जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी समारोह का शुभारम्भ
विश्व के महानतम दार्शनिकों में से एक हैं आचार्य महाप्रज्ञ-प्रो. दूगड़
लाडनूँ, 29 जून 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी समारोह का शुभारम्भ करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ इस विश्वविद्यालय के दूसरे अनुशास्ता रहे हैं। वे एक ऐसी महान विश्व विभूति थे जो किसी भी धर्म-सम्प्रदाय की दीवारों से परे थे। आचार्य महाप्रज्ञ का जीवन, चिन्तन एवं शिक्षाएँ सम्पूर्ण मानवता को समर्पित थे। वे हर धर्म के सत्य को स्वीकार करते थे। विश्व के महान् दार्शनिक आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य अत्यधिक समृद्ध एवं व्यापक है, जिसमें दर्शन के सभी क्षेत्रों को समाहित किया गया है। वे विश्व के महानतम दार्शनिकों में से एक रहे हैं, लेकिन उनके दर्शन का व्यापक प्रसार अभी तक सम्पूर्ण वैश्विक स्तर पर नहीं हो पाया है। वर्तमान में उनके चिन्तन को सम्पूर्ण विश्व तक पहुंचाने की अति आवश्यकता है, जिस हेतु ‘आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष’ के उपलक्ष में सम्पूर्ण वर्ष भर विभिन्न गतिविधियों का आयोजन कर इस दिशा में सार्थक प्रयास किये जाएंगे। आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षा ध्यान, जीवन विज्ञान, अहिंसा प्रशिक्षण व सापेक्ष अर्थशास्त्र ये चार अमूल्य रत्न हमें प्रदान किये हैं, जिनका प्रचार-प्रसार मानवता को बचाने के लिये, परिवार-समाज और विश्व में शांति कायम करने एवं मानवता को अक्षुण्ण रखने के लिये वर्तमान की परम आवश्यक है।
महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी वर्ष के कार्यक्रम
प्रो. दूगड़ ने कहा कि उनके जन्मशताब्दी समारोह के दौरान इस एक वर्ष में किये जाने वाले विविध कार्यक्रमों को अंतिम रूप दिया गया है। तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़ी हुई विभिन्न 16 संस्थाओं ने इसके लिये अलग-अलग कार्यक्रम निर्धारित किये हैं, जिनमें चिकित्सा, सेवा, साहित्य आदि सभी क्षेत्रों में कार्य किये जायेंगे। उन्होंने बताया कि जैन विश्वभारती संस्थान ने प्रबंध मंडल की बैठक में संस्थान में आचार्य महाप्रज्ञ मेडिकल काॅलेज आफ नेचुरोपैथी का संचालन करना, बड़े पैमाने पर आचार्य महाप्रज्ञ व्याख्यानमाला का आयोजन करने, गीता की तरह से रचित आचार्य महाप्रज्ञ की कृति ‘‘सम्बोधि’’ पर 50 विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में व्याख्यानों का आयोजन, महाप्रज्ञ के साहित्य का प्रसार करने के लिये उनके साहित्य को पुनर्सम्पादन के पश्चात प्रकाशन करके 100 विश्वविद्यालयों में भेंट करना और उन्हें विश्वविद्यालयों में उचित स्थान दिलवाना, संस्थान की शोध-पत्रिका ‘‘तुलसी प्रज्ञा’’ का विशेषांक प्रकाशित करना और एक पुस्तक का प्रकाशन करना, संस्थान में आचार्य महाप्रज्ञ पर केन्द्रित विभिन्न प्रतियोगिताओं एवं कार्यक्रमों का आयोजन, जयपुर के जैन समाज के सहयोग से संस्थान द्वारा जयपुर में विशेष कार्यक्रम का आयोजन करना आदि विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन निरन्तर किया जायेगा।
लोगों को नैतिक जीवन के लिये किया प्रेरित
संस्थान के प्रबंध मंडल के सदस्य प्रो. नलिन के. शास्त्री ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ महामानव थे, जिन्हें किसी धर्म में बांधना उनके साथ न्याय नहीं होगा। वे ऐसे शिखर पुरूष थे, जिन्होंने वीरता, धीरता, गंभीरता को समाहित किया और वे प्रज्ञा और योग को रूपान्तरित करने में समर्थ हुये। महावीर की प्रज्ञा के सूत्र उनकी अनेकांतमयी वाणी में निःसृत होते थे। उनके चिंतन-मनन में अहिंसक सोच का प्रदुर्भाव कराया। उन्होंने प्रत्येक भारतीय विषय को तलस्पर्श किया था। उनकी अहिंसा यात्रा में जन-जन से सम्पर्क करके लोगों को नैतिक जीवन जीने को प्रेरित किया और जन-जन की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया। वे सम्पूर्ण मानवता के लिये दार्शनिक रूप से चिंतन करने वाले अद्वितीय और अनुपम थे। उनका संवेदनशील साहित्य पूरी मानवता को छूता है। दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने अपने सम्बोधन में आचार्य महाप्रज्ञ के टमकोर में जन्म से लेकर उनके निर्वाण तक की जीवन यात्रा को प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि महाप्रज्ञ ने 300 से अधिक ग्रथों की रचना की है। उनके द्वारा प्रस्तुत की गई निष्पतियां आज भी चिंतन के योग्य और जीवन में उतारने योग्य सूत्र हैं।
महाप्रज्ञ में प्रतिभा का प्रस्फोट था
समणी कुसुम प्रज्ञा ने उनके समर्पित, विनम्र और चरित्र-सम्पन्नता के गुणों का विश्लेषण किया और उनमें स्वामी विवेकानन्द के समान प्रतिभा का प्रस्फोट था। प्राकृत व संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष समणी संगीत प्रज्ञा ने कहा कि उन्होंने आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ का युग देखा है और आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य पर शोध करके पीएचडी भी की है। आचार्य महाप्रज्ञ में तुलसी के प्रति गहरा समर्पण था। अंत में कुलसचिव रमेश कुमार मेहता ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी का संचालन डा. योगेश कुमार जैन ने किया। संगोष्ठी में डाॅ. जसबीर सिंह, डाॅ. युवराज सिंह खांगारोत, विताधिकारी आरके जैन, दूरस्थ शिक्षा के सेक्शन प्रभारी पंकज भटनागर, मोहन सियोल, अजय कुमार पारीक, प्रफुल्ल वालोकर, रमेशदान चारण, शरद जैन सुधांशु, दीपक माथुर, निरंजन सांखला, राजेन्द्र बागड़ी, रामनारायण गैणा, प्रकाश चंद गिड़िया, भवनेश जैन, सुरेन्द्र कुमार काशलीवाल, रमेश सोनी आदि उपस्थित थे।
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