जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में गणेश चतुर्थी व हिन्दी दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन
लिपि के आविष्कर्ता थे गणेश- प्रो. जैन
लाडनूँ 13 सितम्बर 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में गणेश चतुर्थी पर्व के साथ हिन्दी दिवस भी मनाया गया। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने गणेश चतुर्थी को उत्साहवर्द्धक त्यौंहार बताया तथा कहा कि इस अवसर पर होने वाले महोत्सव इस देश की पहचान के रूप में देखे जाते हैं। उन्होंने बताया कि लिपि के आविष्कारक के रूप में गणेश को माना गया है, इसलिये हिन्दी दिवस पर उन्हें मनाने की प्रासंगिकता भी है। उन्होंने हिन्दी भाषा में नई शब्दावलियों के निर्माण की जरूरत बताते हुये कहा कि इससे हिन्दी समृद्ध बनेगी। प्रभारी डाॅ. गिरीराज भोजक ने कहा कि गणेश की प्रतिमा में जो उनका विलक्षण स्वरूप दिखाई देता है, वह शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के लिये प्रेरणादायी व शिक्षाप्रद है। संयोजक डाॅ. सरोज राय ने कहा कि हमें अपनी राष्ट्रभाषा को अपनाना चाहिये तथा उसका प्रयोग करके गर्व का अनुभव होना चाहिये। कार्यक्रम में छात्राध्यापिका प्रियंका सिखवाल व सरोज ने भी विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. भाबाग्रही प्रधान, डाॅ. विष्णु कुमार, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. गिरधारी लाल शर्मा, डाॅ. आभासिंह, मुकुल सारस्वत, देवीलाल कुमावत आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन मोनिका सैनी ने किया।
हिन्दी साहित्यकारों के नामों पर अंताक्षरी
आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में हिन्दी दिवस के अवसर पर छात्राओं ने हिन्दी साहित्यकारों के नामों पर आधारित अंताक्षरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में 30-30 छात्राओं के समूह बनाकर उनमें प्रतिद्वंद्विता करवाई गई। प्रतियोगिता में निरमा प्रजापत एवं समूह विजेता रहा। द्वितीय स्थान पर प्रीति भूतोड़िया एवं समूह रहा। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने हिन्दी को उत्तर से दक्षिण तक मान्य भाषा बनाने की आवश्यकता बताते हुये कहा कि इसके लिये व्यापक अभियान चलाया जाना चाहिये। सोमवीर सांगवान ने हिन्दी को व्यावसायिक एव शैक्षणिक स्तर पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में अपनाये जाने की आवश्यकता बताई। अभिषेक चारण ने बताया कि हिन्दी हमेशा समृद्ध भाषा रही है और इसमें अकूत साहित्य की रचना हुई है। प्रसिद्ध अंग्रेज विद्वानों ने यहां की प्रसिद्ध हिन्दी पुस्तकों के माध्यम से हिन्दी को सीखा था। कार्यक्रम में कुसुम नाई, महिमा प्रजापत, रश्मि बोकड़िया, भगवती निठारवाल, सरिता शर्मा व सुरैया बानो ने भी विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन कंचन स्वामी ने किया।
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