मैत्री-दिवस कार्यक्रम का आयोजन

प्राणी मात्र के प्रति दया भाव ही उत्तम क्षमा है: प्रो. दूगड़

लाडनूँ, 29 अगस्त, 2017। आज के व्यस्ततम जीवन में जहां हम अपने पड़ोसी को भी नहीं जान पा रहे हैं वहाँ जैनधर्म के सिद्धान्त कह रहे हैं कि संसार के प्रत्येक प्राणियों में मैत्री भाव रखना ही यथार्थ में अहिंसा है तथा यही क्षमाभाव है। जैन विश्वभारती संस्थान के जैनविद्या विभाग द्वारा आयोजित संवत्सरी के उपलक्ष्य में मैत्री-दिवस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने बताया कि जैनधर्म सूक्ष्म से सूक्ष्म प्राणी के प्रति भी अपने समान व्यवहार करने की बात कहता है। आज के युग में जैनधर्म की अहिंसा मूलक शिक्षाओं को व्यवहारिक बनाने की आवश्यकता है। प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने जैन परम्परा में संवत्सरी के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में आठ दिवसीय पर्यूषण महापर्व के उपरान्त संवत्सरी के दिन उपवास रखा जाता है तथा उसके अगले दिन क्षमापना पर्व मनाया जाता है। प्रो. बी.एल. जैन ने बताया कि कृत-कारित-अनुमोदना से ज्ञात-अज्ञात भूलों के लिए आज के दिन प्रत्येक जैन स्वयं क्षमा मांगता है तथा दूसरों को क्षमा भी करता है। इसी प्रकार संस्थान के वित्ताधिकारी राकेश जैन ने क्षमापर्व के महत्त्व को बताते हुए प्रतिदिन क्षमाभाव रखने का आह्वान किया। प्रो. अनिलधर ने उपस्थित सभी विद्यार्थियों एवं संस्थान परिवार के सदस्यों से इस पर्व के महत्त्व को समझकर जीवन में उतारने की बात कही। प्रो. दामोदर शास्त्री ने संवत्सरी पर्व की ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला तथा सूक्ष्मतम भूल को भी सुधारने का अनुरोध किया। कुलसचिव विनोद कक्कड़ ने जैनधर्म की दो विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि मुझे जैनधर्म में पदयात्रा तथा क्षमापना ये बातें बहुत प्रभावित करती हैं। पदयात्रा सेे व्यक्ति प्रत्येक प्राणी से साक्षात् सम्पर्क में आता है तथा क्षमाभाव से वह सदा निर्दोष बना रहता है। कार्यक्रम में संस्थान के विद्यार्थियों ने भी अपने विचार रखे तथा कविता पाठ भी किया। कार्यक्रम का संयोजन कर रहे विभाग के सहायक आचार्य डाॅ. योगेश कुमार जैन ने भी संवत्सरी पर्व पर अपने विचार रखे तथा आज के परिप्रेक्ष्य में उसके महत्त्व को बताया। अंत में उपकुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्नसिंह शेखावत ने सभी का आभार व्यक्त किया।

Read 6098 times

Latest from