जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) का बीस सदस्यीय ताईवानी दल ने किया दौरा

भारतीय धर्म-संस्कृति को विकृत होने से बचाया जाना जरूरी- प्रो. हुआंग

लाडनूँ, 25 जनवरी 2019। ताईवान की नेशनल चेन्गची यूनिवर्सिटी के सस्कृत, पाली एवं भारतीय धर्म संस्थान के प्रो. पोची हुआंग ने कहा है कि भारतीय धर्म, संस्कृति व भाषाओं में जो सरलता, सहजता व लचीलापन है और इसी कारण लाखों सालों से यह अमिट हैं। उन्होंने समय के साथ आ रहे परिवर्तनों को आवश्यक बताया, लेकिन कहा कि मूल स्वरूप से बिना छेड़छाड़ के ऐसे परिवर्तन हों तब तक ठीक है, लेकिन पश्चिमी देशों के प्रभाव से विकृत होने से बचाना भी आवश्यक है। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में अपने 20 सदस्यीय दल के साथ शैक्षणिक भ्रमण पर आये थे तथा यहां विश्वविद्यालय में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय विचार गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। नेशनल चेन्गची विश्वविद्यालय ताईवान के चाईनीज रिलीजन्स अध्ययन केन्द्र के निदेशक इसी-शु-वी ने कहा कि चीन और भारत की सांस्कृतिक एकता हजारों साल प्राचीन है। चीन के धर्म पर भारतीय धर्मों का बहुत अधिक प्रभाव रहा है और भगवान बुद्ध के सिद्धांतों को चीन ने हू-बहू स्वीकार किया था।

शोध द्वारा सिद्ध किये योग के प्रभाव

डाॅ. समणी श्रेयस प्रज्ञा ने संगोष्ठी में योग विषय के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुये बताया कि जैन विश्वभारती संस्थान के योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के अन्तर्गत बहुत सारे शोध कार्य हुये हैं तथा किये जा रहे हैं। इन शोध के माध्यम से प्राचीन योग एवं आचार्य महाप्रज्ञ प्रणीत प्रेक्षाध्यान के प्रभावों को सिद्ध किया गया है। डाॅ. समणी अमल प्रज्ञा ने जैन दर्शन के बारे में बताते हुये कहा कि जीवन शुद्धि को महत्व देने वाले जैन धर्म ने हजारों सालों बाद भी श्रावकों के जीवन को विशुद्ध बनाये रखना आसान किया है। अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के बाद इस दल ने जैन विश्वभारती संस्थान परिसर का अवलोकन किया। इस दल ने जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग, प्राकृत व संस्कृत विभाग, ग्रंथागार केन्द्रीय पुस्तकालय, आर्ट गैलरी आदि को देखा तथा उनके बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। उनके साथ डाॅ. समणी ऋजुप्रज्ञा व डाॅ. योगेश कुमार जैन थे।

दोनों विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक समझौते पर वार्ता

इस ताईवानी दल ने बाद में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ से वार्ता की तथा संस्थान व उसके द्वारा संचालित पाठ्यक्रमों में रूचि दिखाई। प्रो. दूगड़ ने उन्हें चीन व भारत की संस्कृतियों की समानता, धार्मिक- दार्शनिक-आयुर्वेदिक समानताओं के बारे में बताया तथा कहा कि दोनों देशों को परस्पर एक-दूसरे से सीखने को बहुत कुछ है। वार्ता के दौरान ताईवान के नेशनल चेन्गची यूनिवर्सिटी एवं जैविभा विश्वविद्यालय दोनों के बीच शैक्षणिक समझौता करने पर चर्चा हुई और तय किया गया कि शीघ्र ही दोनों विश्वविद्यालयों के बीच एमओयू करने की प्रक्रिया शुरू की जायेगी। यह 20 सदस्यीय ताईवानी दल बाद में परिसर में विराजित मुनिश्री जयकुमार के दर्शन किये और उनसे धर्म-दर्शन व योग व प्रेक्षाध्यान पर चर्चा की। मुनिश्री ने उन्हें प्रेक्षाध्यान की वैज्ञानिक विधि व उसके प्रभावों के बारे में समझाया और कहा कि केवल ध्यान ही नहीं बल्कि सहज योग की श्रेष्ठतम विधियों में सबसे श्रेष्ठ विधि प्रेक्षाध्यान को कहा जा सकता है।

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