विश्वविद्यालय ने जैनविद्या व संस्कृति को आगे बढाया

गृहस्थ के जीवन में त्याग की चेतना जरूरी- आचार्यश्री महाश्रमण

लाडनूँ, 17 जनवरी 2022। आचार्यश्री महाश्रमण ने व्यक्ति की विभिन्न सम्पदाओं का वर्णन करते हुए त्याग का महत्व बताया। उन्होंने यहां जैन विश्व भारती स्थित महाश्रमण विहार में अपने नियमित प्रवचन में कहा कि आठ प्रकार की सम्पदाएं बताई गई है। भौतिक और आध्यात्मिक सम्पदाओं में अनेक सम्पदाएं आती हैं। गणि, मुनि, गृहस्थ सबकी अलग-अलग सम्पदाएं होती हैं। आर्थिक सम्पदा, पद की सम्पदा, प्रतिष्ठा की, बल की सम्पदाएं हो सकती हैं। आध्यात्मिक सम्पदा, त्याग, तपस्या, ज्ञान सम्पदाएं हो सकती हैं। उन्होंने जीवन में त्याग के महत्व को बताते हुए कहा कि जीवन में त्याग का बड़ा महत्व है। गृहस्थ के जीवन में त्याग की चेतना होती है तो ईमानदारी की सम्पदा अच्छी रहती है। ईमानदारी का रथ सत्य और अचौर्य के दो पहियों पर टिका है और चलता है। दूसरे का हक मार लेना अच्छी बात नहीं होती। टेक्स की चोरी करना या उसे पूरानहीं चुकाना भी एक प्रकार की चोरी होती है। जिस अर्थ के अंश पर सरकार का अधिकार होता है, उसे रख लेना चोरी है। दूसरे के धन को धूल समान मानने पर चेतना की निर्मलता रह सकती है।

कार्यक्रम में जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि आचार्यश्री महाश्रमण हमेशा गुणवता की तरफ ध्यान करवाते रहे हैं। यह विश्वविद्यालय हमेशा गुणवता को ही सर्वोपरि समझ कर जैनविद्या, जैन संस्कृति को आगे बढाया है। जैन ज्योतिष, जैन वास्तु, जैन चिकित्सा आदि और जैन जीवन शैली को महत्व देकर प्रसारित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को ‘ए’ ग्रेड मिलने से काम करने और उड़ान के लिए एक दिशा मिली है। उन्होंने लाडनूं को अनुशास्ता आचार्य के अनुसार ‘विजडम सिटी’ बनाने की जरूरत पर बल दिया। कार्यक्रम में जैन विश्व भारती के अध्यक्ष मनोज लूणियां, मंत्री प्रमोद बैद, शांतिलाल बरड़िया, आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष शांतिलाल बरमेचा, राकेश कठोतिया, उम्मदसिंह बोकड़िया आदि ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए और आचार्यश्री महाश्रमण से लाडनूं में योगक्षेम वर्ष मनाए जाने के समय की घोषणा करने तथा साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा की अवस्था को देखते हुए लाडनूं में स्थायी प्रवास की व्यवस्था फरमाए जाने का आग्रह किया।

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