पत्रकार के रूप में महात्मा गांधी ने अहिंसक सम्प्रेषण लोगों के दिलों तक पहुंचाया- प्रो. चितलांगिया

भारतीय परंपराओं में अहिंसक संप्रेषण की खोज पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

लाडनूँ, 28 मार्च 2024। जैन विश्वभारती संस्थान व गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य वक्ता जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के गांधी अध्ययन केंद्र की पूर्व निदेशक व राजनीति विज्ञान की विभागाध्यक्ष प्रो. मीना बरड़िया ने कहा कि विश्व भर में विभिन्न देशों के टकराव व युद्धों के दौरान 24 हजार से अधिक लोग अपने प्राण गंवा चुके हैं और बड़ी संख्या में घायल व बेघरबार हुए हैं। आतंकवाद, नस्लवाद, धर्मांधता आदि के कारण युद्ध होते हैं और अतिरिक्त तकनीकी विकास के कारण भी हिंसा को बढावा मिला है। उन्होंने महात्मा गांधी के अहिंसा सम्प्रेषण और उनकी पत्रकारिता पर बोलते हुए कहा कि उनके आंदोलनों में पत्रकारिता में अहिंसा का प्रयोग किया गया। पत्रकार के रूप में महात्मा गांधी का अहिंसक सम्प्रेषण लोगों के दिलों तक पहुंचा। उन्होंने विरोध के साथ-साथ रास्ता व समाधान भी बताया। उन्होंने साधन और साध्य की पवित्रता पर बल दिया और नवीन मूल्यों का सृजन कर नई दिशा प्रदान की। समाज को सही दिशा देना ही गांधी की पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य रहा। बापू ने वाणी और भाषा के साथ ही मौन का प्रयोग भी किया, लेकिन उनका सम्प्रेषण प्रभावी था। गांधी की पत्रकारिता मूल्यों पर आधारित थी। बरड़िया ने जैन प्रतिक्रमण का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रतिक्रमण से संसार के सभी जीवों से क्षमा याचना की जाती है। मन की दूषित भावनाओं के लिए क्षमा-याचना की जाती है। उन्होंने बताया कि गांधी के आंदोलन का मूल मंत्र ‘अहिंसा परमोधर्म’ भगवान महावीर की अहिंसा का पर्याय है और महाभारत में उसका उल्लेख है, साथ ही ऋग्वेद में आए श्लोक ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया’ सबके सुखी होने की भावना है। बौद्ध धर्म और जैन धर्मा में अहिंसा की लम्बी परम्परा और व्यापक दायरा रहा है।

गांधी ने सत्य-अहिंसा को व्यवहार में उतारा

मुख्य अतिथि जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के लोक प्रशासन विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. बीएम चितलांगिया ने महात्मा गांधी के विचारों को शुद्ध वैज्ञानिक बताते हुए कहा कि जिस प्रकार विज्ञान में सिद्धांतों को व्यवहार में परिणित किया जाता है, वैसे ही गांधी ने सत्य व अहिंसा के सिद्धांतों को व्यवहार में उतारा और उन पर प्रयोग किए। गांधी ने अपने विचारों तर्क, धर्म, दर्शन व राजनीतिक विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए गणितीय सूत्रों का सहारा भी लिया। उन्होंने सत्य, अहिंसा व मानवीय चिंतन की मनोवैज्ञानिक व्याख्या की थी। उन्होंने बताया कि विदेशों में गांधी के दर्शन पर परीक्षण किए जा रहे हैं। हमें भी गांधी के जीवन-दर्शन को व्यावहारिक रूप से परिणित करने पर ध्यान देना चाहिए। वर्तमान की चुनौतियों में गांधीवादी दर्शन समाधान में सक्षम हो सकता है। कुलसचिव प्रो. बीएल जैन ने अहिंसा पर आयोजित सेमिनार को अहिंसा का महायज्ञ बताया और कहा कि इसमें डाली गई विचारों की आहुतियों को ही आगे बढा कर अहिंसा प्रवृति में सुधार किया जा सकता है। उन्होंने अहिंसा की व्यावहारिकता को समझने की आवश्यकता बताई।

अनुप्रेक्षा के अभ्यास से अहिंसा संवाद संभव

कुलपति के आएसडी प्रो. नलिन के. शास्त्री ने अध्यक्षता करते हुए भारत के चिंतन में अहिंसा को चेतना का मूल भाव बताया तथा सहअस्तित्व की भावना पर जोर देते हुए दूसरों की बातों और विचारों को सुनने को जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि करूणा के चिंतन से अहिंसक संवाद का विचार उद्भूत होता है। करूणा का भाव मन में होने पर हर व्यक्ति में दिव्यता का दर्शन हो सकता है। चिंतन में आध्यात्मिकता को जरूरी बताते हुए उन्होंने अध्यात्म को जिंदगी जीने का तरीका बताया। प्रो. शास्त्री ने बताया कि व्यक्ति के प्रबुद्ध होने पर विचारों से असहमति होती है। हमें व्यक्ति, तथ्य एवं विचारों का अवलोकन करना चाहिए। भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता आवश्यक है, तभी सहानुभूतिपूर्ण वातावरण पैदा हो सकता है। हम अपने आपको बदल नहीं सकते, लेकिन दुनिया को बदलना चाहते हैं। हम जैसा चाहें, सभी वैसे नहीं हो सकते हैं। गुलदश्ते में एक ही प्रकार के नहीं बल्कि अलग-अलग रंग होने चाहिए। उन्होंने जैन धर्म की ‘अनुप्रेक्षा’ में भावना करने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि अनुप्रेक्षा के अभ्यास से चित की शुद्धि व कर्मों का प्रवाह रूक सकता है। उन्होंने 12 भावनाओं की बात करते हुए मैत्री भावना के बारे में बताया और कहा कि इनसे अहिंसा संवाद में प्रवृत होते हैं। कार्यक्रम का प्रारम्भ मंगल संगान से किया गया। स्वागत वक्तव्य व अतिथि परिचय डा. समणी रोहिणी प्रज्ञा ने प्रस्तुत किया। अहिंसा एवं शांति विभाग के विभाध्यक्ष डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने दो दिवसीय सेमिनार की गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत किया। अंत में डाॅ. बलबीर सिंह ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. लिपि जैन ने किया।

विद्वानों ने किया शोध-पत्रों का वाचन

सेमिनार के साधारण सत्रों में ‘भारतीय परम्परा में अहिंसक संवाद की खोज’ विषय से सम्बंधित उपविषयों पर विभिन्न विद्वानों ने अपने 20 शोध-पत्र प्रस्तुत किए। शोध पत्र वाचन करने वाले विद्वानों में साध्वी रोहिणी प्रभा, साध्वी तेजस्वी प्रभा, डाॅ. समणी संगीत प्रज्ञा, डाॅ. समणी रोहिणी प्रज्ञा, समणी जिज्ञासा प्रज्ञा, डाॅ. समणी शशि प्रज्ञा, डाॅ. सुनिता इंदोरिया, डाॅ. वीरेंद्र भाटी, डाॅ. अशोक भास्कर, डाॅ. आभा सिंह, डाॅ. हेमलता जोशी, यशपाल सिंह, मुनि सुविधि कुमार, मुनि कौशल कुमार, डाॅ. गिरधारी लाल शर्मा, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, डाॅ. जेपी सिंह, डाॅ. अमिता जैन, रमेश कुमार सोनी व अन्विता भाटी ने अहिंसा के विविध आयामों और पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर सम्भागी विद्वान शोधार्थी एवं विद्यार्थी तथा सभी संकाय सदस्य उपस्ति रहे।

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