व्याख्यानमाला में सर्वमान्य आचार्य कुंदकुंद के साहित्य पर सूक्ष्मता से विवेचन प्रस्तुत
तत्व-विवेचन के माध्यम से जैन दर्शन को अनेक नये अवदान दियए आचार्य कुन्दकुन्द ने- प्रो. अशेाक कुमार जैन
लाडनूँ, 2 अप्रेल 2024। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रो. अशोक कुमार जैन ने जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित मासिक व्याख्यानमाला के 33वें व्याख्यान के अन्तर्गत अपने व्याख्यान में बताया कि आचार्य कुन्दकुन्द सभी परम्पराओं के सर्वमान्य आचार्य रहे हैं। उनके द्वारा लिखित साहित्य को आगमों के समकक्ष ही माना जाता है। आचार्य कुन्दकुन्द ने जितनी सूक्ष्मता से वस्तु का विवेचन किया है, उतना किसी आचार्य ने नहीं किया। उन्होंने अपने तत्व-विवेचन के माध्यम से जैन दर्शन को अनेक नये अवदान दिये। प्रो. जैन ने आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रंथो की सूक्ष्मता से विवेचन करते हुए उनमें वर्णित आत्मा के अतिरिक्त अनेक दार्शिनिक तत्त्वों को आगमों के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किये। उन्होंने ज्ञान, दर्शन और चारित्र के साथ आचार मीमांसा का भी सूक्ष्म वर्णन किया। आत्मा को ज्ञान प्रमाण, ज्ञान को ज्ञेय प्रमाण और ज्ञेय को लोकालोक प्रमाण माना गया है। यह सिद्धान्त वस्तु-विवेचन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डा. जैन ने व्यवहार नय और निश्चय नय के माध्यम से भी तत्त्व विवेचन को सिद्ध किया। वस्तु विवेचन से पूर्व प्रो. अशोक कुमार जैन ने आगमों का परिचय एवं महत्त्व को प्रतिपादित किया।
आत्मज्ञान में रत हो जाना ही कुंदकुंद साहित्य का सार
इस अवसर पर प्रो. दामोदर शास्त्री ने अपने विचारों को व्यक्त करते हुए बताया कि आचार्य कुन्दकुन्द ने ज्ञानमार्ग के साथ-साथ भक्तिमार्ग को भी प्रशस्त किया। चेतन-अचेतन दोनों प्रकार की वस्तुएं ही धर्म (स्वभाव) के माध्यम से महत्व रखने वाली है। आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य में अध्यात्मवाद सूफीवाद एवं भक्तिवाद की प्ररूपणा अत्यधिक सूक्ष्म रूप से की गई है। आत्मा को सब कुछ जानकर उसमें रत हो जाने को उन्होंने आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य का सार बताया। इस अवसर पर प्रो. प्रद्युम्नशाह सिंह एवं डॉ. आनन्द कुमार जैन ने भी अपने-अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। अध्यक्षता करते हुए प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. जिनेन्द्र कुमार जैन कहा कि आचार्य कुन्दकुन्द ने जो भी कहा वो अध्यात्म को आत्मा, ज्ञान और ज्ञेय के माध्यम से समझाने के लिए कहा। आचार्य कुन्दकुन्द ने चारित्र को ही धर्म माना और कहा कि वह समता में स्थित है। वस्तु उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप में प्राप्त होती है। आचार्य कुन्दकुन्द ने आत्मा और ज्ञान एक तत्त्व होते हुए भी संसार की परिणति में महत्वपूर्ण है। कार्यक्रम का प्रारम्भ आकर्ष जैन के मंगलाचरण से हुआ, स्वागत व विषय प्रवर्तन डाॅ समणी संगीत प्रज्ञा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सब्यसाची सारंगी ने तथा संयोजन डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज ने किया। कार्यक्रम में देश के अनेक क्षेत्रों से लगभग 30 प्रतिभागियों ने सहभागिता की।
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