दो दिवसीय दूरस्थ शिक्षा सम्प्रसारक कार्यशाला का आयोजन
गुणवत्ता व प्रामाणिकता है विश्वविद्यालय की विशेषता - प्रो. दूगड़
लाडनूँ, 27 अक्टूबर। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय दूरस्थ शिक्षा सम्प्रसारक कार्यशाला का उद्घाटन शुक्रवार को विश्वविद्यालय के सेमीनार हाॅल में कुलपति प्रो बच्छराज दूगड की अध्यक्षता में समारोहपूर्वक किया गया। प्रो दूगड ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि सम्प्रसारक इस विश्वविद्यालय के प्रतीक हैं, उनका आचरण एवं संवाद विश्वविद्यालय को प्रस्तुत करता है। उन्होंने आगे कहा कि इस विश्वविद्यालय की गुणवत्ता व प्रामाणिकता ही इसकी विशेषता है। उन्होंने कहा यह विश्वविद्यालय इसलिए भी यूनिक है क्योंकि विश्वविद्यालय आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ एवं आचार्यश्री महाश्रमणजी के सपनों का संस्थान है। कुलपति ने कहा कि यह विश्वविद्यालय नियमों को सर्वोपरी मानता है, अर्थाजन हमारा उद्देश्य नहीं है। सम्प्रसारक नियमों की पालना का विशेष ध्यान रखें।
प्रो. दूगड़ ने विश्वविद्यालय के नये नियमों का उल्लेख करते हुए कहा कि अब से विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा के परीक्षा-केन्द्र राजकीय महाविद्यालय, नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूलों अथवा समकक्ष संस्थानों में ही स्थापित किये जाएँगे। कुलपति ने सम्प्रसारकों के सहयोग से ही विद्यार्थी सपोर्ट सिस्टम को अधिक प्रभावशाली बनाने का आह्वान किया।
मुख्य-अतिथि के रूप में इन्दिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय जोधपुर की निदेशक डाॅ. ममता भाटिया ने देशभर से समागत विश्वविद्यालय के सम्प्रसारकों को संबोधित करते हुए कहा कि दूरस्थ शिक्षा का दायरा अब विस्तृत बनता जा रहा है। सम्प्रसारकों को और अधिक जिम्मेदारी के साथ इस विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए। उन्होंने समन्वयकों से कहा कि दूरस्थ-शिक्षा से जुड़कर विद्यार्थी के व्यक्तिगत-जीवन के साथ भी आपका जुड़ाव उपयोगी हो सकता है। उन्होंने कहा सही मायने में सम्प्रसारक ही विश्वविद्यालय का ‘फेस’ हैं।
कार्यक्रम के विशिष्ट-अतिथि इग्नु के सहायक निदेशक मुख्तार अली ने कहा कि आज की तनावपूर्ण जिन्दगी में जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी हैं। उन्होंने कहा कि नैतिक व चारित्रिक मूल्यों सेे प्रेरित यह पाठ्यक्रम शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास भी करते हैं। उन्होंने कहा आज के दौर में दूरस्थ शिक्षा का महत्त्व बढ़ा है। दूरस्थ शिक्षा से जुडे़ विद्यार्थियों का उच्च पदों पर चयन होना इसकी महत्ता को प्रमाणित करता है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रबन्ध-मण्डल के सदस्य व मगध विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. नलिन के. शास्त्री ने तकनीकी विस्तार के साथ दूरस्थ शिक्षा को हर व्यक्ति के लिए उपयोगी बताया।
कार्यक्रम की रूपरेखा एवं उद्देश्यों को बताते हुए दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने सम्प्रसारकों द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की एवं और अधिक गति के साथ कार्य करने हेतु प्रेरित किया। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि यह विश्वविद्यालय प्राच्य-विद्याओं का विशिष्ट केन्द्र है इसलिए अब सम्प्रसारक जैन एवं प्राच्य विद्या सम्प्रसारक के रूप में जाने जायेंगे। इससे पूर्व विश्वविद्यालय के कुलसचिव विनोदकुमार कक्कड़ ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि सम्प्रसारकों के सहयोग से ही यह विश्वविद्यालय जन-जन तक पहुंच सकता है।
जैन एवं प्राच्य विद्या प्रचार-प्रसार सम्मान
इस अवसर पर देश भर से समागत सम्प्रसारकों में श्रेष्ठ कार्य करने के लिए चार सम्प्रसारकों गच्छीपुरा के हनुमानराम, जोधपुर के कुशलराज समदड़िया, जायल के इन्द्रदेव जाखड़ व देवातु की दिव्या राठौड़ को कुलपति प्रो बच्छराज दूगड़ व अतिथियों द्वारा जैन एवं प्राच्य विद्या प्रचार-प्रसार सम्मान प्रदान किया गया। सम्मान स्वरूप शाॅल, श्रीफल एवं मोमेण्टों भेंट कर सम्मान किया गया।
पुस्तकों का हुआ विमोचन
कार्यक्रम में दूरस्थ शिक्षा के निदेशक प्रो आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ‘रत्नेश’ की पुस्तक गीता-दर्शन एवं प्रो. त्रिपाठी व डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान की पुस्तक सामाजिक चिन्तन एवं स्वरूप का विमोचन कुलपति एवं मुख्य-अतिथि डाॅ. ममता भाटिया द्वारा किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मुमुक्षु बहिनों द्वारा प्रस्तुत मंगलसंगान से हुआ। कार्यक्रम का संचालन सहायक निदेशक श्रीमती नुपुर जैन एवं आभार ज्ञापन समन्वयक जे.पी. सिंह ने व्यक्त किया। इस कार्यशाला में सौ से अधिक दूरस्थ शिक्षा के सम्प्रसारकों ने भाग लिया। कार्यशाला का द्वितीय सत्र परिचय सत्र के रूप में प्रो. दामोदर शास्त्री की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। सत्र का संयोजन श्री जे.पी. सिंह ने किया। तृतीय सत्र शोध-निदेशक प्रो. अनिलधर की अध्यक्षता में आयोजित हुआ, जिसमें सम्प्रसारकों को प्रवेश संबंधी प्रशिक्षण एवं समस्या समाधान प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी, डाॅ समणी अमलप्रज्ञा एवं श्रीमती नुपुर जैन द्वारा दिया गया।
शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन की अध्यक्षता में चतुर्थ सत्र का आयोजन सम्पर्क कक्षा एवं सत्रीय कार्य संबंधी जानकारी का रखा गया। इस सत्र में योग एवं जीवन-विज्ञान विभाग के सहायक-आचार्य डाॅ. अशोक भास्कर ने एक माह की सम्पर्क कक्षाओं के संचालन की जानकारी दी। वहीं अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच ने दस दिवसीय सम्पर्क कक्षाओं के संचालन का प्रशिक्षण दिया। जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म-दर्शन विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. योगेश जैन ने जैन विद्या विषय की जानकारी दी। दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने सत्रीय कार्य संबंधी जानकारी देते हुए सम्पर्क कक्षाओं की समस्याओं का समाधान किया। श्री जे.पी. सिंह ने सत्र का कुशल संयोजन किया।
इसी प्रकार सम्प्रसारक कार्यशाला के दूसरे दिन प्रथम सत्र योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ प्रद्युम्नसिंह शेखावत की अध्यक्षता में परीक्षा एवं मूल्यांकन सम्बधी प्रशिक्षण का रखा गया। परीक्षा नियन्त्रक डाॅ युवराजसिंह ने परीक्षा एवं मूल्यांकन सम्बन्धी जानकारी दी। वित्ताधिकारी राकेश कुमार जैन ने शुल्क से संबंधित जानकारी देते हुए आॅनलाइन पेमेण्ट को समझाया। समाजकार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान ने समाजकार्य से संबंधित जानकारी दी। प्राच्य-विद्या एवं भाषा विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ. समणी संगीत प्रज्ञा ने प्राच्य विद्याओं के प्रचार-प्रसार पर बल दिया। इस अवसर पर दूरस्थ शिक्षा के निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने सम्प्रसारकों की विविध समस्याओं का समाधान किया। संयोजन श्री जे.पी. सिंह ने किया।
समापन-सत्र का आयोजन
सम्प्रसारक कार्यशाला के दूसरे दिन शैक्षणिक भवन में अवस्थित सेमीनार हाॅल में समापन-सत्र का आयोजन किया गया। सत्र की अध्यक्षता करते हुए शोध-विभाग के निदेशक प्रो. अनिल धर ने कहा कि दूरस्थ शिक्षा अब नियमित शिक्षा से किसी भी मुकाबले में कम नहीं है। प्रो. धर ने कहा कि दूरस्थ शिक्षा का देश में विशिष्ट योगदान है। आज दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से लाखों लोग शिक्षा अर्जित कर अपने कॅरियर को नया आयाम दे रहे हैं। प्रो. धर ने सम्प्रसारकों से विश्वविद्यालय को सुझाव व सहयोग देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि कार्यक्षेत्र में सम्प्रसारकों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता हं, उनके सुझाव व विचार ही विश्वविद्यालय को आगे बढ़ा सकते हैं। प्रो. धर ने दूरस्थ शिक्षा की परीक्षाएँ जिला स्तर या उपखण्ड स्तर पर आयोजित करवाने का सुझाव दिया। सान्निध्य प्रदान करते हुए समणी नियोजिका प्रो. समणी ऋजु प्रज्ञा ने कहा कि मानव व पशु में शिक्षा ही भेद-रेखा है, शिक्षा के माध्यम से ही श्रेष्ठ-मानव का निर्माण किया जा सकता है। शिक्षित मानव ही विकास को गति दे सकता है। उन्होंने इस दो दिवसीय कार्यशाला को उपयोगी बताते हुए क्वालिटी व क्वांटिटि दोनों को ही बढ़ाने का आह्वान किया।
कार्यक्रम में दूरस्थ शिक्षा के निदेशक प्रो आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने दो दिवसीय कार्यशाला का प्रगति-विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि सभी सम्प्रसारक अपने-अपने क्षेत्रों में और अधिक गति के साथ विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों का कार्य कर जैन एवं प्राच्य विद्याओें के विकास में अपना योगदान दें। इस अवसर पर अहमदाबाद के बसंत मालू, जयपुर की रीना गोयल, इंदौर के डाॅ दक्षदेव गौड़ आदि सम्प्रसारकों ने अपने अपने अनुभव सुनाये। संयोजन दूरस्थ शिक्षा निदेशालय की सहायक निदेशक नुपुर जैन एवं आभार ज्ञापन निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने व्यक्त किया।
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