कुलपति सहित सभी अधिकारी-कर्मचारियों ने की आचार्यश्री महाश्रमण से विशेष भेंट

तेरापंथ समाज का मानो भाग्य है जैन विश्वभारती संस्थान- आचार्यश्री महाप्रज्ञ

जैन विश्वभारती संस्थान विश्वविद्यालय के अनुशास्ता एवं तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा है कि लाडनूं का जैन विश्वभारती संस्थान एक अलग तरह का अनूठा विश्वविद्यालय है। यह तेरापंथ समाज के लिए तो मानो भाग्य ही बन चुका है। इस संस्थान के सभी शिक्षकों, अधिकारियों एवं विद्यार्थियों के भीतर संस्कार नजर आने चाहिए। आचरण का प्रभाव विद्यार्थी और समाज पर पड़ता है। विश्वविद्यालय के अधिकारियों व कार्मिकों से विशेष भेंट में उन्होंने विश्वविद्यालय को ‘ए’ श्रेणी दिए जाने को शुभ बताया तथा शास्त्रों में कहा गया है- अहंसविद्या चरणं पमोख्खए। यानि मोक्ष के लिए विद्या और आचरण का अनुशीलन करें। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मेंज्ञान और आचरण दोनों का महत्व रहता है। ज्ञान के बिना आचरण अधूरा रहता है और आचरण के बिना ज्ञान भी अधूरा होता है। ज्ञान के साथ-साथ आचरण की साधना बहुत जरूरी है। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने अपने सम्बोधन में बताया कि जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय अब आत्मनिर्भर बनगया है। इसके स्वरूप और विकास के लिए गुरू के इंगित का पूरी तरह से ध्यान में रखा जाएगा। दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने नैक टीम के सदस्यों द्वारा की गई टिप्पणियों का उल्लेख किया तथा कहा कि टीम ने इस विश्वविद्यालय की स्वच्छता को पूरा ध्यान में रखा और इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वचछता अभियान का साकार स्वरूप बताया। साथ ही इसकी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की विशेषताओं, जैन विद्या, प्राकृत, जीवन विज्ञान आदि विशेष विषयों का विशिष्ट केन्द्र होने की बात कही। प्रो. त्रिपाठी ने इस अवसर पर ‘जिन्दगी की असली उड़ान अभी बाकी है’ कविता भी पढी, जिसमें उन्होंने ए-ग्रेड मिलने में ही संतोष करने के बजाए और आगे बढने के संकल्प को दर्शाया। प्रो. नलिन के. शास्त्री ने नैक के मूल्यांकन में मिली सफलता के लिए सभी के संगठित प्रयास को श्रेय प्रदान किया और कहा कि यहां ज्ञानयज्ञ में सबकी आहुतियां होने से ही सब अनुकूल होता जाता है। बैठक में प्रो. रेखा तिवाड़ी, विताधिकारी आरके जैन, डा. जुगल किशोर दाधीच आदि ने भी अपना मंतव्य व्यक्त किया। विशेष दर्शनलाभ और विमर्श के लिए आयोजित इस बैठक में सभी अधिकारीगण एवं कार्मिकगण उपस्थित थे।

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