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‘विभिन्न दर्शनों में सदगुण’ पर व्याख्यान आयोजित

सदगुण व्यक्तित्व को विश्वसनीय बनाते हैं- प्रो. त्रिपाठी

लाडनूँ, 22 फरवरी 2022। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के से आचार्य काळू कन्या महाविद्यालय में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगङ के निर्देशन में आयोजित मासिक व्याख्यानमाला श्रृंखला की कङी में ‘विभिन्न दर्शनों में सदगुण’ शीर्षक पर आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्ता प्राचार्य प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने पाश्चात्य एवं भारतीय दर्शन में निहित सदगुणों के महत्व पर प्रकाश डाला और सदगुण में शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि सदगुण व्यक्तित्व के प्रति विश्वास पैदा करता है। उन्होंने इस संदर्भ में युधिष्ठिर व सत्यवादी हरिश्चंद्र के उदाहरण दिए। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि पाश्चात्य दर्शन में प्रथम दार्शनिक थेलीज से लेकर पाइथागोरस तक के सभी सोलह दार्शनिकों के वैचारिक शिखरों को छुआ। इनमें सदगुणों पर सर्वप्रथम चर्चा का श्रेय सुकरात को जाता है। उन्होंने सुकरात द्वारा बताए गए आन्तरिक सौन्दर्य की व्याख्या प्रस्तुत की। साथ ही उन्होंने प्लेटो, अरस्तू, सिज्विक, हीगल बैलेड्स एवं काण्ट के वैचारिक महत्व को भी बताया गया। प्रो. त्रिपाठी ने भारतीय दर्शन में श्रमण परम्परा व वैदिक परम्परा को अभिव्यक्त करते हुए बताया कि श्रमण परम्परा में जैन व बौद्ध दर्शनों को लिया जाता है तथा वैदिक दर्शन परम्परा में न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा एवं वेदान्त के रूप में कुल छह दर्शनों को शुमार किया जाता है। दोनों दर्शनों के मध्य तुलनात्मक विवेचना करते हुए उन्होंने बताया कि जहां पाश्चात्य दर्शन सदगुणों को ही मानव जीवन का साध्य मानता है, वहीं भारतीय दर्शन ने मोक्ष को मानव जीवन का साध्य एवं सदगुणों को मोक्ष प्राप्ति के मार्ग का साधन माना है। व्याख्यान के उपरान्त प्रो. त्रिपाठी ने संकाय सदस्यों की दर्शन सम्बंधी जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। अंत में डॉ. प्रगति भटनागर ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में का संयोजन अभिेषक चारण ने किया तथा डॉ. बलवीर सिंह, अभिषेक शर्मा, प्रगति चौरड़िया, प्रेयस सोनी आदि मौजूद रहे।

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