आगमों एवं प्राचीन अभिलेखों में मौजूद हैं भारतीय संस्कृति के समस्त मूल तत्व- डाॅ. समणी संगीतप्रज्ञा

लाडनूँ, 9 अक्टूबर 2024। आचार्य विद्यासागर सुधासागर जैन शोध पीठ कानपुर के तत्वावधान में ‘भारत औेर विश्व को प्राकृत भाषा का महत्व’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय की डाॅ. समणी संगीतप्रज्ञा ने ‘प्राकृत साहित्य में भारतीय संस्कृति का स्वरूप’ विषय पर अपनना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति को अजर-अमर बताते हुए इसके मूल आधार के रूप में अहिंसा, मैत्री, करूणा, दया आदि तत्वों को व्याख्यायित करते हुए उन्होंने बताया कि ये सारे तत्व और सम्बंधित धार्मिक तत्व सभी प्राकृत साहित्य और विशेष रूप से आगम साहित्य में विद्यमान हैं। अपने व्याख्यान में उन्होंने भारतीय संस्कृति में ओड़ीशा के खारवेल के शिलालेख उल्लेख करते हुए कहा कि सम्राट खारवेल के अभिलेख में मात्र 17 पंक्तियों में भारत के सम्पूर्ण सांस्कृतिक तत्व मौजूद हैं। इसी प्रकार सम्राट अशोक के अभिलेखों में भारतीय संस्कृति को और विशेष रूप से अहिंसा, मैत्री, करूणा और दया के सभी तत्व प्राप्त होते हैं। इन्हीं मूल तत्वों के कारण भारतीय संस्कृति अजर-अमर बनी हुई है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने 3 अक्टूबर को प्राकृत को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया है। इस एक दिवसीय संगोष्ठी में छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति डा. विनय कुमार पाठक, मुख्य अतिथि के रूप में अरविंद कुमार जैन तिजारा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डाॅ. आशीष जैन आचार्य एवं अन्य विद्वान उपस्थित रहे।

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