कोरोना की दवा 2-डीजी की खोज में लाडनूँ के जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्रोफेसर की अहम भूमिका
कोविड-19 के उपचार की भारतीय दवा के आविष्कार में जैन विश्वभारती संस्थान के प्रोफेसर इमेरिटस की शोध बनी आधार
लाडनूँ। भारत की शीर्ष शोध संस्था डी.आर.डी.ओ. द्वारा कोविड-19 के उपचार के लिए विकसित की गयी दवा के विकास के मूल में जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूँ के प्रोफेसर इमेरिटस प्रो. विनय जैन की शोध आधार बनी है। मार्च 2020 में उनके द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में 2-डी-औक्सी-डी-ग्लूकोज (2-DG), जो एक रेडियो-कीमो मौ, डीफायर दवा के रूप में कैंसर के उपचार में उपयोगी होता है, के कोविड-19 के उपचार हेतु उपयोग किये जाने पर जोर दिया गया था। प्रो.जैन के साथ पातंजलि योग पीठ, सविता इंस्टीटयूट और मेडिकल एण्ड टेक्नीकल साइन्सेज के शोधार्थियों ने लीजेंड रिसेप्टर डोकिंग तकनीक का प्रयोग किया और मौलीक्युलर डाईनैमिक्स विश्लेषण के माध्यम से वायरस रिसेप्टर्स का अध्ययन किया। संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने प्रो. विनय जैन एवं उनके अन्य सहयोगियों को बधाई देते हुए कहा कि कोविड-19 के सीधे उपचार के लिए विकसित की गयी दवा के गर्भ में यह शोध, ऐतिहासिक रूप से वैश्विक महत्त्व रखती है, क्योंकि इसने विश्व को इस महामारी से जूझने के प्रथम उपचार को संस्तुत करने की युगांतरकारी सफलता को हासिल करने का मार्ग प्रशस्त किया है। इस सम्बंध में प्रमुख समासेवी नोरतन रामपुरिया ने जैन विश्वभारती संस्थान को बधाई देते हुए कहा है कि डीआरडीओ द्वारा जारी कोरोना की दवा में जैन विश्व भारती का भी अवदान है। यह अपने आप में सम्पूर्ण तेरापंथ समाज के लिए हर्ष और सम्मान का विषय है। गौरतलब है कि अब तक केवल वैक्सीन को ही कोरोना का बचाव समझख जा रहा था, पर अब डी.आर.डी.ओ. द्वारा यह पाऊडर के रूप में दवा का आविष्कार अति महत्वपूर्ण खोज है। यह दवा शरीर में ऑक्सीजन की अपेक्षा को कम करने में सहायक है तथा इसके आपातकालीन उपयोग को मान्यता मिल चुकी है। इह 2-डीजी नामक दा का निर्माण डीआरडीओ ने डाॅ. रेड्डी लैब के साथ मिल कर किया है। इस दवा की आपूर्ति प्रतिदिन 10 हजार पैकेटों के साद दिल्ली में एम्स, एएफएमएस तथा डी.आर.डी.ओ. के अस्पतालों में शुरू की जा चुकी है। इस दवा को रक्षामन्त्री राजनाथ सिंह व स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन ने गत 17 मई कै जारी किया था।



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