कोलकाता में जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के 10वें दीक्षान्त समारोह का आयोजन

ज्ञान के साथ आचार-संस्कार का निर्माण भी जरूरी - अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी

कोलकाता, 13 अक्टूबर, 2017। जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय के 10वें दीक्षान्त समारोह का भव्य आयोजन कोलकाता के राजरहाट में तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता एवं विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के सान्निध्य में शुक्रवार को किया गया। दीक्षान्त समारोह के मुख्य अतिथि राजस्थान सरकार के देवस्थान मंत्री राजकुमार रिणवां ने राजस्थानी भाषा में बोलते हुये कहा कि जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय केवल किताबी शिक्षा ही नहीं बल्कि विद्यार्थी को उसका जीवन अच्छा बनाने और खुद को बेहतर बनाने की शिक्षा भी प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों की सेवा-भावना देखकर मन गदगद हो जाता है। जैन विश्वभारती में मुनि व साधुगण जो सभी ग्रंथों के सार के रूप में जो परमार्थ की शिक्षा दे रहे हैं, वह सभी का कल्याण करने वाली है। देवस्थान मंत्री ने आचार्य महाश्रमणजी की सन्निधि को अभिभूत करने वाला बताया तथा कहा कि आदमी आचार्यश्री की शरण में आ जाए तो उसे वास्तविक सुख की प्राप्ति हो सकती है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पश्चिम बंगाल सरकार के उच्च शिक्षामंत्री पार्थ चटर्जी ने आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त कहा कि वास्तव में यह विश्वविद्यालय विद्यार्थियों में अच्छे संस्कारों से युक्त शिक्षा प्रदान कर रहा है।

ज्ञान के साथ आचार-संस्कार का निर्माण भी जरूरी - अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी

विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण ने विद्यार्थियों को श्रुत प्राप्ति, एकाग्रचित्त होने, आत्मा को धर्म में स्थापित करने, असंयम को छोड़ संयमित होने, स्वाध्याय में रत रहने, प्रमाद से बचने, आवेश को नियंत्रित करने, सहिष्णुता का विकास करने का संकल्प प्रदान कर उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा के आशीर्वाद से अभिसिंचन प्रदान किया। उन्होंने कहा कि आदमी को विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान की आराधना एक प्रकार की तपस्या है। ज्ञानाराधना करने वाले विद्यार्थी को पूरी निष्ठा के साथ ज्ञान ग्रहण का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के साथ चरित्र, अहिंसा, नैतिकता के प्रति निष्ठा रखने का प्रयास करना चाहिए और नशामुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा को सभी ग्रन्थों का सार बताते हुए कहा कि सभी के साथ मैत्री का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने कहा कि विद्यार्थियों में अहिंसा की चेतना, नैतिकता के भाव सदाचार तथा ज्ञान एवं आचार का अच्छा विकास हो और भ्रष्टाचार को स्थान न मिले व सदाचार बना रहे। विद्यार्थी देश के भविष्य होते हैं। सभी संस्थानों द्वारा विद्या-संस्थान द्वारा कोरा ज्ञान की ही नहीं अच्छे आचार और संस्कार के निर्माण का प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री ने सभी में अच्छी निष्ठा, ज्ञान का विकास और विशिष्ट कार्य करने का प्रयास करते रहने की पावन-प्रेरणा भी प्रदान की।

अहिंसा व नैतिकता का जीवन जीएँ - कुलाधिपति

विश्वविद्यालय की कुलाधिपति माननीया श्रीमती सावित्री जिंदल ने कहा कि पूर्वाचार्यों के प्राप्त आशीर्वाद और वर्तमान आचार्यश्री महाश्रमणजी के अभिसिंचन से यह विश्वविद्यालय मानवता, अहिंसा, नैतिकता के साथ अनुशासनात्मक जीवन जीने की प्रेरणा भी विद्यार्थियों को प्रदान कर रहा है। हमें गर्व है कि जैन विश्वभारती मान्य विश्वविद्यालय सम्पूर्ण जैन समाज को एक विचारधारा की माला से गूंथ रहा है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि लाडनूँ विधायक ठाकुर मनोहर सिंह ने कहा मेरे लिए यह गौरव की बात है कि आज जैन विश्वभारती के कारण लाडनूँ को पूरा विश्व जानने लगा है। जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को आज उपाधि मिली है। यह विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रहा है।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षण विश्वविद्यालय की प्राथमिकता - कुलपति

विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह विश्वविद्यालय देश के दूसरे विश्वविद्यालयों से इस कारण से अलग है क्योंकि इसकी संस्थापना इस युग के महान् आचार्य आचार्यश्री तुलसी ने की। यह संस्थान उनके जैन विद्या के विकास एवं चरित्र-निर्माण के स्वप्न को धरती पर उतारने का सफल मानवीय उपक्रम है।

इस विश्वविद्यालय को जैन विद्या के क्षेत्र में अध्ययन, अध्यापन एवं शोध हेतु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान मिली है, जिसका प्रमाण है आयोजित हो रहे अन्तर्राष्ट्रीय समर स्कूल कार्यक्रम, जहाँ प्राच्य भारतीय भाषाओं का इतनी गहनता से अध्यापन कराया जाता है, जिससे मूल आगमिक ग्रन्थों के पारायण में अभिरुचि अभिवृद्ध होती है। इस विश्वविद्यालय ने देश की लब्धप्रतिष्ठ संस्थाओं, जैसे-भारतीय दार्शनिक परिषद्, भारतीय समाज-विज्ञान परिषद्, भारतीय इतिहास परिषद्, आदि के साथ गुणात्मक शोध को प्रवृत्त करने हेतु विभिन्न शोध-परियोजनाओं को स्फूर्त किया है तथा इसकी शोध-निष्पत्तियों के प्रतिवेदनों की चतुर्दिक सराहना हुई है।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षण विश्वविद्यालय की प्राथमिकता है। स्नातक एवं स्नातकोत्तर शिक्षण को समर्पित अधिकांश कक्षाओं को स्मार्ट क्लास में परिवर्तित कर दिया गया है तथा आधुनिक तकनीक का शिक्षण-प्रशिक्षण में भरपूर उपयोग हो रहा है। इस नवोन्मेषी शिक्षण अभिक्रम के सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षण गुणात्मक शोध के बिना संभव नहीं है। इस दृष्टि से विश्वविद्यालय ने सभी शिक्षकों को वैयक्तिक शोध में सघनता के साथ प्रवृत्त करने हेतु स्टार्टअप अनुदान की एक महत्वाकांक्षी योजना प्रारम्भ की है, जिसके माध्यम से राष्ट्रीय स्तर के मानक शोध-प्रकाशनों की हमारी योजना मूत्र्त रूप ले सकेगी। सूचना-प्रौद्योगिकी की आधारभूत संरचना भी काफी सुदृढ़ है, जिसके माध्यम से हर समय इण्टरनेट की तेज गति शोधार्थियों तथा अध्येताओं को सहायता प्रदान कर रही है। संस्थान ने गुणवत्तापरक शिक्षण की कसौटी के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानकों पर आधारित परीक्षा-प्रणाली एवं परीक्षा-परिणाम प्रणाली को भी अंगीकृत किया है।

लाडनूँ स्थित विश्वविद्यालय परिसर में हरेक सप्ताह पूरे देश के विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जा रहा है। राष्ट्रीय परिसंवाद, सेमिनार, कार्यशाला एवं व्याख्यानमालाओं के माध्यम से बौद्धिक प्रबोधनों को सतत् गति दी जा रही है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विशेषज्ञ दल ने अपने भ्रमण के उपरान्त विश्वविद्यालय के प्रयासों की मुक्त कण्ठ से सराहना की है एवं उनकी अनुशंसा के सकारात्मक निर्णयों ने विश्वविद्यालय को संबलित किया है। आयोग के अतिरिक्त राष्ट्रीय अध्यापक परिषद् के निरीक्षण दलों ने भी शिक्षा क्षेत्र की गतिविधियों की सराहना की है एवं अपनी सकारात्मक टिप्पणियों से हमें शक्ति प्रदान की है।

छात्र-छात्राओं के चतुर्दिक विकास को भी संस्थाने अपने दृष्टि-पथ में सर्वोच्च स्थान दिया है। सिर्फ उनके अकादमिक शिक्षण के प्रति ही संस्थान जागरुक नहीं हैं, प्रत्युत् उनकी शिक्षणेत्तर गतिविधियों के प्रति भी पूरी तरह सचेष्ट हैं। युवा-महोत्सव, पूर्व-छात्र सम्मेलन, सांस्कृतिक-अभिविन्यास कार्यक्रमों का नियमित आयोजन इसके प्रमाण हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अतिरिक्त विश्वविद्यालय ने अपने आन्तरिक स्रोतों से खेल-कूद की सुविधाओं को व्यापक विस्तार दिया है। यह भी उल्लिखित करना समीचीन होगा कि राजस्थान के सुदूरवर्ती गाँवों में भी शिक्षा की अलख जगाने में विश्वविद्यालय संलग्न है तथा अपने दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा समाज के वंचित छात्र-छात्राओं को शिक्षा द्वारा सशक्त बनाने के सामाजिक दायित्व को पूरा करते हुए पूरे देश में सकल प्रवेश अनुपात की अभिवृद्धि के शासकीय संकल्प को पूरा करने के लिए भी सशक्त प्रयत्न कर रहा है।

अहिंसा यात्रा के प्रवक्ता मुनि कुमारश्रमण और जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के प्रो. आनंदप्रकाश प्रकाश त्रिपाठी, कोलकाता चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष कमलकुमार दूगड़ ने भी विचाराभिव्यक्ति दी।

मातृ संस्थान द्वारा विश्वविद्यालय को एक करोड़ का चैक भेंट

दीक्षांत समारोह में नियमित स्नातक के 213, स्नातकोत्तर के 64, पी-एच.डी. के 35, डी.लिट्. के 2, दूरस्थ शिक्षा स्नातक के 1971 व स्नातकोत्तर के 2110 विद्यार्थियों सहित कुल 4427 विद्यार्थियों को उपाधि प्रदान की गईं। इस दौरान कुल 32 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक भी प्रदान किये गए। समस्त उपाधियां व पदक कुलाधिपति माननीय श्रीमती सावित्री जिंदल, कुलपति माननीय प्रो. बच्छराज दूगड़, जैन विश्वभारती के अध्यक्ष रमेशचंद बोहरा, राजस्थान के देवस्थान मंत्री राजकुमार रिणवा व लाडनूं विधायक ठाकुर मनोहर सिंह द्वारा प्रदान किये गए। समारोह के सभी अतिथियों को कुलाधिपति व कुलपति सहित अन्य गणमान्यों द्वारा स्मृति चिन्ह व साहित्य प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस दौरान जैन विश्व भारती के अध्यक्ष रमेशचंद बोहरा द्वारा जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय को एक करोड़ का चेक भी प्रदान किया गया। समारोह का संयोजन कुलसचिव श्री विनोद कुमार कक्कड़ ने किया।

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