शिक्षा विभाग एवं आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

शब्दों के सही उपयोग से क्रांति और गलत उपयोग से भ्रांति पैदा होती है- प्रो. चैबे

लाडनूँ, 13 नवम्बर 2019। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष महोत्सव के अन्तर्गत जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग एवं आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘आचार्य महाप्रज्ञ का हिन्दी साहित्य को अवदान’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ बुधवार को यहां महाप्रज्ञ-महाश्रमण ऑडिटोरियम में किया गया। राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारम्भ सत्र को सम्बोधित करते हुये मुख्य अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चंदन चैबे ने कहा कि शब्दों का सही उपयोग क्रांति को जन्म दे सकता है और शब्दों के गलत उपयोग से भ्रांति पैदा होती है। साहित्य के मूल में अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में भाषा ही होती है और भाषा में शब्द और उनका व्यवस्थित रूप होता है। उन्होंने संत कबीर, तुलसीदास आदि के साहित्य की विशेषताओं के बारे में बताते हुये कहा कि तप, अध्यात्म, संस्कृति, परम्परा आदि उनमें सामहित थी, लेकिन आचाय्र महाप्रज्ञ के साहित्य में आध्ुानिकता और परम्परा दोनों को महत्व दिया गया है। अर्थशास्त्र की दृष्टि से उन्होंने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य की साम्यता चाणक्य और महावीर प्रसाद द्विवेदी के साथ की जा सकती है। द्विवेदी की पुस्तक सम्पति शास्त्र और महाप्रज्ञ की पुस्तक महावीर का अर्थशास्त्र दोनों महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। उन्होंने कहा कि अब देश बदल रहा है। देश का मन भी बदल रहा है; अब साहित्य के अध्ययन की नई दिशायें व विषय मिल रहे हैं। भारत के 6 आस्तिक दर्शनों एवं 3 नास्तिक दर्शनों को एक-दूसरे की साम्यता में पढना शुरू कर दिया है।

महाप्रज्ञ की रचनाओं के केन्द्र में मनुष्य रहा

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि आदिकाल में रचनायें संवेदनशीलता से निःसृत होती थी, लेकिन आज के बहुत सारे कवि मात्र कल्पना के सहारे काव्य पाठ करते हैं, उनमें संवेदना नहीं होती। साहित्य की सृजना समस्याओं से होती है, लेकिन आचार्य महाप्रज्ञ ने समस्याओं को केन्द्र बनाने के बजाये व्यक्ति को केन्द्रित रख कर अपनी रचनाओं का सृजन किया। उन्होंने अनुभूतियों के आधार पर लिखा था। ऋषभायण आदि अनेक साहित्य रचनाओं में उन्होंने मनुष्य को ही केन्द्रित बनाकर साहित्य सृजन किसा है। देश के मूर्धन्य साहित्यकारों ने महाप्रज्ञ को पढा और उनकी प्रशंसा भी की है। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ की रचनाओं एवं छोटी-छोटी कविताओं को उद्धृत करते हुये बताया कि उनकी रचनायें व्यक्ति प्रधान होती हैं तथा वे आगे बढने की, महान बनने की प्रेरणा देती है। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संगठन मंत्री विपिन चन्द्र नई दिल्ली ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने सम्बोधन में कहा कि आधुनि साहित्यकार समाज के सामने विमर्श और संघर्ष खड़ा करते हैं और समाज को भ्रमित करते हैं। पद, प्रतिष्ठा, पुरस्कार व पैसे के लिये साहित्यकारों की दिशा भटक रही है। ऐसे में महाप्रज्ञ द्वारा स्थापित साहित्यिक संयम से मार्गदर्शन लेने की आवश्यकता है। महाप्रज्ञ का जीवन अद्भुत व विशाल था कि उनका चलता-फिरता पुस्तकालय कह सकते हैं। उन्होंने महाप्रज्ञ की कृति ऋषभायण का उल्लेख करते हुये कहा कि इसमें उन्होंने वसुधैव कुटुम्बकम का भाव व्यक्ति में भरने का काम किया है। यह कालजयी ग्रंथ है और दिग्भ्रमित व मोह रूपी समाज को दिग्दर्शन देने का महतवपूर्ण कार्य करता है।

दो पुस्तकों का विमोचन

इस अवसर पर दो पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘भारत वर्ष में सामाजिक विधान’’ एवं आचार्य धर्मकीर्ति द्वारा रचित एवं डाॅ. योगेश जैन की अनुवादित-सम्पादित पुस्तक ‘‘सम्बंध परीक्षा’’ का विमोचन अतिथियों ने कार्यक्रम के दौरान किया। प्रारम्भ में मथुरा के गीतकार-साहित्यकार प्रो. नरेन्द्र शर्मा कुसुम ने विषय प्रवर्तन करते हुये कहा कि महाप्रज्ञ का साहित्य विशाल एवं वैविध्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि संवेदना होने पर ही साहित्य बन सकता है। संवेदना की कोख से साहित्य का जन्म होता है। विज्ञान के कारण आज मनुष्य से संवेदना छिन गई है। आदमी और आदमी के बीच फासला बढ गया है। यह फासला केवल साहित्य से ही पाटा जा सकता है। विज्ञान तो हमें पड़ौसीपन तक नहीं लौटा सकता है। संवेदना ही मानव का पर्याय है। इससे पूर्व संगोष्ठी के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने संगोष्ठी के उद्देश्य पर प्रकाश डाला और आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर किये जाने वाले विभिन्न आयोजनों के बारे में बताया। सरस्वती की प्रतिमा को माल्यापर्ण व छात्राओं द्वारा मंगलाचरण के साथ कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया। अतिथियों का स्वागत प्रो. एपी त्रिपाठी, डाॅ. भाबाग्रही प्रधान, डाॅ. मनीष भटनागर, कमल कुमार मोदी आदि ने किया। इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के देश भर से करीब 100 विद्वान भाग ले रहे हैं। संगोष्ठी का संचालन डाॅ. गिरीराज भोजक ने किया। संगोष्ठी के प्रथम चरण में अध्यक्षता प्रो. गोपानाथ शर्मा ने की। सह अध्यक्ष सुरेन्द्र सोनी चूरू ने की। इस सत्र में अलीगढ विश्वविद्यालय के प्रो. शम्भुनाथ तिवाड़ी एवं महेन्द्र जैन जयपुर पत्रवाचन किये। संचालन अभिषेक चारण ने किया।

महाप्रज्ञ के शब्दों का सौंदर्यबोध अद्वितीय है, वे नई ऊर्जा का संचार करते हैं- डाॅ. केके रत्तू

14 नवम्बर 2019। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष महोत्सव के अन्तर्गत जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग एवं आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘आचार्य महाप्रज्ञ का हिन्दी साहित्य को अवदान’’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में गुरूवार को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुये जयपुर दूरदर्शन केन्द्र के पूर्व निदेशक डाॅ. केके रत्तू ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में जो सौंदर्यबोध है, वह अद्वितीय है। हिन्दी शब्दों का प्रयोग, उनमें फ्लेवर देने और जिज्ञासाओं की शांति के साथ नई ऊर्जा का संचार करने की कला महाप्रज्ञ में थी। महाप्रज्ञ के अक्षरों में जीवन का दश्रन बहता था। महाप्रज्ञ कहते थे कि लोग किताबों को पढते हैं, लेकिन वे जीवन के दुःख और दुश्वारियों को पढते हैं। इस प्रकार वे पूरे विश्व में व्याप्त जीवन की समस्या, सबकी चिंताओं को दूर करने का प्रयास करने वाले महामानव थे। भारतीय वैदिक संस्कृति के बाद महात्मा बुद्ध, महावीर और उनके बाद गुरू नानक से लेकर महाप्रज्ञ तक सभी की धारा वैदिक संस्कृति की धारा ही है। उन्होंने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ की बातें इस प्रांगण से बाहर भी होनी चाहिये और उन्हें विश्व भर में फैलाने की आवश्यकता है। अगर हम विश्व-साहित्य के परिदृश्य में मूल्यांकन करें तो संत-काव्य में पहली पंक्ति में महाप्रज्ञ होंगे।

अज्ञान को तिरोहित करती है गुरूता

अलीगढ विश्वविद्यालय के प्रो. शम्भुनाथ तिवाड़ी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ का विशाल कृतित्व है और उनके कृतित्व में जितनी भी खोज की जायेगी, उतनी ही नई चीजें निकल कर सामने आयेगी। संत की गुरूता हमें मार्गदर्शन प्रदान करती है। गुरू ज्ञान नहीं देता बल्कि अज्ञान को तिरोहित करता है। गुरू रोशनी जलाता है और अज्ञान हट जाता है। उन्होंने कहा कि आज विश्वविद्यालयों में तीन चीजों का होना आवश्यक है- एटीट्यूट, बिहेवियर एवं कैरेक्टर। विशिष्ट अतिथि भंवर सिंह सामौर चूरू ने कहा कि प्रत्येक रचनाकार का संत या भक्त होना आवश्यक है। भक्ति के माध्यम से व्यक्ति की कमियां दूर होती है और दुष्प्र्रवृतियां छूट जाती है। इसी प्रकार जिसने सत्य से साक्षात्कार किया वहीं संत होता है। महाप्रज्ञ एक संत थे, उनका पूरा लेखन सत्य पर आधारित है। उन्होंने सत्य, चित्त व आनन्द की बातें कही है। इसी कारण उनकी रचनायें कालजयी हैं। उनकी रचनाओं में प्रेक्षाध्यान का अवदान तो शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल होना आवश्यक है और जीवन विज्ञान से उन्होंने पाठ्यक्रम को नया रूप दिया था। अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने आभार ज्ञापित करते हुये आचार्य महाप्रज्ञ के महाकाव्य ऋषभायण पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध किये जाने की आवश्यकता बताई। कार्यक्रम का प्रारम्भ मंगलाचरण से किया गया एवं डाॅ. गिरीराज भोजक ने दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का प्रगति विवरण प्रस्तुत किया। सम्भागी विजयकुमार आर्य व रामसिंह रैगर ने अपने अनुभव साझा किये। संचालन अभिषेक चारण ने किया।

काव्य गोष्ठी का आयोजन

दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में कुल 7 सत्रों का आयेाजन किया गया, जिनमें प्रो. गोपीनाथ शर्मा, प्रो. नरेन्द्र शर्मा कुसुम, प्रो. अनिल धर, प्रो. सुरेन्द्र सोनी, डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान, प्रो. भंवरदान सामौर, डाॅ. गजादान चारण, डाॅ. अजय कुमार दिल्ली, डाॅ. जगदीश कड़वासरा सीकर, डाॅ. प्रेरणा गौड़ जोधपुर, प्रो. नन्दिता बीकानेर, मणि कुमार दिल्ली, चारू चैहान, डाॅ. चारूलता वर्मा श्रीगंगानगर, पडा. जितेन्द्र सिंह जयपुर,अरविन्द विक्रम सिंह, डाॅ. के के तिवाड़ी, श्रवण पंडित, डाॅ. प्रेम बाफना, डाॅ. शक्तिदान चारण, मनीषा भोजक, डाॅ. समणी संगीत प्रज्ञा आदि ने शब्द सिद्धि व काव्य साधना, ऋषभयण की मूल संवेदना, अध्यात्म तत्व, चरित्र विकास, कर्माद का मर्म आदि विषयों पर पत्र-वाचन किया। बुधवार रात्रि को संगोष्ठी के अन्तर्गत काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने की। मुख्य अतिथि प्रो. चन्दन चैबे थे एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. शम्भुनाथ तिवाड़ी थे। काव्य गोष्ठी में निरमा विश्नोई, पूनम चारण, प्रतिष्ठा कोठारी, गीता पूनिया, दक्षता कोठारी, दीपक सोलंकी, गजराज कंवर, हेमेन्द्र पालड़िया व सुमन चैधरी ने अपनी कवितायें प्रस्तुत की। राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन एवं व्यवस्थाओं में डाॅ. प्रगति भटनागर, कमल कुमार मोदी, डाॅ. बलबीर चारण, सोमवीर सांगवान, अभिषेक शर्मा, डाॅ. भाबाग्रही प्रधान, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. आभासिंह, विष्णु कुमार, डाॅ. गिरधारीलाल, राजश्री शर्मा, श्वेता खटेड़, स्वाति शर्मा, दीपक माथुर, घासीलाल शर्मा, जगदीश यायावर आदि का सहयोग रहा।

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