तीन दिवसीय युवा अहिंसा एवं मानवाधिकार प्रशिक्षण शिविर का आयोजन
संकल्प लेने के बाद पलट कर नहीं देखना चाहिये - देशमुख (एसपी)
लाडनूँ, 27 जनवरी, 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में तीन दिवसीय युवा अहिंसा एवं मानवाधिकार प्रशिक्षण शिविर का आयोजन महाप्रज्ञ-महाश्रमण आॅडिटोरियम में समारोह पूर्वक किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला पुलिस अधीक्षक परिस देशमुख ने कहा कि हिंसा के पीछे काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार के पांच दोष होते हैं। इन दोषों से परे कोई अपराध नहीं होता। जो व्यक्ति इन दोषों का शिकार होता है, उसके दिमाग में ही क्राईम का आईडिया आता है। समाज में अगर पूर्ण अहिंसा का माहौल देखना चाहते हैं तो हिंसा के जनक इन दोषों पर विजय पाना आवश्यक है। उन्होंने इस अवसर पर शिविरार्थी विद्यार्थियों से अपने जीवन में शिक्षा से लेकर कॅरियर बनाने की पूरी यात्रा वर्णित की। उन्होंने कहा कि विषमताओं को लेकर अपने कर्तव्य से पीछा छुड़ाने की कोशिश नहीं करनी चाहिये। एक बार जो संकल्प कर लें, तो पीछे पलटकर नहीं देखना चाहिये। अपनी गलतियों को समझने के बाद उनमें सुधार करना चाहिये। कभी यह मुश्किल है, इस प्रकार की सोच नहीं रखें। यह सोच बदलेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी। एसपी ने छात्राओं से कहा कि वे दबें नहीं, डरें नहीं और बोलें जरूर, क्योंकि जो अन्याय के खिलाफ बोलता नहीं और उसे सहन करता है, वह एक प्रकार से अन्याय का सहयोगी होता है।
ध्यान व योग से बदला जा सकता है स्वभाव
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में देश, समाज व अपने प्रति कर्तव्यों को निभाने की आवश्यकता बताई तथा कहा कि ध्यान व योग से स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने विश्वविद्यालय में पढने वाली एक क्रोधी स्वभाव की छात्रा के बारे में बताया कि उसने ध्यान व योग के बल पर अपने स्वभाव को बदला और क्रोध को त्याग दिया। प्रो. दूगड़ ने दुविधा की स्थिति को प्रगति के लिये बाधक बताया तथा कहा कि दुविधा को टालेंगे तो अपनी पूरी शक्ति एक तरफ लगाकर सफल हुआ जा सकता है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि बोधगया विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो. नलिन शास्त्री ने अहिंसा, शांति की संस्कृति एवं मानवाधिकारों के सम्बंध में युवाओं के प्रशिक्षण को मानवीय मूल्यों में सहायक बताया तथा कहा कि इससे भयमुक्तता व स्वतंत्रता के साथ शांति, मैत्री व सम्मान की भावनाएँ उत्पन्न होंगी। उन्होंने पुलिस व मानवाधिकारों का जिक्र करते हुये कहा कि आमतौर पर पुलिस पर मानवाधिकारों के हनन के आरोप लगते हैं, लेकिन अगर पुलिस के कर्तव्यों व उनके मानवाधिकारों की बात करें तो पता चलेगा कि पुलिस ही मानवाधिकारों की रक्षक है।
दंड विधान के बजाये सुधारवादी सिद्धांत महत्वपूर्ण
कार्यक्रम में आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने दंड विधान के बजाये सुधारवादी सिद्धांत को उचित बताया तथा कहा कि इस विश्वविद्यालय में दिये जाने वाले अहिंसा प्रशिक्षण एवं प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों से विद्यार्थियों में परिवर्तन आया है, यहां तक कि कसाई का व्यवसाय करने वाले पिता का पुत्र यहाँ रहकर अपने काम से विमुख हो चुका। हजारों विद्यार्थियों के विचारों को यहाँ दिये जाने वाले प्रशिक्षण ने बदला है। प्रो. अनिल धर ने इस दिवसीय शिविर को अहिंसा व शांति का बीजारोपण करने वाला बताया तथा सह-अस्तित्व को आवश्यक बताते हुये कहा कि यह सच्चाई है कि जीवन अन्ततः प्रेम व अहिंसा से ही चलेगा। कार्यक्रम में राजस्थान पुलिस सेवा की अधिकारी नमिता खोखर भी विशिष्ठ अतिथि के रूप में मंचस्थ थीं। अतिथियों का स्वागत डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. प्रगति भटनागर आदि ने किया। अंत में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने आभार ज्ञापित किया। उन्होंने बताया कि इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में प्रदेश के विभिन्न महाविद्यालयों के विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। शिविर में अहिंसा एवं मानवाधिकारों के विभिन्न पहलुओं पर अलग-अलग तकनीकी सत्रों में प्रशिक्षणार्थियों को व्यावहारिक एवं सैद्धांतिक ज्ञान विषय-विशेषज्ञों द्वारा दिया गया।
हिंसा के कारण फैले असंतुलन को रोकने के लिये अहिंसा प्रशिक्षण जरूरी- प्रो. त्रिपाठी
29 जनवरी, 2018। इस तीन दिवसीय अहिंसा एवं मानवाधिकार सम्बंधी युवा प्रशिक्षण शिविर के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुये दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कहा है कि विश्व में जो हिंसा के कारण असंतुलन है, उसे रोकने और संतुलित करने के लिये अहिंसा प्रशिक्षण की आवश्यकता है। प्रशिक्षित युवा वर्ग ही इसका समाधान कर सकते हैं। उन्होंने महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुये बताया कि उन्होंने पहली बार अहिंसा को आत्मा से निकाल कर चैराहे पर खड़ा किया और उसे सार्वजनिक बनाया। उन्होंने कहा कि जैन विश्वभारती संस्थान अपने अहिंसा एवं शांति विभाग द्वारा अहिंसा की चिंगारी पैदा करने के कार्य में लगा हुआ है और विश्वास है कि हिंसा के प्रबल ज्वार में यह अहिंसा की चिंगारी ही विश्व में बदलाव लायेगी। उन्होंने विश्वविद्यालय के अनुशास्ताओं आचार्य तुलसी, महाप्रज्ञ व महाश्रमण ने अहिंसा को सार्वभौम बनाने के लिये प्रयास किये हैं। आचार्य महाप्रज्ञ की अहिंसा यात्रा के उदाहरण देते हुये एवं आचार्य महाश्रमण द्वारा ईमानदारी व नैतिकता को आम जन में संचारित करने के लिये जा रहे कार्यों का उल्लेख किया। डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने शिविर के तीनों दिनों के कार्यक्रमों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि इस तीन दिवसीय शिविर में विवेक माहेश्वरी, समणी ऋजुप्रज्ञा, प्रो. अनिल धर, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, प्रो. एपी त्रिपाठी, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच आदि ने शिविरार्थियों को अहिंसा का प्रशिक्षण प्रदान किया। शिविर के दौरान सभी को नियमित रूप से ध्यान, प्राणायाम व योग का अभ्यास करवाया गया। शिविरार्थी विक्रम सिंह राठौड़ चूरू, पीताम्बर शर्मा डीडवाना, ओमप्रकाश बिजारणियां, ममता कंवर राणावास, गणपत डीडवाना, पारूल शर्मा किशनगढ व लक्ष्मण विश्नोई नागौर ने कार्यक्रम में अपने अनुभव साझा करते हुये व्यवस्थाओं की प्रशंसा की तथा शिविर में आये परिवर्तनों के बारे में बताया। अंत में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगल किशोर दाधीच ने आभार ज्ञापित किया। डाॅ. विकास शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन किया।
प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कार
इस तीन दिवसीय युवा प्रशिक्षण शिविर के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां दी गई एवं प्रतियोगितायें आयोजित की गई, जिनमें विजेता रहे प्रतिभागियों को समापन समारोह में पुरस्कार प्रदान किये गये। एकल गायन प्रतियोगिता में प्रथम राकेश नागौर, द्वितीय रविन्द्र कुमार डीडवाना एवं तृतीय स्थान पर ममता आचार्य राणावास रहे। एकल नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर दीपिका सोनी, द्वितीय ममता कंवर राणावास एवं तृतीय स्थान पर निर्मला राणावास रही। समूह नृत्य प्रतियोगिता में प्रथम पिंकी पारीक एवं समूह लाडनूं, द्वितीय निशा एवं समूह किशनगढ व नीलम एवं समूह राणावास तथा तृतीय स्थान पर पीताम्बर एवं समूह डीडवाना रहे। वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम नरेन्द्र सिंह राठौड़ डीडवाना, द्वितीय पीताम्बर शर्मा डीडवाना एवं तृतीय स्थान पर दीनदयाल डीडवाना रहे।
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