प्राकृत भाषा और साहित्य के विकास में जैनाचार्यों और मनीषियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा- डाॅ. रविन्द्र कुमार खाण्डवाला

प्राकृत मासिक व्याख्यानमाला के अन्तर्गत आयोजित 39वाँ व्याख्यान

लाडनूँ, 1 अक्टूबर 2024। जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित मासिक व्याख्यानमाला के अन्तर्गत 39वें व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य व्याख्यानकर्ता श्री एच.के. आर्टस काॅलेज, अहमदाबाद (गुजरात) के डाॅ. रविन्द्र कुमार खाण्डवाला ने कहा कि आज हमारे समक्ष जितना भी प्राकृत साहित्य उपलब्ध है, उसमें से अधिकतम साहित्य आचार्य-परम्परा की देन है लेकिन इसमें जैन मनीषियों एवं श्रेष्ठीजनों का भी विशेष योगदान रहा है। प्राचीन काल से लेकर आज तक प्राकृत भाषा और साहित्य पर बहुत कार्य और शोध कार्य हुआ है और उसीसे इस साहित्य की विशाल परम्परा को सबके समक्ष प्रस्तुत किया जा सका। इस कार्य में गुजरात के जैनाचार्यों और मनीषियों का महत्त्वपूर्ण अवदान रहा है। प्राकृत भाषा एवं साहित्य के विकास में जैनाचार्यों और मनीषियों के योगदान को सूक्ष्मता से व्याख्यायित करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में निहित मानवीय मल्यों का जीवन्त रूप जैनागमों व जैनाचार्यों-मनीषियों द्वारा रचित साहित्य में दिखाई देता है। करूणा, दया, अहिंसा, मैत्री जैसे मानवीय मूल्यों के महत्त्वपूर्ण तत्त्वों को समझने के लिए प्राकृत भाषा और साहित्य का अवगाहन करना पडे़गा। डाॅ. खाण्डवाला ने प्रमुख जैनाचार्यों में यशःकीर्ति, नेमिचन्द्र सूरि, जिनेश्वर सूरि, आचार्य हेमचन्द्र, चन्द्रप्रभ महत्तर, आचार्य देवेन्द्र सूरि एवं हरिभद्र सूरि आदि और उनकी प्रमुख कृतियों का उल्लेख करते हुए उनमें वर्णित विषय-वस्तु पर भी प्रकाश डाला। साथ ही पं. बेचरदास, के.आर. चन्द्रा, ए.एन. उपाध्ये, लालभाई दलपतभाई मालवणिया, अमृत भाई पटेल आदि मनीषियों का भी विशेष उल्लेख किया। उन्होंने प्राकृत ग्रन्थ परिषद् नामक संस्था के प्राकृत भाषा और साहित्य में विशेष योगदान का उल्लेख भी किया।

इस अवसर पर प्रो. दामोदर शास्त्री ने कहा कि प्राकृत भाषा और साहित्य के विकास में निश्चित रूप में गुजरात के जैनाचार्यों और मनीषियों का विशेष योगदान रहा है। व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए प्रो. जिनेन्द्र जैन ने डाॅ. खाण्डवाला द्वारा गुजरात के जैनाचार्यों और मनीषियों के प्राकृत भाषा और उनके साहित्यिक योगदान पर डाले गए प्रकाश को दुरूह कार्य बताया। डाॅ. जैन ने कुछ और विद्वानों के नामों का उल्लेख किया और उनके अवदानों को भी बताया। कार्यक्रम का प्रारम्भ प्राकृत विद्यापीठ की छात्रा अदिति के मंगलाचरण से हुआ। स्वागत एवं विषय-प्रवर्तन डाॅ. समणी संगीतप्रज्ञा ने किया। कार्यक्रम के अंत में डाॅं. सब्यसाची सांरगी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संयोजन डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज ने किया। व्याख्यान में देश के विभिन्न क्षेत्रों से 25 प्रतिभागियों ने सहभागिता की।

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