पुरखों व संस्कारों के प्रति आस्था होने पर ही व्यक्ति की सम्पूर्णता- ओंकार सिंह लखावत
राजस्थान धरोहर प्राधिकरण के अध्यक्ष का ‘अध्यात्म और पुरातत्व’ पर व्याख्यान
लाडनूँ, 26 अक्टूबर 2024। राजस्थान धरोहर प्रोन्नति प्रधिकरण के अध्यक्ष व पूर्व सांसद ओंकार सिंह लखावत ने राजस्थान के पुरातात्विक महत्व में आध्यात्मिक व ऐतिहासिक स्थलों के पुनरोद्धार और उनके इतिहास के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत में वहीं मनुष्य सम्पूर्ण होता है, जिसमें आस्था बनी हुई हो। आस्थाहीन मनुष्य की दुर्गति ही होती है। पुरखों के संस्कारों को भूलने पर केवल भौतिकता बढती है, इसका उदाहरण यूरोपीय देशों में प्रत्यक्ष देखने को मिल रहा है। वे अपने पुरखों को भूलने के कारण दुर्गति का शिकार होने लगे हैं। लखावत यहां जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य महाश्रमण ऑडिटोरियम में आयोजित बिशनदयाल गोयल स्मृति व्याख्यानमाला में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। मुनिश्री जयकुमार व मुनिश्री मुदित कुमार के सान्निध्य में इस व्याख्यान का आयोजन महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ के तत्वावधान में किया गया।
राजस्थान के चप्पे-चप्पे पर फैले हैं महापुरूष और संस्कार
अपने व्याख्यान में ओंकार सिंह लखावत ने कहा कि पुरातत्व का मतलब केवल पत्थर ही नहीं होता है। बलिदानों से भरा हमारा पुरातत्व हमारे जीवन को गौरवशाली बनाता है। लखावत ने मीरांबाई, अमरसिंह राठौड़, तेजाजी, गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त, माघ कवि, आहवा के स्वतंत्रता संग्राम, पन्ना धाय, काली बाई, डूंगजी-जवाहरजी, राजल बाई समना, पं. दीनदयाल उपाध्याय आदि विभिन्न महापुरूषों का उल्लेख करते हुए उनके पैनोरमा का निर्माण करके उनकी स्मृतियों का संरक्षण करने की जानकारी दी और कहा कि ये सब स्मारक नहीं, हमारी धरोहर है। हमें महापुरूषों पर काम करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि राजस्थान के चप्पे-चप्पे पर महापुरूष और संस्कार मिलेंगे। हमें भारत और संस्कृति को भूलना नहीं चाहिए। भौतिक सुख-सुविधाओं के बजाए हमें भारत की विरासत के रूप में फैले अपने महापुरूषों की वीरता, शक्ति और भक्ति याद रखने के साथ उनसे प्रेरणा लेते रहना चाहिए। लखावत ने श्रीमहावीरजी में भगवान महावीर का पैनोरमा और अजमेर में आचार्य विद्यासागर का पैनोरमा शीघ्र बनाने की घोषणा भी की।
विश्व की सबसे प्राचीन धर्म-सांस्कृतिक थाती पर गर्व
कार्यक्रम में मुनिश्री जयकुमार ने अध्यात्म को भारतीय संस्कृति का मूल बताया और कहा कि भारत के कण-कण में धर्म के संस्कार भरे हुए हैं। यहां धर्म, अर्थ, काम पर अंकुश के साथ मुक्ति या मोक्ष की बात भी कही गई है। मुनिश्री ने बताया कि ओकार सिंह लखावत ने पुरातत्व को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया और वीर रस एवं भक्ति रस को उदाहरण सहित प्रस्तुत किया। कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने भारतीय संस्कृति व धरोहर को अति प्राचीन बताते हुए कहा कि यहां से खुदाई में निकली शिव या ऋषभदेव की प्रतिमा को कार्बन डेटिंग के लिए ब्रिटेन भेजने पर पता चला कि वह प्रतिमा 26 से 28 हजार 500 साल पुरानी थी। हिन्दू संस्कृति के अलावा इतनी प्राचीन धर्म व संस्कृति अन्य कोई नहीं मिलेगी। प्रो. दूगड़ ने गुजरात में मिली प्राचीन तीन मंजिला बावड़ी में उलटे मंदिर की आकृति होने, अनेक मंदिरों में पत्थरों के खंभों के बॉल-बीयरिंग की तरह से घूमने, विभिन्न आधुनिक औजारों से भी नहीं काटे जा सकने वाले पत्थर को तराश कर प्राचीन काल में ही प्रतिमाओं का गढना आदि उदाहरण देते हुए कहा कि हमारी थाती पर हमें केवल विश्वास ही नहीं करना, बल्कि उन पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने पुरातत्व व धरोहरों को ज्ञान का माध्यम बताया और कहा कि इससे पता चलता है कि हमारे पूर्वजों में ऐसा जोश व होश भरा था।
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