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आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन

भारतीय चिंतन परम्परा की हर धारा में है योग का समावेश- प्रो. त्रिपाठी

लाडनूँ, 19 जुलाई 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा है कि वैदिक व श्रमण परम्परायें भारतीय चिंतन परम्परा की दो अलग-अलग धारायें कही जाती है, लेकिन दोनों ही परम्पराओं में योग को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया गया है। वैदिक परम्परा में वेद, उपनिषद, गीता आदि में योग सम्बंधी उद्देश्यों को प्रस्तुत करते हुये उनकी व्याख्या की गई है तथा योग का व्यवस्थित चिंतन वैदिक परम्परा में प्रस्तुत किया गया है, जिनमें योग का उद्देश्य ही नहीं योग की सार्थकता तक सम्पूर्ण अभिव्यक्ति की गई है। श्रमण परम्परा में जैन व बौद्ध दो दर्शन हैं, इनमें से जैन परम्परा में योग को मोक्ष प्राप्ति का आधार बताया गया है और बौद्ध परम्परा में समाधि योग को व्याख्यायित करते हुये अष्टांग मार्ग एवं बौद्धों के षडांग योग को स्पष्ट किया गया है। वे यहां बुधवार आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में शुरू की गई व्याख्यान-श्रृंखला के शुभारम्भ में भारतीय चिंतन परम्परा में योग का स्वरूप विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने इस अवसर पर शिक्षकों द्वारा इस सम्बंध में प्रस्तुत जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। क्षेत्र के इस एकमात्र महिला महाविद्यालय में शिक्षा के स्तर को उच्चता दिये जाने के लिये शिक्षकों में अनुसंधान प्रवृत्ति एवं गुणवत्ता की वृद्धि के लिये इस व्याख्यान श्रृंखला की शुरूआत की गई है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक 15वें दिन में अलग-अलग विषय पर केन्द्रित व्याख्यान का प्रावधान किया गया है, जिसमें शिक्षक अपने शोधपूर्ण आलेख की प्रस्तुति देगा और उस पर सभी शिक्षक मिल कर चिंतन व चर्चा भी करेंगे। महाविद्यालय में विगत वर्ष भी यह व्याख्यान श्रृंखला सफलता पूर्वक संचालित की गई थी।

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