जैनविश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में संकाय संवर्द्धन व्याख्यानमाला के तहत व्यक्तित्व विकास एवं संवेगों का प्रभाव पर व्याख्यान

व्यक्त्त्वि निर्माण में सहायक होते हैं संवेग- प्रो. जैन

लाडनूँ, 11 दिसम्बर 2021। जैनविश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में शनिवार को संकाय संवर्धन व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। व्याख्यानमाला में आचार्य महाप्रज्ञ के विचारों में व्यक्तित्व विकास में धर्मश्रद्धा और संवेगों के प्रभाव और संवेगों के विभिन्न प्रकारों पर विचार प्रकट किए गए। शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन ने इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए व्याख्यान में कहा कि आचार्यश्री महाश्रमण के चिन्तन में संवेग धर्मश्रद्धा की पुष्टि है और धर्मश्रद्धा की पुष्टि से संवेग पुष्ट होते है। संवेग अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ का क्षय करते है। इस प्रकार संवेग से धर्मश्रद्धा की वृद्धि और धर्मश्रद्धा से संवेग की पुष्टि होती है। विविध संवेग अलग-अलग व्यवहार, व्यक्तित्व और व्यक्तियों का निर्माण करते है। संवेग सकारात्मक और नकारात्मक दो प्रकार के होते हैं। सकारात्मक संवेग- प्रेम, आनन्द, सृजनात्मक आदि संवेग हैं, जो व्यक्ति के लिए हितकारी होते हैं। नकारात्मक संवेग- भय, क्रोध, इर्ष्या आदि विषादयुक्त संवेग हैं, जो व्यक्ति के लिए अहितकारी होते है।

सात्विक गुणों का विकास आवश्यक

प्रो. जैन ने बताया कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ कहते हैं, क्रोध का संवेग खतरनाक होता है। अतः क्रोध करने वाले को ईंट का जबाब पत्थर से देने के बदले फूल से देना चाहिए। अहिंसा, नैतिकता, प्रमाणिकता, अनुकंपा आदि से प्राणी में सात्विक गुणों का विकास होता है। उससे व्यक्ति को क्रोध कम आता है। कामुकता से सदैव दूर रहना चाहिए, क्योंकि काम उद्दीप्त व्यक्ति का पतन शीघ्र होता है। अहंकार भी पतन की ओर ले जाता है। इसलिए व्यक्ति को विनम्र और पुरुषार्थी होना चाहिए। ईर्ष्या की प्रवृत्ति अधिक नहीं बढाना चाहिए। यह प्रवृत्ति दुःखों का कारण होती है और बंधन का कारण बनती है। व्यक्ति को राग रहित प्रेम को करना चाहिए। वह प्रेम सात्विक होता है। भयभीत व्यक्ति कभी अपना विकास नहीं कर सकता है। अभय का विकास दैवीय सम्पदा का विकास है। जो व्यक्ति जितना अधिक प्रसन्न रहता है, उसका स्वास्थ्य उतना ही अच्छा होता है। अतः जीवन में हर परिस्थिति में प्रसन्नता का भाव में रहना चाहिए। क्योंकि संवेग व्यक्ति के जीवन की चरित्रशाला है, संवेग से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है। कार्यक्रम में शिक्षा विभाग के डॉ,. मनीष भटनागर, डॉ. बी प्रधान, डॉ. विष्णु कुमार, डॉ. अमिता जैन, डॉ. सरोज राय, डॉ. गिरिराज भोजक, डॉ. आभा सिंह, डॉ, गिरधारी लाल शर्मा, डॉ. अजीत कुमार पाठक आदि संकाय सदस्य उपस्थित रहे। का आभार ज्ञापित किया गया।

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