दो दिवसीय रिसर्च ओरियेंटेशन वर्कशाॅप का आयोजन

रिसर्च के लिये समय, नियमितता व व्यवस्था जरूरीे- प्रो. शास्त्री

लाडनूँ,8 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के सेमिनार हाॅल में आयोजित दो दिवसीय रिसर्च ओरियेंटेशन वर्कशाॅप का शुभारम्भ गुरूवार को किया गया। वर्कशाॅप के शुभारम्भ सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. दामोदर शास्त्री ने रिसर्च करने का करण, अब तक हो चुकी रिसर्च का अध्ययन, नये विषय की तलाश, मैटी की उपलब्धि आदि के बारे में बताते हुये कहा कि एमए करने के बाद विद्यार्थी पाठ्य पुस्तकों से मुक्त हो जाता है, लेकिन उसे डिग्री देते समय उपनिषद वाक्यों के रूप में कहा जाता है कि स्वाध्याय बद मत करना, स्वाध्याय को आगे बढायें। इसलिये जिन विषयों पर कोई शोध कार्य नहीं हुआ हो, ऐसे अछूते विषयों का चयन करके जिज्ञासा पूर्वक उस विषय पर अध्ययन करके शास्त्रों की गहनता में जाकर अपनी शोध को व्यवस्थित करें, रिसर्च को आवश्यक समय दें और उसमें नियमितता बनाये रखें। विश्वविद्यालय के उप कुलसचिव डा. प्रद्युम्न सिंह शेखावत ने इस अवसर पर अपने सम्बोधन में कहा कि रिसर्च करने वाले अध्येता को यह नहीं सोचना चाहिये कि पहले क्या स्थापित था और लोग क्या कहते रहे थे, आपकी शोध उन सबसे भिन्न हो सकती है। बस मैकेनिज्म करें और समझें कि यह ऐसा परिणाम क्यों आ रहा है। उन्होंने रिसर्च और सर्वे में अंतर भी बताया तथा कहा कि डेटा कलेक्शन करना केवल सर्वे है, जबकि उसके साथ एनालिसिस व डिस्कशन भी हो तो वह रिसर्च हो जाती है। रिसर्च में नई चीज उजागर होनी चाहिये। शोध निदेशक प्रो. अनिल धर ने वर्कशाॅप में शामिल अध्येताओं को शोध तैयार करने के सम्बंध में गाईड लाईन से अवगत करवाया तथा शोध के लिये आवश्यक मार्गदर्शन किया। कार्यक्रम का संचालन डा. जितेन्द्र वर्मा ने किया।

शोध कार्य में सुविधाओं के साथ जवाबदेही भी होना आवश्यक- प्रो. यादव

9 फरवरी 2018। इस दो दिवसीय रिसर्च ओरियेंटेशन वर्कशाॅप के समापन सत्र को सम्बोधित करते हुये कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रो. आरएस यादव ने कहा है कि शोध की आवश्यकता व प्रासंगिकता होने पर ही शोध उपयोगी बन सकती है, अन्यथा केवल पीएचडी की डिग्री प्राप्त करने के लिये की गई शोध का कोई औचित्य नहीं होता। उन्होंने कार्यशाला में उपस्थित शोध-अध्येताओं से कहा कि अब तक हो चुकी शोध में रही कमी की पूर्ति की दिशा में शोध का महत्व होना चाहिये। अगर किसी पूर्व की शोधकी पुनरावृति होगी तो उसकी उपयोगिता बेकार हो जायेगी। शोध का विशय तय करने में परम्परागत रूप से केवल मैटर मिलने की आसानी, किसी के द्वारा सुझाने या डिग्री का पर्चा लेने के लिये करना गलत है। विषय तय करने के बाद उसकी प्रश्नावली तैयार करने, लोगों से साक्षात्कार करने में स्वयं को पूरी मेहनत करनी चाहिये। पीएचडी में कभी शाॅर्टकट नहीं अपनाना चाहिये। डाटा का प्रस्तुतिकरण भी महत्व रखता है, अगरडाटा संग्रह और प्रस्तुतिकरण सही रूप में नहीं है तो वह शोध महत्वहीन हो जाती है। उन्होंने कहा कि शोध में सुविधाओं के साथ जवाबदेही भी होनी चाहिये।जैविभा विश्वविद्यालय के शोध निदेशक प्रो. अनिल धर ने कार्यशाला की दो दिवसीय गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुये शोधार्थियों के लिये आवश्यक मार्गदर्शन किया तथा उनके द्वारा प्रस्तुत शोध पत्रों में रही कमियों व पूर्तियों के सम्बंध में बताया। अंत में डाॅ. जितेन्द्र वर्मा ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. विकास शर्मा ने किया। दो दिवसीय कार्यशाला में देश भर से 80 शोध-अध्येताओं ने हिस्सा लिया व अपने शोध प्रबंध प्रस्तुत किये।

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