प्राच्यविद्याओं में महत्वपूर्ण है संगीत विद्या- प्रो. जयकुमार उपाध्ये

लाडनूँ, 29 मई 2022। ‘भारतीय संस्कृति के स्थायित्व में संगीत विद्या का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। हमारे प्राचीन शास्त्र चाहे वो वेद हो या आगम या अन्य स्वतंत्र शास्त्र हो, इन सबमें संगीत के विषय में यथास्थान वर्णन प्राप्त होता ही है। संगीत ने हमारे जीवन को एक नई परिभाषा दी है।’ ये विचार राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं शोध संस्थान के निदेशक प्रो. जयकुमार उपाध्ये ने जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित ऑनलाइन मासिक व्याख्यानमाला के एकादश व्याख्यान के मुख्य वक्ता के रूप में प्रकट किये। उन्होंने इस अवसर पर प्राकृत साहित्य में संगीत विद्या पर अपने विचार व्यक्त करते हुए भगवान महावीर के समवसरण में स्थित वाद्ययंत्रों, संगीतशालाओं की चर्चा की। साथ ही प्राकृत साहित्य में अनेक स्थानों पर वर्णित संगीत विद्या के विषय में ससंदर्भ बताया। उन्होंने स्थानांगसूत्र, प्राकृतरत्नाकर, दृष्टिवाद आदि में वर्णित संगीत विद्या को व्याख्यायित किया तथा संगीत को तनाव, मानसिक व्याधियों तथा अनेक बीमारियोें के इलाज के संदर्भ में व्याख्यायित किया। अध्यक्षता करते हुए प्रो. दामोदर शास्त्री ने भी भारतीय संगीतशास्त्र की महत्ता को प्रतिपादित किया और कहा कि जीवन संगीतमय बने। प्राचीन संगीत पर आधारित फिल्मी गीतों के उदाहरण के माध्यम से उन्होंने संगीत को स्वस्थ रहने का माध्यम बताया। कार्यक्रम का शुभारम्भ शोध छात्र अच्युत जैन के मंगलाचरण से किया गया। प्रारम्भ में डॉ. समणी संगीत प्रज्ञा ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज ने किया। इस व्याख्यान में देश के विभिन्न क्षेत्रों से लगभग 40-45 प्रतिभागियों ने सहभागिता की।

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