। महाविद्यालय से निकलने वाले छात्र की राष्ट्र का भविष्य बन कर सामने आते हैं। इस प्रकार शिक्षक ही देश के भविष्य का निर्माण करता है। जिस प्रकार एक कुम्भकार आकर्षक व सुडौल घड़ा बनाने के लिये चोट करता है, ठीक वैसे ही छात्र के निर्माण के लिये शिक्षक भी उसको डांटने, आंख दिखाने, उसे अनुशासित रखने और सुधारने की प्रक्रिया को पूरा करता है। इस अवसर पर प्रो. त्रिपाठी ने डाॅ. राधाकृष्ण को याद किया और सबको शुभकामनायें देते हुये कहा कि हमारे देश के इतिहास में गुरू-शिष्य की श्रेष्ठतम जोड़ियों का निर्माण होता रहा है। रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानन्द जैसा शिष्य देश को दिया। कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य का निर्माण किया। गुरू रामदास की शिक्षा से छत्रपति शिवाजी ने मुगलों के छक्के छुड़ाये। गौड़पाद ने गुरू बनकर जगद्गुरू शंकराचार्य का निर्माण किया। आचार्य तुलसी ने आचार्य महाप्रज्ञ को तैयार किया था। उन्होंने इस अवसर पर अरस्तू और सिकन्दर के दृष्टान्त भी प्रस्तुत किये। ऑनलाइन आयोजित किये गये इस कार्यक्रम के प्रारम्भ में डाॅ. बलवीर सिंह चारण ने शिक्षक दिवस की भूमिका प्रस्तुत की। छात्राओं ममता एवं संगीता ठोलिया ने भी शिक्षक दिवस पर अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में कमल कुमार मोदी, सोमवीर सांगवान, शेरसिंह, अभिषेक शर्मा, श्वेता खटेड़, डाॅ. विनोद सियाग आदि उपस्थित रहे।
शिक्षा में नेतृत्वशीलता के गुणों का विकास होना आवश्यक- डाॅ. प्रमोद कुमार
04 सितम्बर। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020- शिक्षा का श्रेष्ठ दस्तावेज’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में प्रारम्भ में केन्द्रीय विश्वविद्यालय हरियाणा के डाॅ. प्रमोद कुमार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की परिचयात्मक पृष्ठभूमि प्रस्तुत की। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार शैक्षिक गुणवता, अध्यापन सम्बंधी शिक्षा से जुड़े संस्थानों की गुणवता को बढाने, शैक्षिक संस्थानों की स्वायतता, समय-समय पर नियत पदोन्नति की नीति तैयार करने, शोध की गुणात्मकता को बढाने, नवाचारों को बढावा देने, आधारभूत स्रोतों का परस्पर साझीकरण, सर्वशिक्षा अभियान के तहत शिक्षा की सार्वभौमिकता को बढाने, पूर्व अध्यापकों एवं सामाजिक कार्यकताओं को शिक्षा से जोड़ने, नेतृत्वशीलता के गुणों का विकास करने आदि बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। उनके पश्चात चैधरी रणवीरसिंह विश्वविद्यालय जींद के प्रो. संदीप बेरवाल ने व्यावसायिक शिक्षा को बढावा देने पर अपने विचारों को केन्द्रित करते हुये रोजगार परक शिक्षा के लिये विविध कौशलों का प्रशिक्षण दिया जाने, विषय चयन के लिये लचीलापन प्रयोग में लाने, लेखन-‘वाचन व पठन की क्षमताओं का विकास करने, शिक्षा के क्षेत्र में डिजीटल संसाधनों के प्रयोग को बढावा देने एवं उनका प्रशिक्षण दिया जाने, मूल्य शिक्षा को बढावा देते हुये शोध व नावाचारों को प्रोत्साहित करने पर विचार व्यक्त किये।
शिक्षक के बूते ही संभव है नई शिक्षा नीति की सफलता
जैन विश्व भारती संस्थान के दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में शिक्षक की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया और उन्होंने कहा कि समाज में शिक्षक के बलबूते पर ही चिकित्सक, अभियंता एवं शिक्षक आदि को तैयार किया जाना संभव है। शिक्षक कंकर को शंकर बना सकता है। प्रारम्भ में कार्यक्रम के संयोजक प्रो. बीएल जैन ने कार्यक्रम का उद्देश्य, विषय का परिचय एवं अतिथियों के बारे में बताया। अंत में समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान ने आभार ज्ञापित किया। ई-संगोष्ठी में तकनीकी संचालन का कार्य मोहन सियोल ने किया। कार्यक्रम में प्रो. आशुतोष प्रधान, प्रो. आरएस यादव, प्रो. रीटा अरोड़ा, डाॅ. नन्दि नी गुप्ता, डाॅ. कुसुम लता, डाॅ. नवनीत शर्मा, डाॅ. अनीता जैन, डाॅ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. भाबाग्रही प्रधान, डाॅ. विष्णु कुमार, डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. आभासिंह, डाॅ. गिरधारीलाल शर्मा, डाॅ. ममता सोनी आदि उपस्थित थे।
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