जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

बड़े लक्ष्य के लिये छोटे लक्ष्य को छोड़ देना भी तपस्या है- प्रो. भागर्व

लाडनूँ, 9 अगस्त 2019। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के तत्वावधान में ‘‘आचार्य महाप्रज्ञ का प्राच्य-विद्याओं को अवदान’’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारम्भ सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. दयानन्द भार्गव जयपुर ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ को जैन कहना उन्हें संकुचित बनाना है, वे भूत, भविष्य और वर्तमान की मानवता के संदेश वाहक थे। उनकी 125 पुस्तकों से उन्होंने कुल 982 उद्धरण दिये, लेकिन इन सबमें से एक भी उद्धरण ऐसा नहीं है, जो केवल जैन मत का समर्थक और वेदांत के खिलाफ हो। उन्होंने अनेकांत के सिद्धांत को जीवन में उतारा था। उनकी ही विशेषता रही यह कि अनेकांत के आधार पर दो परस्पर विरोधी चीजों को ऐसा उपकारी भाव बना देना कि उनमें एक-दूसरे का विरोध नहीं रहे। प्रो. भार्गव ने आचार्य महाप्रज्ञ और उनके बीच के अनेक संस्मरण सुनाये तथा कहा कि बड़े लक्ष्य के लिये छोटे लक्ष्य को छोड़ देना भी तपस्या ही है। साधक का साधन निरपेक्ष होना और साधन की अपेक्षा नहीं करना भी साधना का एक महत्वपूर्ण बिन्दु होता है। उन्होंने महाप्रज्ञ की विचारधारा के महत्वपूर्ण बिन्दुओं का भी उल्लेख करते हुये उनकी नवीन दृष्टि की सराहना की।

चलते-फिरते विश्वविद्यालय थे महाप्रज्ञ

विशिष्ट अतिथि प्रो. प्रेमसुमन जैन ने आचार्य महाप्रज्ञ को चलते-फिरते विश्वविद्यालय की संज्ञा दी और कहा कि उनमें पूरे विश्व का ज्ञान-विज्ञान समाहित था। उन्होंने शिक्षा, पर्यावरण, अध्यात्म, योग साधना, प्रेक्षाध्यान, अहिंसा आदि पर व्यापक विवेचन प्रस्तुत किया। उन्होंने कायोत्सर्ग, काया-क्लेश, निर्गन्थ आदि अनेक शब्दों की नई व्याख्या प्रस्तुत की। उनके द्वारा किया गया आगमों का सम्पादन और उनकी व्याख्या अपने आप में अद्भुत है। विशिष्ट अतिथि और इस राष्ट्रीय सेमिनार के प्रायोजक जैन महासंघ के महामंत्री सूरजमल धोका ने अपने 25 वर्षों की सेवा के बारे में बताया। समणी नियोजिका समणी मल्लीप्रज्ञा ने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने स्वास्थ्य को नई परिभाषा दी और कर्म-सिद्धांत के शारीरिक स्थितियों पर प्रभाव के बारे में बताया था। अध्यक्षता करते हुये विभागाध्यक्ष प्रो. दामोदर शास्त्री ने आचार्य महाप्रज्ञ के साथ के अनेक भावप्रधान संस्मरण सुनाते हुये कहा कि जीवास्तिकाय, मुदित आदि विभिन्न शब्दों को विशेष अर्थ प्रदान किया। आगम के आधार पर उन्होंने शब्दों की उत्पति और अर्थ को नई दृष्टि प्रदान की। हमें उनसे प्रेरणा लेकर आगे बढना चाहिये। कार्यक्रम के प्रारम्भ में संगोष्ठी निदेशिका समणी संगीत प्रज्ञा ने स्वगत वक्तव्य प्रस्तुत किया और अंत में समणी भास्कर प्रज्ञा ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डा. सत्यनारायण भारद्वाज ने किया। संगोष्ठी में देश भर के विद्यान भाग ले रहे हैं।

दार्शनिक योगी और प्राच्य विद्याओं को उत्कर्ष पर पहुंचाने वाले थे महाप्रज्ञ- प्रो. दूगड़

10 अगस्त 2019। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के तत्वावधान में ‘‘आचार्य महाप्रज्ञ का प्राच्य-विद्याओं को अवदान’’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा है कि आचार्य महाप्रज्ञ एक दार्शनिक योगी व प्राच्य विद्याओं को उत्कर्ष पर पहुंचाने वाले व्यक्ति के रूप में हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान से बाहर भी जाने जाते हैं। वे विद्वानों के साथ जीवन-पर्यन्त ज्ञान पर चर्चा व विमर्श करते रहे थे। महाप्रज्ञ ने दर्शन के गूढ रहस्यों को जितना दार्शनिक भाषा में व्यक्त किया, उतना ही जन सामान्य की भाषा में भी आसान बनाया। उनकी राजस्थान विश्वविद्यालय में किये गये व्याख्यानों पर आधारित पुस्तक ‘‘जैन न्याय का विकास’’ से प्रमाण मीमांसा ग्रंथ और जैन न्याय की तरफ सबका ध्यान गया था। उन्होंने आचारांग के आधार पर अहिंसा व शांति के क्षेत्र में नये पदचिह्न प्रतिष्ठापित किये। सभी संदर्भों को एकत्रित करके उन्होंने अपनी बात कही। प्राचीन विद्याओं को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में रखना उनकी विशेषता था। प्रो. दूगड़ ने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर इस विश्वविद्यालय में यह तीसरा कार्यक्रम है। इस अवसर पर महाप्रज्ञ के ग्रंथ सम्बोधि पर 100 विश्वविद्यालयों में व्याख्यान आयोजित करने की उनकी योजना है, जिसमें सभी विद्वानों का सहयोग अपेक्षित है। इसका उद्देश्य है कि ‘‘सम्बोधि’’ के संदेश को नई पीढी के युवावर्ग तक पहुंचाना है। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित करने की योजना की जानकारी भी दी। विश्वविद्यालय के अन्तर्गत संचालित भगवान महावीर अन्तर्राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र के तत्वावधान में ऐसी समस्त जैन संस्थाओं और व्यक्तियों का नेटवर्क स्थापित करने की जानकारी भी दी, जिसमें शोध क्षेत्र में परस्पर सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सके।

प्राच्य विद्याओं को नया आयाम दिया महाप्रज्ञ ने

समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. धर्मचंद जैन ने कहा है कि आचार्य महाप्रज्ञ ने आगमों का भाष्य किया। उनके आचारांग के भाष्य में जो सूक्ष्म दृष्टि से विवेचना की गई है, वह उनका वैशिष्ट्य था। प्राच्य विद्या में प्राचीन समय में 62 विद्याओं और 84 विद्याओं का क्षेत्र रहा था। प्राच्य विद्या में भारत और पूर्वी देशों की विद्याओं को माना जाता था, लेकिन महाप्रज्ञ की व्यापक दृष्टि थी। उन्होंने पाश्चात्य विद्याओं को भी समझा और उनका विवेचन किया। उन्होंने प्राच्य विद्याओं को नवीन आयाम दिया और शरीर विज्ञान, हार्मोनों की क्रियाओं, प्रेक्षाध्यान से आने वाले परिवर्तनों आदि की बात कही। महाप्रज्ञ ने अनेकांत की परम्परागत परिभाषा से हट कर आधुनिक युग की जीवन शैली से उसको जोड़ा और उसे समयक् दृष्टि के रूप में प्रस्तुत करते हुये जीवन की समस्त समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया। विशिष्ट अतिथि प्रो. हरिशंकर पांडेय ने आचार्य महाप्रज्ञ को सामान्य मनुष्य के बजाये साबर तंत्र के आधार पर अदेही गुरू के रूप में अधिक बलवान और समर्थ साबित किया। उन्होंने कहा कि महाप्रज्ञ के एक-एक सूत्र को पकड़ लें तो जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। संगोष्ठी की निदेशिका समणी संगीत प्रज्ञा ने प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुये बताया कि संगोष्ठी में विभिन्न प्रांतों से विद्वानो नें यहां पहुंच कर हिस्सा लिया, जिनमें 17 तो देश के प्रख्यात विद्वान हैं और सभी ने अपने शोध-आलेख प्रस्तुत किये। संस्थान के शोध छात्रों ने भी पत्रवाचन किये। प्रारम्भ में संस्थान के प्राकृत व संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. दामोदर शास्त्री ने अपने स्वागत वक्तव्य में बताया कि महाप्रज्ञ ने आयुर्वेद, अध्यात्म, वेद, विज्ञान आदि सभी पर लिखा है। उन्होंने सबसे महाप्रज्ञ के साहित्य को पढने के लिये प्रेरित किया। इस अवसर पर सभी सम्भागियों को प्रमाण पत्रों का वितरण किया गया। कार्यक्रम का संचालन समणी सम्यकप्रज्ञा ने किया। अंत में डाॅ. योगेश कुमार जैन ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में प्रो. प्रद्युम्न शाह, प्रो. प्रेमसुमन जैन, प्रो. कल्पना जैन, डाॅ. सहदेव शास्त्री, ज्योति बाबू, सुमत जैन, प्रो. अशोक कुमार जैन, डाॅ. मनीषा जैन, डाॅ. आनन्छ जैन, डाॅ. मंजुल प्रज्ञा, डाॅ. समणी अमल प्रज्ञा, डाॅ. पुष्पा मिश्रा, मीनाक्षी मारू, समणी ऋजुप्रज्ञा, प्रो. अनिल धर, प्रो. बीएल जैन, डाॅ. जसबीर सिंह आदि उपस्थित थे।

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