स्थानकवासी जैन आचार्य शिवमुनि से इन्दौर में भेंट

संस्थान में भगवान महावीर के आत्मस्थ ध्यान पर हो शोध - आचार्य शिवमुनि

इन्दौर, 9 नवम्बर, 2017। जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के आचार्यों के संवाद एवं सम्पर्क कार्यक्रम के अन्तर्गत 9 नवम्बर, 2017 को जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) को एक प्रतिनिधि-मण्डल ने कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ के नेतृत्व में जैन स्थानकवासी सम्प्रदाय के आचार्य शिवमुनिजी के दर्शन इन्दौर में किये। साथ में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी तथा अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच थे। संवाद कार्यक्रम के अन्तर्गत कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने आचार्यश्री को निवेदन किया कि जैन विश्वभारती संस्थान दुनिया का प्रथम जैन विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय के संरक्षण, संवर्द्धन एवं संपोषण की जिम्मेदारी केवल तेरापंथ समाज की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जैन समाज की होनी चाहिए। इस संस्थान के प्रेरणास्रोत आचार्यश्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ दृष्टिकोण बहुत व्यापक था। इसी व्यापक दृष्टिकोण के कारण सभी सम्प्रदाय के साधु-साध्वियों के लिए इस संस्थान द्वारा अध्ययन की निःशुल्क व्यवस्था की गई। मेरी यही कोशिश है कि गुरुदेव तुलसी के व्यापक दृष्टिकोण को चरितार्थ किया जाये और जैन समाज के सभी आचार्यों तक पहुंचा जाये। कुलपति ने आचार्यश्री को निवेदन किया कि विराट आपका व्यक्तित्व है। आपकी साधना उत्कृष्ट कोटि की है। आपके पास हमारा आगमन इसीलिए हुआ है कि आप आचार्यों के मार्गदर्शन से संस्थान को गति दी जाये।

आचार्यश्री शिवमुनि ने कुलपति से संस्थान विकास की बात सुनकर कहा कि संस्थान अच्छा कार्य कर रहा है। हमारे संघ के बहुत सारे साधु-साध्वियां बी.ए., एम.ए. एवं पी-एच्.डी. भी कर चुके हैं और कई कर भी रहे हैं। संस्थान की सेवाएँ सराहनीय हैं। सुझाव रूप में उन्होंने कहा कि संस्थान में ध्यान-योग पर शोध होना चाहिए। भगवान महावीर आत्मस्थ थे। उनके आत्मस्थ ध्यान पर शोध हो तो अच्छा होगा। कुलपति ने कहा कि आचार्यवर! संस्थान में शोध का क्रम निरन्तर चल रहा है। विशिष्ट शोध के लिए संस्थान में किसी व्यक्ति विशेष के नाम से चेयर स्थापित करने की व्यवस्था है। यदि इस दिशा में आपके श्रावक आगे आते हैं तो उस चेयर के अन्तर्गत इस प्रकार के ध्यान पर शोध और अन्य गतिविधियां संचालित हो सकती हैं। इस प्रकार कुलपति से आचार्यश्री की बहुत ही सार्थक एवं सकारात्मक चर्चा हुई, जिससे भविष्य की संभावनाएँ बनी हैं। इस अवसर पर प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने संस्थान का परिचय दिया और कुलपति ने संस्थान का साहित्य, ब्रोशर, संस्थान की पत्रिकाएँ आचार्यश्री को भेंट कीं। युवाचार्य महेन्द्रऋषि के दर्शन कर संस्थान की गतिविधियों से परिचय कराकर उनका भी मार्गदर्शन प्राप्त किया गया। अंत में डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच ने आभार व्यक्त किया।

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