महावीर जयंती पर विशेष कार्यक्रम आयोजित
जिस सोच से समस्यायें पैदा होती हैं, उससे समाधान नहीं निकल सकता- प्रो. दूगड़
लाडनूँ, 28 मार्च 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में महावीर जयंती के उपलक्ष में बुधवार को महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय शोध केन्द्र एवं जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग के संयुक्त तत्वावधान मेें आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि व्यक्ति जब वह अपनी नाकामियों से सीखता है, तभी बड़ा बन सकता है और बुद्धिमता प्राप्त कर सकता है। हम विभिन्न जयंतियों पर महापुरूषों को याद इसलिये करते हैं कि उनके उपदेशों व संदेशों का स्मरण करके जान सकें कि वे बड़े कैसे बने थे, इससे हमें एक मार्ग नजर आता है। उन्होंने भगवान महावीर के अनेकांत, संयम और परस्परता के सिद्धांतों को महत्वपूर्ण बताते हुये कहा कि खुलकर सोचना और प्रतिपक्ष के साथ सोचना अनेकांत है। जिस सोच से समस्याओं का जन्म होता है, उस सोच से समाधान नहीं निकल सकता। इसके लिये खुली सोच जरूरी है। अनेकांत एक क्रांतिकारी विचार था और आज भी उसकी महत्ता है। संयम अपने प्रति और दूसरे सभी जीवों के प्रति होना चाहिये। इनमें विचारों का संयम और वस्तुओं का संयम भी महत्वपूर्ण है। प्रकृति और मानव के विनाश से बचने के लिये संयम को विश्वभर में एकमात्र विकल्प के रूप में स्वीकार किया गया है। हमें अपनी आवश्यकताओं को संयमित व सीमित रखना होगा। हम महावीर के विचारों, उनकी करूणा व अहिंसा से ही बच सकते हैं। ढाई हजार साल पूर्व दास प्रथा से मुक्ति व स्त्रियों की स्वतंत्रता अकल्पनीय थी, लेकिन परस्परता के कारण ही भगवान महावीर ने इस बात को उठाया। उन्होंने विद्यार्थियों से सरलता, विनय व ऋजुता को अपनाने को महत्वपूर्ण बताते हुये कहा कि महावीर को अपने जीवन में जीना है। उनके मूल्यों को अपने जीवन में उतारें।
जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने कहा कि वर्ष में केवल एक दिन भगवान महावीर की जन्म जयंती मना लेना और शेष 364 दिन उन्हें विस्मृत कर देने से जीवन में सुधार संभव नहीं है। हमें जयंती मनाने के साथ उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये और उनके आदर्शों पर चलना चाहिये। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर के जीवन की विशेषताओं पर हमें ध्यान देना चाहिये। वे अप्रमत्तता या सतत जागरूकता के प्रतिमूर्ति थे। जो अपनी आत्मा के प्रति सतत जागरूक रहता है, वह गलत काम नहीं कर सकता। हमें एक क्षण के लिये भी प्रमाद नहीं करना चाहिये। इसी प्रकार सहिष्णुता का गुण है। भगवान महावीर हर कष्ट को समभाव से सहन करते थे। वे कभी पीड़ाओं से विचलित नहीं हुये। वे कष्टों को सहते हुये भी कर्मों की निर्जरा में लगे रहे, तभी आत्मा में वीरत्व पैदा किया। जहां समता होती है, वहां अहंकार नहीं रह सकता। अहंकार साधना में सबसे बड़ा बाधक होता है। व्यक्ति में न तो हीन भावना होनी चाहिये और न ही अहंकार की भावना रहनी चाहिये। अस्तित्व की दृष्टि से सब प्राणी समान हैं और हमें सबके प्रति समान भाव रखना चाहिये।
जीवन के लिये भाग्य नहीं पुरूषार्थ जरूरी
शोध निदेशक प्रो. अनिल धर ने महावीर के अहिंसा, समता, सहिष्णुता, संयम और अनेकांत को जीवन के लिये महत्वपूर्ण मूल्य बताया। दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने महावीर के आज्ञापालन, संयम और सब प्राणियों के प्रति प्रेम व मैत्री भाव व व्यवहार को जीवन में उतारने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि महावीर पुरूषार्थ के प्रदीप्त पुरूष थे और हर व्यक्ति केवल पुरूषार्थ के बल पर ही अपने जीवन की यात्रा को पूरा कर सकता है। भग्य व ईश्वर के भरोसे रहने से जीवन-संघर्ष में सफलता नहीं मिल सकती। कार्यक्रम में विताधिकारी आरके जैन, मुमुक्षु समता, विनय जैन, ज्योति नागपुरिया व सुविधा जैन ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन व अंत में आभार ज्ञापन डाॅ. योगेश जैन ने किया। कार्यक्रम में डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. अशोक भास्कर, सोनिका जैन, प्रो.रेखा तिवाड़ी, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. सतयनारायण भारद्वाज, डाॅ. मनीष भटनागर, प्रगति भटनागर, आभा सिंह, डाॅ. पुष्पा मिश्रा आदि समस्त संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी आदि उपस्थित थे। संस्थान के शिक्षा विभाग में भी महावीर जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें डाॅ. मनीष भटनागर, मुकेश कुमार चैहान, वर्षा स्वामी, संतोष, सरोज व सुविधा जैन ने भगवान महावीर के जीवन व उपदेशों पर प्रकाश डाला।
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