आचार्य महाप्रज्ञ प्रज्ञा संवर्धिनी व्याख्यानमाला में जैन ज्योतिष पर व्याख्यान
जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय प्रारम्भ करेगा ज्योतिष विज्ञान पर अल्पावधि पाठ्यक्रम
ज्योतिष कर्महीन व भाग्यवादी नहीं बनाता, बल्कि भविष्य का मार्ग दिखाता है - प्रो. जैन
लाडनूँ, 10 अगस्त, 2017। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन विभाग के अन्तर्गत संचालित महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ के तत्त्वावधान में आचार्य महाप्रज्ञ प्रज्ञा-संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला-6 के अन्तर्गत गुरूवार को आचार्य महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में नई दिल्ली के एस्ट्रो साईंस एण्ड रिसर्च आॅर्गेनाईजेशन के उपाध्यक्ष प्रो. अनिल जैन ने जैन-ज्योतिष पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की अध्यक्षता में आयोजित इस व्याख्यानमाला में प्रो. जैन ने अपने व्याख्यान में जैन धर्म के अनेक सिद्धान्तों को ज्योतिष के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया तथा ज्योतिष-विज्ञान की वैज्ञानिकता को प्रतिपादित किया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में जैन विश्वभारती के ट्रस्टी व समाजसेवी भागचंद बरड़िया व अनेकांत शोधपीठ की निदेशक समणी ऋजुप्रज्ञा थीं।
समुद्र की तरह ही मानव मन पर चन्द्र का प्रभाव
ज्योतिष विज्ञान के विख्यात विद्वान् प्रो. अनिल जैन ने सूर्य व चन्द्रमा के प्रभाव को रेखांकित करते हुये समुद्र के ज्वार और व्यक्ति की मानसिकता में आने वाले बदलाव को बताते हुये कहा कि हमारे शरीर में 70 प्रतिशत तक पानी है और समुद्र के पानी में जो लवण होते हैं, वे ही हमारे शरीर में खून में पाये जाते हैं और उनका प्रतिशत भी उतना ही हमारे शरीर में है, जितना समुद्र के पानी में है। इसी कारण जिन लोगों का चन्द्र कमजोर होता है, वे जब पूर्णिमा आती है तो कमजोर पड़ जाते हैं। उनका मन विचलित हो जाता है। पूर्णिमा पर धरती पर हिंसात्मक घटनाएँ बढ़ जाती हैं। उन्होंने कहा कि जैन धर्म में अष्टमी व चतुर्दशी के दिन हरी सब्जियां व हरे फल नहीं खाये जाते हैं, क्योंकि इन दिनों में इनके सेवन से मन विचलित हो जाता है। हरे फल व सब्जियों से पानी की मात्रा शरीर मंे बढ़ जाती है। अष्टमी के दिन मन शांत रहता है, इसलिये इस दिन पूजा-पाठ, अध्ययन, दवा सेवन, इलाज का प्रारम्भ आदि प्रभावशाली परिणामदायी हो जाते हैं।
प्रो. जैन का कहना है कि ज्योतिष कभी व्यक्ति को कर्महीन या भाग्यवादी नहीं बनाता, बल्कि वह भविष्य का मार्ग दिखाता और व्यक्ति को सचेत करता है कि उसे क्या करना चाहिये और क्या नहीं। उन्होंने राशियों में सूर्य के संक्रमण से बनने वाली संक्रांतियों के बारे में बताया कि वैसे 12 संक्रांतियां होती है, लेकिन मकर संक्रांति पर ही उत्सव मनाया जाता है, क्योंकि 6 संक्रांतियों में सूर्य दक्षिणायन में रहता है और 6 संक्रांतियों में उत्तरायण में। मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिण से उत्तरायण में प्रवेश करता है। इसे शुभ माना गया है, क्योंकि इस समय रचनात्मक ऊर्जा अधिक होती है। उन्होंनं जैन दर्शन के समयसार आदि ग्रंथों में विज्ञान व ज्योतिष का समावेश होने की जानकारी दी तथा न्यूटन के सिद्धान्तों में भी ज्योतिष होने की बात कही। प्रो. जैन ने विश्वभर में चिकित्सकों के हरे रंग का वस्त्र आॅपरेशन के समय पहनने, वकीलों व जजों के काला कोट या काला चोगा पहनने की व्याख्या करते हुये ग्रहों व उनके रंगों के बारे में बताया और कहा कि हरा रंग बुध ग्रह का होता है, जो हमारे नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करता है। वकीलों का काला रंग शनि ग्रह का प्रतीक है, जो न्याय का ग्रह है और जल्दबाजी नहीं करता। अदालत में सोच-समझकर निर्णय लेने की शक्ति काले रंग से ही आती है। इसी प्रकार उन्होंने अन्य ग्रहों के प्रभाव बताये और कहा कि व्यक्ति अपने कपड़े, रंग, ज्वैलरी का प्रकार आदि में थोड़ा परिवर्तन करके अपने जीवन को बदल सकता है। उन्होंने रोगों और उनके ईलाज पर ग्रहों के असर को भी प्रकट किया तथा समस्याओं से निपटने के ज्योतिषीय उपाय भी बताये।
ज्योतिष पर प्रारम्भ होगा अल्पावधि पाठ्यक्रम
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में ज्योतिष को सबकी जिज्ञासा का विषय बताया तथा कहा कि इसके बारे में सबकी अलग-अलग राय होने के बावजूद सब कभी न कभी इस पर विश्वास कर लेते हैं। इस विद्या को लेकर कभी आश्चर्य होता है, तो कभी यह नकारात्मक विद्या लगती है। समस्त जिज्ञासाओं का समाधान प्रो. अनिल जैन ने अपने व्याख्यान में किया है तथा विविध व्यावहारिक अनुभव भी बताये हैं। उन्होंने बताया कि कचरा रहने व साफ-सफाई नहीं होने से राहू की दशा रहती है और तनाव पैदा होता है। स्वच्छता रहने पर तनाव दूर हो जाता है। यह सही है। प्रो. दूगड़ ने घोषणा की कि अगले साल से विश्वविद्यालय में ज्योतिष विज्ञान पर एक अल्पकालीन पाठ्यक्रम प्रारम्भ कर दिया जायेगा। अभी यह पाठ्यक्रम विकसित किया जा रहा है। उन्होंने प्रो. जैन द्वारा इस पाठ्यक्रम के लिये अपनी सेवाएँ देने की इच्छा का स्वागत किया तथा कहा कि हम निश्चित रूप से उनका पूरा उपयोग लेंगे। वे निरन्तर इस संस्थान से जुड़े रहे, यह सौभाग्य की बात है। इससे पूर्व शोध-केन्द्र निदेशिका समणी ऋजुप्रज्ञा ने अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया व ज्ञानसंवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के प्रारम्भ से लेकर अब तक की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के प्रारम्भ में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने प्रो. अनिल जैन का शाॅल ओढाकर एवं भागचंद बरड़िया को स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मान किया।
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