जैन विश्वभारती संस्थान के अहिंसा एवं शांति विभाग द्वारा विश्व दार्शनिक दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन
जीवन की सुचिता दर्शन से संभव - प्रो. व्यास
लाडनूँ, 21 नवम्बर 2024। कार्यक्रम के प्रारंभ में विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. बलबीर सिंह ने स्वागत वक्तव्य एवं अतिथि परिचय प्रस्तुत किया। इसके पश्चात मुख्य वक्ता प्रो. लक्ष्मीकांत व्यास ने व्याख्यान में यह विश्लेषित किया कि दर्शन का अर्थ हम अलग-अलग रूपों में स्पष्ट कर सकते हैं, सामान्य अर्थों में दर्शन से तात्पर्य है देखना, लेकिन हम दर्शन को एक विषय के रूप में स्पष्ट करने का प्रयास करें तो दर्शन एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है, जिसका संबंध मानव जीवन के विविध पक्षों से है। सही अर्थों में दर्शन से अभिप्राय है, अपने आत्मचक्षु से किसी वस्तु एवं स्थिति को देखना। दर्शन सीखने की प्रक्रिया है जिसमें हम ज्ञान प्राप्त करते हैं, उस ज्ञान के माध्यम से साधना एवं क्रिया करते हैं। दर्शन हमें सत् कर्म की ओर अग्रसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। प्रो. व्यास ने प्राचीन दर्शन से शुरुआत करते हुए पाश्चात्य दर्शन एवं भारतीय दर्शन दोनों की विलक्ष्णताओं को स्पष्ट किया। उन्होंने गीता दर्शन का उदाहरण देते हुए बताया कि इसमें तीन योग माने गए हैं, जिन्हें हम ज्ञान योग, भक्ति योग तथा कर्म योग के नाम से जानते हैं। उन्होंने अपने उद्बोधन में यह भी बताया कि दर्शन जीवन को श्रेष्ठ बनाने, संयमित बनाने एवं उसमें सुचिता लाने का एक महत्वपूर्ण आधार है। हम एक सद् नागरिक बन सके, इस दिशा में दर्शन की शिक्षा महत्वपूर्ण आधार मानी जा सकती है। अंत में विभाग के सहायक आचार्य डॉ. रविंद्र सिंह राठौड़ ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन सहायक आचार्य डॉ. लिपि जैन ने किया और विश्व दार्शनिक दिवस के आयोजन के ऐतिहासिक स्वरूप पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर सहायक आचार्य डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज, श्रीमती इरिया जैन आदि संकाय सदस्यों के साथ संस्थान के विद्यार्थी भी उपस्थित रहे।
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