जैन विश्वभारती संस्थान में संकाय संवर्धन कार्यक्रम के अंतर्गत ‘शिक्षा में सोचने, विचारने और खोजने पर बल’ विषय पर व्याख्यान आयोजित

सजीव व प्राणवंत शिक्षा के लिए सोचने, विचारने और खोजने की जरूरत- प्रो. जैन

लाडनूँ, 21 दिसम्बर 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में संकाय संवर्धन कार्यक्रम के अंतर्गत ‘शिक्षा में सोचने, विचारने और खोजने पर बल’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसमें विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने कहा कि शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी को जीवन की कला सिखाने का प्रयास करना चाहिए। व्यक्तित्व निर्माण के साथ व्यक्तित्व के गुणों का विकास करने की आवश्यकता है। किताबें कम तथा शोधपत्र अधिक लिखे जाने चाहिए। शोधपत्र लिखने में समय कम लगता है, जिससे कि हम नई क्रियाओं को विद्यार्थियों को बता सकते हैं। किताब लिखने में एक या दो साल का समय लगता है। तब तक हमारा ज्ञान पुराना हो जाता है और वे किताबें उतनी उपयोगी नहीं रह पाती हैं। इसलिए विद्यार्थी को शिक्षक नए-नए शोध कार्य लिखाने एवं नवीन विषयों समझाने का प्रयास करना चाहिए।

नवीन संसाधनों को तत्काल अपनाने की जरूरत

हम पुरानी बातों को और अतीत के हुए विचारों को ही बताने का अधिक प्रयास करते हैं। वर्तमान में आयी हुई नई चीजों को हम तब बताते हैं, जब वह पुरानी चीज हो जाती है। शिक्षा में समय के साथ बदलाव और नवीन संसाधनों के प्रयोग उसी समय किये जाने चाहिये। उन्हें समयान्तर से अपनाने से उपयोगिता का असर कम हो जाता है। मानसिक विकास के लिए आवश्यक नहीं है कि बंद पुस्तक की शिक्षा ही उसे दी जाए, उसे खुले विचारों की शिक्षा देने का प्रयास करना चाहिए। जितना हम उसे खुले विचार खुले चिंतन लिखने के बारे में कहेंगे, उतने ही नई चीजों का विकास होगा। शिक्षा को सजीव, सक्रिय व प्राणवंत बनाने का प्रयास शिक्षक को सोचने, विचारने और खोजने से करना चाहिए। कार्यक्रम में शिक्षा संकाय के डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. बी. प्रधान, डॉ विष्णु कुमार, डॉ. अमिता जैन, डॉ. सरोज राय, डॉ. आभा सिंह, डॉ. गिरिराज भोजक, डॉ. गिरधारी लाल, डॉ. ममता सोनी, सुश्री प्रमोद ओला, ललित कुमार, उपस्थित रहे।

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