आचार्य तुलसी श्रुत संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला आयोजित

जहां जैन रहें, वहां पुलिस व्यवस्था की जरूरत नहीं होती- डॉ. वीरसागर

लाडनूँ, 04 मई 2022। श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के जैन दर्शन विभाग के प्रोफेसर डॉ. वीरसागर जैन ने कहा है कि जैन दर्शन केवल मुक्ति का साधन नहीं है, बल्कि यह लौकिक जीवन को सुधारने और उसे अच्छा बनाने का माध्यम भी है। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान के जैन धर्म एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग के अन्तर्गत महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ द्वारा कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के निर्देशन में आयोजित आचार्य तुलसी श्रुत संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के अन्तर्गत आयोजित एक दिवसीय व्याख्यान में बोल रहे थे। ‘जैन दर्शन की व्यावहारिकता’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि जैन दर्शन जबरदस्त है, इसमें कुछ भी जबरदस्ती नहीं है। जैन जीवन शैली जीवन को शुद्ध बनाने और निरोग रखने में भी सहायक है। चरित्र निर्माण, सत्य व अहिंसा के आचरण के कारण जहां जैन समाज के लोग रहते हों, वहां पुलिस व्यवस्था तक की जरूरत नहीं रहती है। देशहित में भी जैन समाज का बहुत योगदान है। इसके द्वारा व्यक्तित्व निर्माण और राष्ट्र निर्माण के सभी कार्य आसान हो जाते हैं। जैन दर्शन का अनेकंात दर्शन हमारी सोच को परिपक्व बनाता है और अन्य दर्शनों ही नहीं बल्कि अन्य समस्त चिंतन, स्थितियों, परिस्थितियों और वस्तुओं, विचारों तक को ग्रहण करने और वास्तविकता तक पहुंचने में मदद करता है। व्याख्यान से पूर्व जैन दर्शन के विद्यार्थी पवित्र जैन ने मंगलाचरण किया। दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। अंत में विभागाध्यक्ष प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी अच्युतकान्त जैन ने किया। कार्यक्रम में देश भर के प्रमुख जैन विद्वानों ने हिस्सा लिया।

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