सुख और दुःख के कारण में मन के विचार निहित रहते हैं- प्रो. बीएल जैन
लाडनूँ, 3 जनवरी 2024। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग में शनिवार को ‘आध्यात्मिक मनोविज्ञान’ पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल जैन ने कहा कि लोग सुख पाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं, लेकिन उनको सुख नहीं मिल पाता। व्यक्ति के सुखी नहीं बन पाने का कारण है कि संसार जैसा चल रहा है, वैसा मन नहीं बनाना चाहते, बल्कि हम अपने मनोनुकूल संस्कार को बनाना चाहते हैं। यह संभव नहीं हो पाता। मन को नहीं बदले बिना हम संसार के व्यक्तियों को अपने अनुसार पलटने की कोशिश करते हैं। इससे कभी-कभी निराशा, असंतोष, ग्लानि, निराशा, हताशा मिलती है, जिससे हम विचलित हो जाते हैं या तनाव में आ जाते हैं। परीक्षा में मिले अंकों में गिरावट भी मन में निराशा, हताशा पेदा कर सकती है। लेकिन, दुःखी होने की अपेक्षा अधिक मेहनत व प्रयास की जरूरत रहती है। साथ ही हमारी एक-दूसरे के दोषों को देखने की प्रवृति भी दुःख पैदा करती है। अगर हम परस्पर अच्छा देखेंगे तो हमें दूसरो से भी अच्छा ही मिलेगा और सुख की अनुभूति होगी। सुखी रहने के लिए हमें अपनी समीक्षा करनी चाहिए और दूसरों में कमियां निकालने की प्रवृति से दूर रह कर अध्यात्म की समझ रखनी चाहिए, जिसमें अपने आंतरिक व्यवहार को, आचरण को समझते हैं और सुख को प्रापत कर सकते हैं। कार्यक्रम में शिक्षा विभाग के डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. विष्णु कुमार, डॉ. अमिता जैन, डॉ. सरोज रॉय, डॉ. आभा सिह, डॉ. गिरिराज भोजक, डॉ. गिरधारीलाल, खुशाल जांगिड आदि एवं बी.एड, बी.ए.-बी.एड एवं बी.एस.सी-बी.एड की छात्राध्यापिकाएं उपस्थित रही।