जैन विश्वभारती संस्थान के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में तीन दिवसीय अहिंसा, शांति व मानवाधिकार प्रशिक्षण शिविर का आयोजन
मानवाधिकारों की रक्षा के लिये शांति व सद्भावनाजरूरी- प्रो. शर्मा
लाडनूँ 2 फरवरी 2019। हरियाणा के केन्द्रीय विश्वविद्यालय महेन्द्रगढ के प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने कहा है कि शांति के बिना सद्भावना नहीं हो सकती और सद्भावना के बिना मानवाधिकारों की रक्षा नहीं हो सकती है। हमारे समाज और हमारे राष्ट्र को हमसे जो अपेक्षायें हैं, उनके अनुसार हमें एक अच्छा मानव, एक अच्छा शिक्षक और एक अच्छा विद्यार्थी बनने के लिये आवश्यक है कि इसके लिये उचित प्रशिक्षण भी हो। अहिंसा एवं शांति तथा मानवाधिकारों सम्बंधी प्रशिक्षण इसी प्रयास का हिस्सा है। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में आयोज्य अहिंसा, शांति व मानवाधिकार प्रशिक्षण के तीन दिवसीय युवा शिविर के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण की अवधारणाओं से अब थकावट आ चुकी है। इसमें नुकसान अधिक है और फायदा कम। वैश्वीकरण का प्रयोग भी अब ठीक से करने की आवश्यकता है। सार्वभौमिक भ्रातृत्व की भावना का समुचित विकास होना चाहिये।
हिंसा के माहौल में अहिंसा का प्रशिक्षण महत्वपूर्ण
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने विश्व भर में चारों तरफ फैले हिंसा के माहौल में अहिंसा की बात करना और अहिंसा का प्रशिक्षण देना बहुत ही महत्वपूर्ण है। विश्वविद्यालय के द्वितीय अनुशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा प्रशिक्षण की तकनीक दी। उनका मानना था कि जब हिंसा का प्रशिक्षण हो रहा है तो अहिंसा का प्रशिक्षण भी होना चाहिये। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ की अहिंसा यात्रा से शुरू हुई अहिंसा यात्रा के बारे में विवरण बताये तथा आचार्य महाश्रमण द्वारा वर्तमान में की जा रही अहिंसा यात्रा के बारे में बताते हुये कहा कि इस अहिंसा यात्रा का पैगाम नैतिकता, सद्भावना व नशामुक्ति - ये तीन सूत्र हैं। इनके प्रसार से देश में व्यापक सुधार संभव है।
वैश्विक परिवार की जगह वैश्विक बाजार बन गया है
शोध निदेशक प्रो. अनिल धर ने कहा कि भूमंडलीकरण का समय जरूर आया है, लेकिन यह विश्व बाजारीकरण के रूप हैं, जबकि हमारी प्राचीन विचारधारा व संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम की रही है। हम विश्व को एक सार्वभौम-परिवार के रूप में मानते रहे हैं, जबकि अब इसे सार्वभौम-बाजार माना जाने लगा है। हमें हमेशा भारतीय परम्पराओं को साथ लेकर चलना है। अहिंसा व शांति सहित समस्त जीवन मूल्यों को समझने की जरूरत है। उन्होंने गलतियों से सीख कर आगे बढने की जरूरत बताई तथा कहा कि जो गलतियों से रूक जाता है और अकर्मण्य हो जाता है, वो उचित नहीं है। कार्यक्रम में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच ने प्रारम्भ में तीन दिवसीय शिविर की रूपरेखा प्रस्तुत की और बताया कि यह पहला विश्वविद्यालय है, जिसमें अहिंसा एवं शांति के लिये अलग से विभाग है और विद्यार्थियों को अहिंसा की शिक्षा प्रदान की जाती है। उन्होंने हर साल युवा वर्ग के लिये लगाये जाने वाले अहिंसा प्रशिक्षण शिविरों की जानकारी दी और अहिंसा प्रशिक्षण की तकनीक के बारे में बताया। अंत में डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने आभार ज्ञापित किया। इस अवसर पर योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. रेखा तिवाड़ी, शत्रुघ्न आदि एवं सम्भगी उपस्थित थे।
हिंसा के जनक क्रोध पर काबू पाना पहली आवश्यकता- आचार्य पाटोदिया
4 फरवरी 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में चल रहे तीन दिवसीय अहिंसा, शांति एवं मानवाधिकार प्रशिक्षण शिविर का समापन सोमवार को समारोह पूर्वक किया गया। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुये सेंटर फाॅर पब्लिक अवेयरनेस एंड इंफोरमेशन जयपुर के निदेशक आचार्य प्रो. सत्यनारायण पाटोदिया ने कहा कि क्रोध हिंसा का जनक माना जाता है, इसलिये सबसे पहले अपने क्रोध पर जीत हासिल करनी चाहिये। अगर हम क्रोध पर काबू पा लेते हैं तो समूचे समाज में सुधार लाने में समर्थ हो जाते हैं। उन्होंने अहिंसा एवं शांति विभाग के कार्य और अहिंसा प्रशिक्षण कार्यक्रम की सराहना की तथा तीन दिवसीय प्रशिक्षण को सभी संभागियों के जीवन का महत्वपूर्ण अंश बताया। समारोह की अध्यक्षता करते हुये शोध निदेशक प्रो. अनिल धर ने कहा कि अहिंसा प्रशिक्षण शिविर में जो कुछ सीखा, उसे जीवन में अपनाया जाना आवश्यक है। समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान ने शिविर में सीखे गये प्रेक्टिकल एवं थ्योरिकल प्रशिक्षण को जीवन में, कार्यक्षेत्र में, व्यवहार व आचरण में उतारने की आवश्यकता बताई और कहा कि जो कुछ सीखा गया उसे समाज में रिफ्लेक्ट करें, तभी उसकी सार्थकता होगी। शिविरार्थी पीयुष शर्मा डीडवाना, दारासिंह लक्ष्मणगढ आदि ने अपने शिविर के अनुभव बताते हुये कहा कि उन्होंने इस शिविर में गुस्सा पर नियंत्रण करना, भावों को संयमित करना, धैर्य रखना और ध्यान का अभ्यास करना सीखा है, जो उनके जीवन में सदैव काम आयेगा। प्रारम्भ में अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच ने तीन दिवसीय शिविर की रिपोर्ट प्रस्तुत की और बताया कि शिविरार्थी युवाओं को कितनी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई। अंत में डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
पुरस्कारों का वितरण
तीन दिवसीय शिविर के दौरान आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता के प्रतिभागियों में विजेता रहने वाले युवाओं को पुरस्कार प्रदान करके सम्मानित किया गया। ‘‘आर्थिक आधार पर आरक्षण कितना उचित है’’ विषय पर आयोजित इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर नरेन्द्र सिंह राठौड़ डीडवाना रहे। द्वितीय स्थान पर ऋशिकुल काॅलेज के दारा सिंह व तृतीय स्थान पर नृत्य व संगीत के कार्यक्रम में प्रथम रहे धनराज सोनी नागौर व द्वितीय रहे प्रेमाराम को,सामुहिक नृत्य में आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय की छात्रायें पिंकी, पूजा व सलोनी को तथा एकल नृत्य में जग्गाराम भाकर प्रथम, शिल्पा शर्मा महेन्द्रगढ द्वितीय, टीटी काॅलेज का गणपत और संजय डेगाना तृतीय रहे। इनके अलावा सांत्वना पुरस्कार के रूप में विष्णु कुमार नागौर, मनोज कुमार व पीताम्बर शर्मा को सम्मानित किया गया।

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