संस्थान के 14वें दीक्षांत समारोह का अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में वाशी, नवी मुम्बई, महाराष्ट्र में भव्य आयोजन

मुख्य अतिथि: माननीय रमेश जी बैस, महामहिम राज्यपाल, महाराष्ट्र

अध्यक्षताः श्री अर्जुनराम मेघवाल, कुलाधिपति तथा विधि एवं संस्कृति व संसदीय मामलात मंत्री, भारत सरकार

माननीय कुलपतिः प्रो. बच्छराज दूगड़

वाषी, नवी मुम्बई, महाराष्ट्र, 19 फरवरी, 2024। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का 14वां दीक्षांत समारोह अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में आचार्यश्री महाश्रमण प्रवचन स्थल, सिडको एक्जीबिशन एण्ड कन्वेन्शन सेंटर के पास, वाशी, नवी मुम्बई, महाराष्ट्र में आयोजित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि महाराष्ट्र के राज्यपाल महामहिम रमेश जी बैस ने अपने दीक्षान्त-भाषण में कहा कि जैन विश्वभारती संस्थान वैश्विक स्तर पर मानवता एवं सार्वभौमिक व्यक्ति के लिए नैतिकता के जागरण हेतु अहिंसा, शांति, के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रहा है। वर्तमान में विश्व-युद्ध की परिस्थितियों, आर्थिक विशमताओं, विस्थापन की स्थिति आदि विविध विषम परिस्थ्तिियों से निपटने के लिए नैतिकता और शांति की स्थापना महत्त्वपूर्ण हो गई है। आंतरिक शांति, राष्ट्र शांति और प्रकृति की शांति - इन तीनों के लिए प्रयास किया जाना जरूरी है। भारत सदैव शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की बात को संप्रसारित करता रहा है। आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ व आचार्यश्री महाश्रमणजी के विचारों का संप्रसारण वर्तमान की अति आवष्यकता है, जिसके माध्यम से हम नई पीढ़ी को चरित्रवान बना पाएंगे। उन्होंने दीक्षांत समारोह के संबंध में कहा कि दीक्षा का अंत हो सकता है, लेकिन शिक्षा का कोई अंत नहीं होता। सीखने के लिए ज्ञान-प्राप्ति के लिए कोई उम्र नहीं होती। ज्ञान किसी भी उम्र में प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने संस्थान के नवीन प्रकल्प आचार्य महाप्रज्ञ प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र द्वारा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के विकास की ओर उठाये गए अनुकरणीय कदम की प्रशंसा करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति के माध्यम से देष की शिक्षा-पद्धति में काफी परिवर्तन आया है। नवीन शिक्षा पद्धति में व्यावसायिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिकता, चरित्र निर्माण और व्यक्ति निर्माण तथा भारतीय परम्परागत ज्ञान के संरक्षण को विषेश महत्त्व दिया गया है। वर्तमान में आचार्यों के निर्देशन में ही भारत को विश्वगुरू बनाया जा सकेगा।

ज्ञान के साथ शांति, अहिंसा व नैतिकता के मूल्यों का विकास महत्त्वपूर्ण

अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समारोह में सभी दीक्षार्थियों को ‘सिक्खापदं’ का उच्चारण करवाया और अपने आशीर्वचन में कहा कि जीवन में ज्ञान का महत्त्व बहुत अधिक होता है। शास्त्रों में, आगमों में ज्ञान के संबंध में बहुत बातें भरी पड़ी हैं। उन्होंने अहंकार, गुस्सा, प्रमाद, रोग, आलस्य को ज्ञान-प्राप्ति में बाधक बताया और इनसे बचने का प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार दिए जाने की जरूरत बताते हुए कहा कि जीवन में ज्ञान और आचार दोनों जरूरी होते हैं। ज्ञान का आदान-प्रदान ही सरस्वती की साधना होती है। उन्होंने आचार्यश्री तुलसी को शिक्षा देने और अध्यापन करवाने वाला बताते हुए कहा कि अणुव्रतों के माध्यम से उन्होंने जीवन में अच्छा आदमी बनने के उपाय बताए। आचार्यश्री महाश्रमण ने अणुव्रत-गीत के महत्त्वपूर्ण अंशों का गान करते हुए विद्यार्थी के लिए उनकी आवश्यकता बताई और कहा कि विद्यार्थी में ज्ञान-प्राप्ति के लिए निष्ठा और चरित्र सबसे ज्यादा जरूरी है। ज्ञान-प्राप्ति के प्रति जागरूक होने के साथ ही शांति, अहिंसा व नैतिकता के मूल्यों का विकास भी होना महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञान को विद्यार्थी के बौद्धिक, शारीरिक व मानसिक विकास को विद्यार्थी विकास के लिए जरूरी बताया।

आचार्यश्री तुलसी ने मूल्य आधारित शिक्षा की नींव रखी

समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति व केन्द्र सरकार के विधि तथा संस्कृति एवं संसदीय मामलात मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल ने संकल्प-सूत्र का सामुहिक पाठ करवाते हुए आचार्यश्री तुलसी की दूरदृष्टि की सराहना करते हुए कहा कि आचार्यश्री ने अपनी दूरगामी सोच के माध्यम से जान लिया था कि मूल्य आधारित शिक्षा के बिना श्रेष्ठ मनुश्य का निर्माण संभव नहीं है एवं उनकी इसी दृष्टि को मूर्त रूप प्रदान करने के परिणामस्वरूप ही 1991 में इस संस्थान की स्थापना हुई। अब नई शिक्षा नीति में भी मूल्य आधारित शिक्षा पर बल दिया गया है। नैतिक होना राष्ट्र की प्रथम आवश्यकता है। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने स्वागत वक्तव्य एवं संस्थान परिचय प्रस्तुत करते हुए संस्थान के प्रारम्भ से लेकर अब तक के सभी कुलपतियों का स्मरण किया तथा संस्थान की विगत वर्षों की प्रमुख उपलब्धियों के बारे में संक्षिप्त सारगर्भित रिपोर्ट प्रस्तुत की।

डी.लिट्. मानद उपाधियाँ प्रदत्त

इस अवसर पर देष के प्रख्यात अर्थशास्त्री श्री के.वी. कामथ, पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेषक, आईसीआईसी बैंक; पूर्व अध्यक्ष, नेशनल बैंक फाॅर फाइनेंसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट (छंठथ्प्क्); स्वतंत्र निदेषक, जीयो फाइनेंसियल सर्विसेज; तथा वेद एवं जैन विद्या के विश्रुत-मनीषी प्रो. दयानन्द भार्गव, प्रसिद्ध विद्वान्, भारतीय दर्शन को डी.-लिट्. की मानद उपाधियाँ प्रदान की गई। श्री के.वी. कामथ ने इस अवसर पर अपना संक्षिप्त उद्बोधन भी प्रस्तुत किया। इन मानद उपाधि प्राप्तकर्ता ख्यातनाम व्यक्तित्वों के संबंध में संक्षिप्त उद्धरण का वाचन माननीय कुलपति के विशेषाधिकारी प्रो. नलिन के. शास्त्री ने किया।

पी-एच्.डी. उपाधियां एवं गोल्ड मेडल प्रदत्त

दीक्षांत समारोह में माननीय कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ द्वारा माननीय कुलाधिपति श्री अर्जुनरामजी मेघवाल एवं मुख्य अतिथि माननीय रमेष बैस, महामहिम राज्यपाल, महाराष्ट्र की समुपस्थिति में कुल 24 शोधार्थियों को पी.एच्.-डी. की उपाधियां एवं 10 विद्यार्थियों को गोल्ड मैडल व विशेष योग्यता प्रमाण-पत्र प्रदान किये गए तथा 3567 विद्यार्थियों को स्नातक व अधिस्नातक की डिग्रियां प्रदान की गई। पी-एच्.डी. उपाधि प्राप्तकर्ताओं में मुनिश्री आलोक कुमार, साध्वी रूचिदर्शनाश्री, साध्वी श्रुतिदर्शनाश्री आदि साधु-साध्वीवृन्द भी शामिल थे। उल्लेखनीय है कि संस्थान द्वारा अपने स्थापना काल से ही सम्पूर्ण साधु-साध्वियों को नियमित एवं पत्राचार अध्ययन के माध्यम से सभी साधु-साध्वियों को सम्पूर्ण शिक्षा निःशुल्क प्रदान की जाती रही है।

समारोह में चारित्रात्माओं में मुख्यमुनि महावीर कुमारजी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयषाजी, मुनिश्री कुमारश्रमणजी, मुनिश्री विश्रुतकुमारजी एवं अन्य साधु-साध्वीवृन्द उपस्थित रहे। विषेश आमंत्रित विद्वानों में प्रो. बी.एम. शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान लोक सेवा आयोग; प्रो. संजीव शर्मा, पूर्व कुलपति, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिहार; कमाण्डर (डाॅ.) भूशण दीवान, उपकुलपति, ए.के.एस. विश्वविद्यालय, सतना, म.प्र. आदि उपस्थित थे। समारोह का संचालन एवं आभार-ज्ञापन कुलसचिव प्रो. बी.एल. जैन ने किया।

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