मासिक व्याख्यानमाला में सट्टक परम्परा पर व्याख्यान आयोजित
प्राकृत सट्टक-नाटक भारतीय संस्कृति के प्रतिबिम्ब है- प्रो. जयकुमार जैन
लाडनूँ, 30 सितम्बर 2023। ‘प्राकृत सट्टक परम्परा और उसका सांस्कृतिक वैशिष्ट्य’ विषय पर मासिक व्याख्यानमाला के अन्तर्गत व्याख्यान करते हुए प्रो. जयकुमार जैन ने बताया कि जिस प्रकार संस्कत में नाटक की परम्परा है, उसी प्रकार प्राकृत साहित्य की विधाओं मे ंसट्टक की परम्परा है। इन सट्टकों में भारतीय सांस्कृतिक वैभव को भलीभंति प्रस्तुत किया गया है। इस तथ्य को हम इस प्रकार भी व्याख्यायित कर सकते हैं कि प्राकृत सट्टक भारतीय संस्कृतिक के वाहक या प्रतिबिम्ब माने जाते हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत में नाटक हो या प्राकृत के सट्टक हों, दोनों रचनाएं मनोरंजन के लिए की जाती है। ये सभी रूपक साहित्य के अंतर्गत परिगणित हैं। प्रो. जैन ने कहा कि प्रथम सट्टक की रचना दसवीं शताब्दी के राजशेखर ने कर्पूरमंजरी में प्राकृत भाषा में इसलिए की कि प्राकृत भाषा सुकुमार होने के कारण अल्पज्ञों को भी समझ में आने वाली थी। इस प्रकार प्रो. जैन ने प्राकृतिक सट्टकों के विविध आयामों अथवा तत्वों पर अनेक उदाहरणों के माध्यम से प्रकाश डाला। उन्होंने सट्टकों में वर्णित अनेक प्रसंगों के माध्यम से उनमें वर्णित सांस्कृतिक वैभव का प्रतिपादन किया। उन्होंने प्राकृत सट्टकों का भाषा तात्विक विश्लेषण भी प्रस्तुत किया। वर्तमान में वर्णित सामाजिक विखंडता को एकता के सूत्र में बांधने में सट्टकों की महती भमिका भी उन्होंने बताई। कार्यक्रम में प्रो. दामोदर शास्त्री व प्रो. जगतराम भट्टाचार्य ने भी सट्टक परम्परा पर प्रकाश डालते हुए इनके सांस्कृतिक वैभव को प्रतिपादित किया। अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. जिनेन्द्र जैन ने सट्टक को लोक नाट्य के रूप में प्रस्तुत किया तथा बताया कि सट्टकों मेें सांस्कृतिक वैभव मन को आह्लादित करता है। इनमें मनोरंजन के साथ ही संवादों की परिपक्वता और आध्यात्मिकता का प्रतिपादन भी हुआ है। आदर्श प्रेम के प्रतिपादक भी ये सट्टक रहे हैं। अनेक सांस्कृतिक तत्वों का वर्णन इन सट्टकों में हुआ है। उन्होंने अंत में आभार ज्ञापित भी किया।
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