जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में दो दिवसीय राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन

पूरी दुनिया करती है जाने-अनजाने ज्येातिष का प्रयोग- डाॅ. जैन

लाडनूँ, 23 फरवरी 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग तथा अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘जैन ज्योतिष की विविध विधायें’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का शुभारम्भ यहां विश्वविद्यालय स्थित महाप्रज्ञ-महाश्रमण ऑडिटोरियम में किया गया। शुभारम्भ समारोह की अध्यक्षता कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने की। मुख्य अतिथि डाॅ. अनिल जैन जयपुर थे तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में सालासर धाम के डाॅ. नरोत्तम पुजारी, पं. परमानन्द शर्मा, अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष पं. चन्द्रशेखर शर्मा व प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा थी। सम्मेलन में देश भर के ख्यातिप्राप्त ज्योतिष विद्वान हिस्सा ले रहे हैं। सम्मेलन का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पार्पण व दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया। प्रारम्भ में मंगलाचरण किया गया।

सौरमंडल से है मानव जीवन का सीधा रिश्ता

सम्मेलन के शुभारम्भ समारोह में मुख्य अतिथि डाॅ. अनिल जैन ने बताया कि जाने-अनजाने पूरी दुनिया में ज्योतिष विज्ञान का उपयोग नियमित रूप से किया जा रहा है। सौरमंडल और मानव जीवन के बीच के सम्बंध पर अध्ययन किया जावे तो बहुत सी बातेें सामने आयेंगी। हमें वेदों के हजारों साल पुराने ज्ञान को मानना चाहिये। समुद्र में आने वाले ज्वार और भाटा का सम्बंध सीधे सूर्य और चन्द्रमा की स्थिति से है। अगर समुद्र की विशाल जलराशि को ये ग्रह प्रभावित कर सकते हैं तो मनुष्य को भी प्रभावित अवश्य करते हैं। वैज्ञानिक अध्ययन बताता है कि मानव शरीर में 70 प्रतिशत पानी होता है और शरीर में लवण की मौजूदगी और प्रतिशत समुद्री पानी के समान ही होते हैं। डाॅ. जैन ने डाक्टरों द्वारा सफेद कपड़े पहनने एवं ऑपरेशन थियेटर में हरे रंग के कपड़े पहनने के पीेछे ज्योतिषीय राज है। हरा रंगबुध ग्रह का होता है, जो नर्वस सिस्टम को काबू में रखता है। न्यायालयों में जजों व वकीलों द्वारा काले कपड़े पहने जाते हैं, क्योंकि काला रंग शनि के लिये होता है और शनि ग्रह न्याय के साथ देरी का रंग भी है। न्याय में सोच-समझाकर निर्णय होना चाहिये। दिल्ली में रेडलाईन बसों को दुर्घटनाओं के कारण बंद किया गया, क्योंकि लाल रंग मंगल ग्रह का होता है, जो दुर्घटनायें करवाता है। जन्म कुंडली संभावनाओं को व्यक्त करती है और व्यक्ति आभास होने से परेशानियों से मुक्ति पा सकता है।

दूगड़ को सुजला रत्न सम्मान

सम्मेलन में अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान की ओर से विशेष कार्यों के लिये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ को ‘‘सुजला रत्न’’ सम्मान से नवाजा गया और उन्हें संस्थान की ओर से प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न, सम्राट पंचांग, शाॅल आदि प्रदान किये गये। सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुये विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में कहा कि ज्योतिष का व्यावहारिक स्वरूप सबको प्रभावित करता है। वैदिक ज्योतिष और जैन ज्योतिष के आधार में कोई फर्क नहीं है। जैन ज्येातिष भी जन्म के समय के ग्रहों की स्थिति, हस्तरेखा, स्वप्न शास्त्र, शगुन शास्त्र आदि के आधार पर टिका है। जैन शास्त्रों में दो विचारधारायें हैं। इनमें पहली में पूर्वकृत कर्मों के फल प्रभाव को कम करना और दूसरी है ज्योतिष के माध्यम से पूर्व कर्म परिणामों को कम करने को गलतबताया गया है, क्योंकि वह ऋण करने और बाद में नहीं चुकाने के बराबर माना जाना है। इसलिये कर्मशांति के प्रयास करना उन्हें आगे टाल देना है। उन्होंने इस अवसर पर बताया कि जैन विश्वभारती संस्थान में जैन ज्योतिष पर एक अल्पकालीन पाठ्यक्रम संचालित किया जाना प्रस्तावित है, जिसके लिये पाठ्यपुस्तक व पाठ्यक्रम तैयार करने में सम्मेलन में समागत विद्वानों का सहयेाग मिला तो वह लागू किया जायेगा।

अनुभूत प्रयोगों को अधिक महत्व दिया जावे

सालासर धाम के डाॅ. नरोतम पुजारी ने बताया कि भार्गव ऋषि प्रणीत ज्योतिष शास्त्र को रावण ने अपनी रावण संहिता में सरल बनाया। उन्होंने ज्योतिष में नये मार्ग खोले जाने की आवश्यकता बताते हुये कहा कि ज्योतिष में मंत्र प्रयोग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये। मानद मुख्य अतिथि पं. परमानन्द शर्मा ने कहा कि सभी ज्योतिषी पुराने ग्रंथों का भाष्य करते हैं, लेकिन नया शोध नहीं करते। उन्होंने ज्येातिष में अनुभूत प्रयोगों को ग्रंथों के सूत्रों से अधिक महत्व देने की आवश्यकता बताई। समारोह के प्रारम्भ में अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष पं. चन्द्रशेखर शर्मा ने विषय प्रवर्तन किया और अपने संस्थान के बारे में जानकारी दी। जैनविद्या विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने अपने स्वागत वक्तव्य में बताया कि भूत, भविष्य व वर्तमान तीनों को जोड़ेन वाली विद्या ज्योतिष है, जिससे समस्याओं के समाधान के लिये मार्गदर्शन मिलता है।

निरन्तर शोध की आवश्यकता है ज्येातिष विज्ञान को- डाॅ. लता श्रीमाली

24 फरवरी 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग तथा अखिल भारतीय प्राच्य ज्योतिष शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘जैन ज्योतिष की विविध विधायें’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन एवं सम्मान समारोह के समापन समारोह की अध्यक्षता प्राच्य ज्येातिष शोध संस्थान के अध्यक्ष पं. चन्द्रशेखर शर्मा ने की तथा मुख्य अतिथि सालासर धाम के डा. नरोतम पुजारी ने की। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में जोधुपर के डाॅ. रमेश भोजराज द्विवेदी, प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा, लता श्रीमाली, डाॅ. ज्येाति पुजारी व डाॅ. योगेश कुमार जैन थे। समारोह में जैन विश्वभारती संस्थान के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रभा को सुजला रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। इसी प्रकार संयोजक रमेश भोजराज द्विवेदी, डाॅ. योगेश कुमार जैन, शोध पत्र प्रस्तुतिकरण करने पर पं. परमानन्द शर्मा, डाॅ. मनीषा जैन, आचार्य विमल पारीक, डाॅ. नरोतम पुजारी, पं. कृष्ण ओझा, नवेश वर्मा, डाॅ. दीपक चोपड़ा आदि का सम्मान भी किया गया। समारोह में लता श्रीमाली ने कहा कि ज्योतिष एक विज्ञान है और इसमें निरन्तर शोध की आवष्यकता है। उन्होंने वैवाहिक स्थिति और मंगल दोष के बारे में विस्तार से अपने विचार व्यक्त किये। पं. परमानन्द शर्मा ने ज्योतिष की उन्नति के सूत्र बताये।

निःशुल्क ज्योतिष परामर्श में लोग उमड़े

इस दो दिवसीय सम्मेलन में आये ज्योतिर्विदों ने सार्वजनिक रूप से सबको ज्योतिषीय परामर्ष निःशुल्क रूप से उपलब्ध करवाने के लिये शिविर का आयोजन यहां महाप्रज्ञ सभागार में किया, जिसमें भारत भर से आये फलित ज्योतिष, अंक ज्योतिष, रमल ज्योतिष, सामुद्रिक शास्त्र, टेरो कार्ड रीडर, वास्तु शास्त्र, हस्तरेखा, रमल, लाल किताब, हस्ताक्षर आदि विधाओं के माध्यम से सर्वजन को निःशुल्क परामर्श प्रदान किया। विविध विद्वानों की निःशुल्क सेवाओं का लाभ उठाने के लिये यहां भारी संख्या में लोग उमड़े। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. योगेश जैन ने बताया कि सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रो के 150 से अधिक विद्वान मनीषियों ने भाग लिया। राष्टीªय संस्कृत संस्थान के निदेशक प्रोे. रमाकांत पांडेय, प्रोे. भास्कर शर्मा श्रोत्रिय, पंडित दामोदर प्रसाद शर्मा, विनोद नाटाणी, अनिल स्वामी, सिम्मी सोनी, उमेश यशवंत शिखरे, कुमार देवेश, दीपक शास्त्री, राजेंद्र शास्त्री, बिशाल शास्त्री, धर्मेंद्र खंडेलवाल, विजय बी महाजन, भावीन बिपिन देसाई, हरदीप सिडाना, रुपिंदर पुरी, नंदकिशोर शर्मा आदि उपस्थित रहे तथा देश-विदेश की समस्याओं के बारे में ज्योतिषीय आधार पर विमर्श किया तथा जीवन की समस्याओं के हल पर चिंतन किया।

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