आतंरिक व्याख्यानमाला के अंतर्गत आचार्य महाश्रमण द्वारा रचित पुस्तक ‘सुखी बनो’ की समीक्षा

समता, स्वनुशासन, जीवन जीने की कला को जानने वाला होता है सुखी

लाडनूँ, 1 फरवरी 2022। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शिक्षा विभाग में आतंरिक व्याख्यानमाला के अंतर्गत डॉ. अमिता जैन ने आचार्य महाश्रमण द्वारा रचित पुस्तक ‘सुखी बनो’ की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारतीय वांड्मय के दो महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं- श्रीमद्भगवत गीता और उत्तराध्ययन। दोनों ग्रंथो की अनेक बातों में समानता के दर्शन होते हैं। श्रीमद् भगवत गीता संस्कृत एवं उत्तराध्ययन प्राकृत भाषा का ग्रन्थ है। संस्कृत एवं प्राकृत दोनों ही भाषाएं भारतीय तत्त्व विद्या की दृष्टि से, भारतीय संस्कृति और विचारधारा की दृष्टि से, भारतीय वांड्मय की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। दोनों ही ग्रन्थ भारतीय वांड्मय की महान संपदाएं हैं। इन ग्रंथों के लिए आचार्य महाश्रमण कहते हैं कि ज्ञान कहीं से भी मिले, हमें प्राप्त कर लेना चाहिए। डॉ. अमिता जैन ने बताया कि श्रीमद्भगवत गीता में तीन प्रकार की हिंसा का वर्णन किया है- आरम्भजा हिंसा, प्रतिरोधजा हिंसा और संकल्पजा हिंसा। इन तीनों हिंसाओं को आचार्यश्री ने सटीक उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया है। आगे आचार्यश्री कहते हैं कि जो व्यक्ति समता, स्वनुशासन, जीवन जीने की कला आदि को जानता है तो वह सुखी बनता है। इस पुस्तक में मोह, राग, भय, क्रोध, आसक्ति आदि से कैसे छुटकारा पाने के उपाय बताए गए हैं तथा कहा गया है कि जीवन में तीन बातें महत्त्वपूर्ण है- इंद्रियां, मन और बुद्धि। इसे अनेक उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया गया है। व्याख्यान के अंत में विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने अंत में आभार ज्ञापन किया। कार्यक्रम में डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. भाबाग्राही प्रधान, डॉ. विष्णु कुमार, डॉ. सरोज राय, डॉ. गिरिराज भोजक, डॉ. आभा सिंह, प्रमोद ओला, रजत सुराना, डॉ. अजीत कुमार पाठक, खुशाल जांगिड आदि सभी संकाय सदस्य उपस्थित रहे।

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