16 वां दीक्षांत समारोह अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में अहमदाबाद कोबा में आयोजित
विकसित भारत के लिए जरूरी सशक्त, समर्थ व सुसंकृत युवाशक्ति का निर्माण कर रहा है जैविभा विश्वविद्यालय कर रहा है- केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत
लाडनूँ, 27 अक्टूबर 2025। केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा है कि आजादी के अमृतकाल में देश को ‘विकसित भारत’ बनाने के प्रधानमंत्री के संकल्प को पूरा करने के लिए जरूरी है कि हम सशक्त, समर्थ एवं सुसंस्कृत युवाशक्ति का निर्माण करें। इस कार्य को जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय सफलता पूर्वक कर रहा है। वे अहमदाबाद कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती परिसर में आचार्यश्री महाश्रमण प्रवास स्थल पर आयोजित लाडनूँ के जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के 16वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में दीक्षांत भाषण में बोल रहे थे। विश्वविद्यालय के अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में एवं कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की अध्यक्षता में हुए इस समारोह में केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह ने बताया कि केवल तकनीकी रूप से समृद्ध होना अथवा सामरिक ताकत में आगे बढना भी देश को दुनिया में प्रणम्य नहीं बना सकता। इसके लिए संस्कार और संस्कृति के पुनर्जागरण की आवश्यकता है। हमें अपने अधिकारों के प्रति ही नहीं बल्कि अपने कर्तव्यों के प्रति भी सजग होना होगा। उन्होंने दीक्षांत समारोह को संकल्प का उत्सव बताया और कहा कि यह केवल डिग्री लेने का समारोह नहीं है, दीक्षोत्सव में आत्मा को सजग रखने और समाज को आलोकित करने की दीक्षा मिलती है। जो उपाधि अर्जित की है, वह केवल कागज मात्र नहीं है, बल्कि यह एक महान परम्परा की श्रृंखला को समाहित किए हुए है। उन्होंने विद्यार्थियों से जीवन में सफलता अर्जित करने के साथ सरल बने रहने के लिए प्रेरित किया। केन्द्रीय मंत्री शेखावत ने भारत में विद्यमान सहिष्णुता के भाव को महान बताया और कहा कि इसी कारण हमारी संस्कृति विश्व में अब भी कायम है। उन्होंने जैन दर्शन के अनेकांत, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, संयम व प्रेक्षा के विचारों को सबके लिए आदर्श बताते हुए उनको अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने सभी विद्यार्थियों से सत्यव्रत, अहिंसाव्रत और सेवाव्रत की त्रय-प्रतिज्ञाएं भी करवाई।
प्राप्त ज्ञान को सुरक्षित रखें और उसे निरन्तर बढाते रहें
दीक्षांत समारोह में आचार्यश्री महाश्रमण ने सभी विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों को अनुशासन प्रदान करते हुए सबको ‘शिखापदम्’ का पाठ करवाया। उन्होंने ज्ञान और आचार को मुक्ति का उपाय बताया तथा सभी उपाधि-धारकों से कहा कि यहां उपाधि लेना उनके जीवन की उपलब्धि है, लेकिन प्राप्त ज्ञान को सदैव ताजा बनाए रखने एवं नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए भी हमेशा प्रयत्नशील रहना चाहिए। उन्होंने ज्ञान को प्रकाश की उपमा देते हुए साथ मे संयम भी रखने को आवश्यक बताया। आचार्यश्री ने सबसे अनुरोध किया कि वे प्राप्त ज्ञान को सुरक्षित रखें और उसे निरन्तर बढाते रहें, संयम की चेतना रखें, जितनी भी हो सके दूसरों की सेवा भी करते रहें। उन्होंने परहित और परोपकार के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि समाज के लिए जितना संभव हो सकें, काम अवश्य करें। उन्होंने किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचाने के लिए प्रेरित करते हुए जैन विश्वभारती संस्थान के लिए भी अपनी शुभाषंसा प्रकट की। इससे पूर्व आचार्यश्री ने विनीत और अविनीत के परिभाषित करते हुए कहा कि अविनीत को विपति मिलती है और विनीत को सम्पति। हमारी वाणी पर हमारा अनुशासन हो, बोलने से पहले सोचो, बोलने में संयम रहना चाहिए। इंद्रियों पर अनुशासन हो, बुरा देखो मत, बुरा सुनो मत, बुरा बोलो मत, बुरा सोचो मत और बुरा काम मत करो। यही आत्मा पर अनुशासन होता है। इनसे हमें विनीत और अविनीत की लक्ष्मण-रेखा मिलती है। अविनीत को विपति मिलती है और विनीत बनने पर सम्पति मिलती है। अनुशासित होना अपेक्षित है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा नहीं होने पर विनाश हो जाता है। स्वयं का स्वयं पर अनुशासन हो तो दूसरों के लिए ज्यादा मेहनत करनी ही नहीं पड़ती है। आचार्य तुलसी ने कहा था, अपने पर अपना अनुशासन, यही है अणुव्रत का शासन।
समाज व राष्ट्र हितों को सर्वोपरि रखने का दिलाया संकल्प
कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने दीक्षांत समारोह में सभी विद्यार्थियों एवं अन्य सभी को संकल्प सूत्र का पाठ करवा कर संकल्प ग्रहण करवाया, जिसमें अपने आचार-विहार को परस्पर सौहार्द्र का निर्वहन करने वाला और मानवीय मूल्यों की गरिमा को बनाए रखते हुए समाज व राष्ट्र हितों को सर्वोपरि रखने का संकल्प दिलाया गया। इस अवसर पर उन्होंने विश्वविद्यालय की एक साल की प्रति का विवरण भी प्रस्तुत किया और बताया कि प्राकृत भाषा का यह एकमात्र विश्वविद्यालय है, जिसमें प्राकृत का एक स्वतंत्र विभाग है। प्राकृत भाषा के राष्ट्रीय नोडल केन्द्र को यहां प्रारम्भ किए जाने के सम्बंध में केन्द्र सरकार के पास प्रस्तावित प्रस्ताव की भी उन्होंने जानकारी दी। उन्होंने राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं शोध के सम्बंध में विश्वविद्यालय में स्थापित केन्द्र व विभाग तथा पाठ्यक्रमों की जानकारी भी दी तथा नेचुरोपैथी व योग में बीएनएसवाई डिग्री व सर्टिफिकेट कोर्स के बारे में भी बताया। कुलपति प्रो. दूगड़ ने विश्वविद्यालय की शैक्षणिक व शिक्षणेत्तर दोनों गतिविधियों में समान रूप से की गई प्रगति की जानकारी देते हुए बताया कि विश्वविद्यालय में अब तक की सर्वाधिक विद्यार्थी संख्या है। यहां 1089 नियमित विद्यार्थी एवं 11 हजार 140 विद्यार्थी दूरस्थ शिक्षा से अध्ययनरत हैं। उन्होंने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ की स्मृति में जारी चांदी के सिक्के के विमोचन का समारोह संस्थान के तत्वावधान में आयोजित किया गया। विश्वविद्यालय के भैतिक संसाधनों की जानकारी देते हुए उन्होंने भवनों के नवीनीकरण, सौंदर्यकरण एवं नवनिर्माण किए जाने एवं राज्यपाल सहित विविध विश्वविद्यालयों के कुलपतियों एवं अन्य प्रमुख लोगों के आगमन आदि विविध गतिविधियों के बारे में बताया।
पीएचडी सहित कुल 3700 विद्यार्थियों को दी गई डिग्रियां
दीक्षांत समारोह में केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत व कुलपति बच्छराज दूगड़ द्वारा 3700 विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों को अधिस्नातक (एमए) व विद्या वाचस्पति (पीएचडी) की डिग्रियां प्रदान की गई। इस दौरान जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लूंकड़ भी उनके साथ रहे। सभी विभागों के विभागाध्यक्षों ने अपने डिग्री धारकों के नाम उच्चारित किए और मंच पर बुला कर उन्हें उपाधि प्रदान की गई। जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग, प्राकृत एवं संस्कृत विभाग, योग एवं जीवन दर्शन विभाग, अहिंसा एवं शांति विभाग, शिक्षा विभाग के प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, प्रो. जैनेन्द्र कुमार जैन, डाॅ. युवराज सिंह खंगारोत, डाॅ. बलबीर सिंह चारण, प्रो. बीएल जैन आदि ने अपने-अपने पीएचडी व स्नातकोत्तर विद्याार्थियों को आमंत्रित कर उपाधियां दिलवाई। समारोह का संचालन व आभार ज्ञापन कुलसचिव राजेश मौजा ने किया। आचार्यश्री महाश्रमण के मंगलपाठ एवं राष्ट्रगीत के साथ दीक्षांत समारोह का समापन किया गया। कार्यक्रम में हेमंत बैद, अरविंद संचेती, बाबूलाल, मनसुख, अशोक पारख आदि प्रमुख व गणमान्य लोगों के साथ ही विश्वविद्यालय का स्टाफ व विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।
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