जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में ‘शिक्षा को कैसे बनावें आनंदकारी’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन

रचनात्मक कार्यों, सामाजिक गतिविधियों से जोड़ने पर शिक्षा आनन्ददायी बन सकती है -प्रो. जैन

लाडनूँ, 27 मार्च 2021। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में “संकाय संवर्धन कार्यक्रम” के अंतर्गत शनिवार को ‘शिक्षा को कैसे बनावें आनंदकारी’ विषय पर विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि गीत, संगीत, कला, नृत्य, प्राकृतिक संरक्षण, बागवानी करना, पेड़ लगाना, सेवा, असह्ययों की सहायता, रचनात्मक कार्य, सामाजिक गतिविधियों भ्रमण आदि से शिक्षा को आनंदकारी बनाया जा सकता है। समय का सदुपयोग, रचनात्मक कार्य एवं सकारात्मक सोच आदि से केवल शिक्षा ही नहीं बल्कि जीवन के हर पहलु को आनन्दमय बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रेम, शांति, करुणा, अहिंसा, ईमानदारी, पवित्रता, शुद्धता सात्विकता, सरलता, निश्छलता आदि के भाव आनंद के द्वार खोलते हैं, जबकि क्रोध, ईष्र्या, घृणा, वैमनस्य जैसे भाव जीवन में जहर घोल देते हैं। स्वयं और दूसरों के प्रति सकारात्मक सोच और नजरिया ही हमें खुशी और नकारात्मक सोच हमें दुःखी बनाती है। किसी कार्य को बोझिल मन से नहीं किया जाए और ना ही जीवन को बोझिल समझ कर के जिया जाए। जिंदगी में कितने भी आगे निकल जाने पर भी लाखों लोगों से किसी न किसी रूप में पिछड़े होंगे, इसलिए जहां है जैसी स्थिति में उसी का भरपूर आनंद उठाना चाहिए। प्रत्येक छोटे कार्य और बड़े कार्य को आनंद, शांति और मुक्त भाव से किया जाना चाहिए। चेहरे पर प्रसन्नता का भाव आनंद प्रदान करता हैं। सेवा, श्रम, निष्ठा व सामाजिक सरोकार से किया कार्य आनंद देता है। इस कार्यक्रम में डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. बी. प्रधान, डॉ. विष्णु कुमार, डॉ. अमिता जैन, डॉ. सरोज राय, डॉ. आभा सिंह, डॉ. गिरधारीलाल, ललित कुमार आदि उपस्थित रहे।

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