संस्कार-निर्माण के लिए एकाग्रता, संकल्प शक्ति व आवेश पर नियंत्रण का अभ्यास जरूरी

आचार्य महाप्रज्ञ के लेखन की समीक्षा प्रस्तुत

लाडनूँ, 20 जनवरी 2024। जैन विश्व भारती संस्थान के शिक्षा विभाग में आतंरिक व्याख्यानमाला के अंतर्गत डॉ. गिरधारी लाल शर्मा ने आचार्यश्री महाप्रज्ञ के लेख ‘कैसे करें संस्कारों का निर्माण’ की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि व्यक्ति में अच्छाई तथा बुराई दोनों के बीज विद्यमान रहते हैं। जीवन का अच्छा पक्ष प्रकट हो या बुरा, यह हमारे पुरुषार्थ पर निर्भर करता है। बच्चा क्या लेकर आया है, इस पर हमारा कोई वश नहीं है, करना इतना ही है कि उसमें जो अच्छाई के बीज विद्यमान हैं, उन्हें उभार कर ऊपर लाया जाए। बच्चे माता-पिता चाहिए। दूसरे में संस्कार-निर्माण से पहले स्वयं में वैसे संस्कार होने आवश्यक हैं।डा. शर्मा ने बताया कि आचार्यश्री ने संस्कार निर्माण के कुछ प्रमुख सूत्र बताये हैं, जिनमें स्वार्थ का सीमाकरण, उदार दृष्टिकोण, हीन तथा अहम् भाव से मुक्ति का अभ्यास, संगठन तथा अनुशासन के प्रति विश्वास एवं आहार शुद्धि व नशा मुक्ति आदि प्रमुख हैं। माता-पिता, बच्चों को संस्कारित कैसे करें? प्रश्न के प्रत्युत्तर में आचार्यश्री कहते हैं कि आवेश पर नियंत्रण का अभ्यास, एकाग्रता बढाने का अभ्यास एवं संकल्पशक्ति का विकास, यदि ये तीन बातें अभिवावक बच्चों को सिखा पाएं, तो वे बच्चों का भरपूर भला कर पाएंगे। इन संस्कारों को देने का अनुभवसिद्ध प्रयोग आचार्यश्री बताते हैं कि दीर्घ श्वांस का अभ्यास, दीर्घ श्वांस के प्रयोग से क्रोध-आवेश पर नियंत्रण, एकाग्रता में वृद्धि, मादक व्यसनों से दूरी के साथ स्वर्गिक आनंद की प्राप्ति होती है। अनेक बुरी आदतों से बचने का यह एक अचूक उपाय है। कार्यक्रम के अंत में शिक्षा विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल.जैन ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा आचार्य महाप्रज्ञ के इस लेख में वर्णित विचार पूर्ण-रूपेण अनुकरणीय हैं। इनके माध्यम से न केवल बच्चों, बल्कि बड़ों को भी संस्कारित किया जा सकता है। इससे व्यक्ति का जीवन सुखी, सफल तथा उत्कृष्ट बन सकता है तथा राष्ट्र निर्माण में वह अपनी भागीदारी निभा सकता है। कार्यक्रम में समस्त शिक्षा संकाय सदस्य तथा विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार ज्ञापन डॉ. गिरिराज भोजक द्वारा किया गया।

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