आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर आचार्य महाप्रज्ञ कृत ‘जो सहता है वहीं रहता है’ पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत
सहन वही कर सकता है जो शक्तिशाली होता है
लाडनूँ, 17 फरवरी 2020। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में आयोजित ग्रंथ समीक्षा संगोष्ठी में स्वाति शर्मा ने आचार्य महाप्रज्ञ की कृति ‘‘जो सहता है, वहीं रहता है’’ की समीक्षा प्रस्तुत की। स्वाति ने बताया कि महाप्रज्ञ ने अपनी इस पुस्तक में बताया है कि व्यक्ति हमेशा समूह में निवास करता है और समूह में उसे अनेक व्यक्तियों के बीच रहना पड़ता है, उनके साथ जीना पड़ता है। ऐसे में उसे सबको सहन करने की आवश्यकता रहती है। चाहे प्राकृतिक वातावरण हो या सामाजिक माहौल, परिवार की मर्यादायें हों अथवा शासन के बंधन, व्यक्ति को सबको सहन करने की आदत का विकास करना होता है। तूफान के समय छोटे-छोटे पौधे झुक जाते हैं, तो वे अपना बचाव कर लेते हैं, लेकिन जो पेड़ कड़े होकर तने रहते हैं, उन्हें उखड़ना पड़ता है। वर्तमान में पारिवारिक इकाइयां छोटी होती जारही है, संयुक्त परिवारों से एकल परिवार बन रहे हैं, यह सब सहनशीलता के अभाव का परिणाम है। सहनशीलता का गुण व्यक्ति को मजबूत बनाता है, लेकिन आज का युवा उसे कायरता मान लेता है। जबकि कायता और सहनशीलता बिलुकुल विपरीत होते हैं। अगर कोई अपने आपको कहीं पर स्थापित करना चाहता है, तो उसमें सहनशक्ति का होना बहत जरूरी है और सहन तो वहीं कर सकता है जो अपने आप में शक्तिशाली होता है। स्वाति ने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने बहुत ही रोचक भाषा में सटीक उदाहरणाें का प्रयोग करते हुये ‘जो सहता है, वहीं रहता है’ पुस्तक की रचना की है। उन्होंने जीवन में परिवर्तन, समता की दृष्टि, व्यक्तित्व के विविध रूप, अपना आलंबन स्वयं बनें, प्रकृति एवं विकृति, दिशा और दशा, सापेक्ष सत्य, बुद्धि और अभय, न डरें और प डरायें आदि बिन्दुओं में अपने कत्य को तथात्मक ढंग से वर्णित किया है, जिसमें वैचारिक आश्चर्य है, धरातल की सच्चाई है और समुचित मार्गदर्शन व्याप्त है। इससे यह पुस्तक दिशा दिखाने वाली रेष्ठ कृति है। कार्यक्रम में डाॅ. अमिता जैन ने अंत में आभार ज्ञापित किया।
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