जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में रामचरित मानस में जीचन मूल्य विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन
तुलसी ने रामकथा के माध्यम से मानव जाति के समक्ष आदर्शों की प्रतिष्ठा की- प्रो. तिवारी
लाडनूँ, 30 जनवरी 2021। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के तत्वावधान में ‘रामचरित मानस में जीवनमूल्य’ विषय पर एक ऑनलाईन राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. कैलाश नारायण तिवारी ने कहा कि संत तुलसी ने रामकथा के माध्यम से समग्र मानव जाति के समक्ष जो आदर्श स्थापित किए, वे आज भी अद्वितीय और अनुपम हैं। शाश्वत जीवन मूल्यों का जितना सरगर्भित विवेचन रामचरित मानस में मिलता है, उतरा किसी भी दूसरे धर्मग्रन्थ में मिल पाना मुश्किल है। इस ग्रंथ में रामकथा के विभिन्न पात्रों के जरिये एक आदर्श राजा, आदर्श पुत्र, आदर्श मित्र, आदर्श शिक्षक, आदर्श विद्यार्थी, आदर्श अभिभावक, आदर्श भाई, आदर्श पत्नी, आदर्श मित्र, आदर्श सेवक और आदर्श शत्रु तक के स्वरूप चरित्रों को निरूपित किया गया है। रामचरित मानस में संत तुलसीदास हमारे समक्ष धर्मउपदेशक और नीतिकार के रूप में उपस्थित होते हैं। इसमें देश के सनातन जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा के साथ अनेक नवीन जीवन मूल्यों की स्थापना भी की गई है। वेबिनार के मुख्य वक्ता वाराणसी के सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय के प्रो. राजेन्द्र मिश्रा ने अपने सम्बोधन में कहा कि वाल्मीकि रामायण में चार पुरूषार्थों का आधार तत्व बनाया गया है, लेकिन रामचरित मानस में श्रद्धा व भक्ति की भावनाओं को महत्व दिया गया है। इससे क्षमा, दया, ममता, करूणा, सतय, अहिंसा, विश्वबंधुत्व, परोपकार, उदारता आदि मूल्यों का प्रस्फुटन स्वतः ही हो जाता है। हमारी परम्परा और विरासत के महत्वपूर्ण प्रतिरूप के रूप में रामचरित मानस अपना स्थान रखता है। वेबिनार के प्रारम्भ में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने अपने स्वागत वक्तव्य के साथ विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मूल्यों का संकट दुनिया के सामने सबसे बड़ी समस्या के रूप में उपस्थित है। मूल्यों का नष्ट होना चिंताजनक है। इसके लिए आवश्यक हो गया है कि अपने कालजयी साहित्य का गहन अध्ययन करके हम उदात्त जीवन मूल्यों की तलाश करके उन्हें आत्मसात करने के साथ समाज में उन्हें प्रतिष्ठापित करें। वेबिनार के अंत में डाॅ. विनोद कुमार सैनी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन अभिषेक चारण ने किया।
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