नैतिकता की उड़ान के लिए प्रेक्षाध्यान-जीवन विज्ञान की आवश्यकता- प्रो. त्रिपाठी

जैविभा विश्वविद्यालय में प्रे़क्षाध्यान कल्याणक वर्ष के प्रारम्भ में कार्यक्रम आयोजित

लाडनूँ, 30 सितम्बर 2024। आचार्यश्री महाप्रज्ञ प्रवर्तित प्रेक्षाध्यान के 50 वें साल में प्रवेश के अवसर पर एक साल तक मनाए जाने वाले वर्ष के संदर्भ में आचार्यश्री महाश्रमण द्वारा घोषित प्रेक्षाध्यान कल्याणक वर्ष के प्रथम दिवस यहां जैन विश्वभारती संस्थान में योग एवं जीवन विज्ञान विभाग की ओर से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। दूरस्थ एवं आॅनलाईन शिक्षा केन्द्र के निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि आगमों में आए ‘पेहा’ शब्द से ही प्रेक्षा ध्यान बना है। 1955 में मंत्रदृष्टा आचार्य तुलसी ने चिंतन करते हुए इस बारे में आचार्य महाप्रज्ञ तत्कालीन मुनि नथमल को संकेत किया और वे उसकी क्रियान्विति मेें लग गए। पूर्ण विकास, प्रयोगों, अनुसंधान आदि के बाद 1975 में प्रेक्षाध्यान का नामकरण किया गया। उन्होंने बताया कि जीवन विज्ञान, प्रेक्षाध्यान व अणुव्रत ये त्रैत हैं, जो परस्पर घनिष्ठ सम्बंध रखते हैं। इनसे ही नैतिकता की उड़ान भरी जा सकती है। अणुव्रत नैतिकता के लिए, जीवन विज्ञान संतुलित शिक्षा के लिए है और प्रेक्षाध्यान आत्म साक्षात्कार के लिए है। उन्होंने कहा कि जीवन के सन्निकट लक्ष्य तो बदलते रहते हैं, जबकि जीवन का चरम लक्ष्य मुक्त होना है, आत्म साक्षात्कार करना है। हर व्यक्ति को अपने जीवन में शांति चाहिए, आनन्द चाहिए, तो इसके लिए इन तीनों की आवश्यकता है। उन्होंने प्रेक्षाध्यान की उप सम्पदा के बारे में बोलते हुए भावक्रिया में सदैव अप्रमत्त रहने, वर्तमान में रहने व जानते हुए करने की आवश्यकता बताई। क्रिया की प्रतिक्रिया से बचने की जरूरत पर बल दिया। मैत्री की भावना का आवश्यक बताते हुए शत्रुओं से मुक्त होने के लिए मैत्री का प्रभाव रेखांकित किया। वाणी को तलवार के घाव से भी अधिक मर्माघात करने वाली बताते हुए ‘वाणी संयम’ पर जोर दिया। ध्यान व साधना के भोजन के नियंत्रण के बारे में बताते हुए उन्होंने ‘मिताहार’ आवश्यक बताया। प्रो. त्रिपाठी ने प्रेक्षाध्यान को अपने जीवन से जोउ़ने के लिए सबको संकल्प लेने के लिए प्रेरित किया।

उन्नति के हर आयाम पर प्रेक्षाध्यान उपयोगी

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. जिनेन्द्र जैन ने इस वर्ष का प्रेक्षाध्यान कल्याणक वर्ष माने जाने के बारे में जानकारी देते हुए प्रेक्षाध्यान को व्यक्तिगत, समाजिक, सार्वजनिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक, वैज्ञानिक दृष्टियों से उन्नयन के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने बताया कि प्रेक्षाध्यान के साथ जीवन विज्ञान को जोड़ कर आचार्य महाप्रज्ञ ने इसे परिपूर्णता प्रदान की। उन्होंने जीवन की हर क्रिया के साथ ध्यान करने की आवश्यकता बताई तथा इसे नियमित बनाने पर जोर दिया। योग एवं जीवन विज्ञान विभाग की सहायक आचार्या डा. हेमलता जोशी ने कार्यक्रम में प्रेक्षाध्यान प्रणेता आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य से जीवन का हर क्षेत्र का ज्ञान प्राप्त होता है। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ जीवन में चलने के लिए दिशा को महत्वपूर्ण बताते हैं और कहते हैं कि चलना बड़ी बात नहीं है, मुख्य बात है कि किस दिशा में चल रहे हैं। उन्होंने प्रेक्षाध्यान को आचार्य महाप्रज्ञ का बहुत बड़ा अवदान बताते हुए कहा कि प्रेक्षा ध्यान शब्द पहले भी थे, लेकिन उन्हें नया आयाम देकर जन कल्याण के लिए इसका प्रयोग उन्होंने ही प्रवर्तित किया। कार्यक्रम संयोजक डा. यवराज सिंह खंगारोत ने प्रारम्भ में विषय प्रवर्तन करते हुए प्रेक्षाध्यान के इतिहास, उसके प्रयोग, उसके घटक एवं प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम का प्रारम्भ योग एवं जीवन विज्ञान विभाग की छात्राओं के प्रेक्षाध्यान-गीत के माध्यम से मंगल संगान द्वारा किया गया। इस अवसर पर डा. विनोद कस्वा द्वारा सामूहिक महाप्राण ध्वनि का अभ्यास भी करवाया गया और उसका महत्व समझाया। कार्यक्रम के अंत में डा. अशोक भास्कर ने आभार ज्ञापित किया।

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