भारतीय ज्ञान परम्परा संस्कृति, संस्कार, मूल्य, नैतिकता एवं चरित्र को बचाने में सक्षम- प्रो. जैन

संकाय संवर्द्धन कार्यक्रम में व्याख्यानका आयोजन

लाडनूँ, 4 जनवरी 2025। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग में आयोजित संकाय संवर्धन कार्यक्रम के अंतर्गत ‘भारतीय ज्ञान परम्परा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ विषय पर विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन ने अपने व्याख्यान में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परम्परा को विशेष महत्त्व दिया गया है। भारत के सभी पाठ्यक्रमों में इसे अनिवार्य रूप से लागू करने की बात की गई है। भारतीय ज्ञान परम्परा का प्राचीनकाल से ही शिक्षा, कला, विज्ञान, चिकित्सा, कृषि, दर्शन, साहित्य, रोजगार आदि के क्षेत्र में विशिष्ट अवदान रहा है। भारतीय ज्ञान अतीन्द्रिय ज्ञान से निकला हुआ ज्ञान है। इसमें प्रत्यक्ष और अनुमान पर आधारित ज्ञान कम और अतीन्द्रिय ज्ञान को अधिक समाहित किया हुआ है। जिन परंपराओं से हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता आज तक बची हुई हैं। जिन उपलब्धियां, विश्वास, कला-कौशल, रीति-रिवाज, मान्यताएं, त्यौहार, पर्व, जयंती, दिवस से हमारी संस्कृति अक्षुण्ण है। वह भारतीय संस्कृति कहीं पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से विस्मृति के गर्त में नहीं चली जाए। चाहे वे वर्तमान जीवन पद्धति से मेल में नहीं खाती हो, लेकिन उसको बनाए रखना जरूरी है और इसके लिए पुरातन ज्ञान निधि को संरक्षित रखना होगा, क्योंकि यही ज्ञान परम्परा संस्कृति, संस्कार, मूल्य, नैतिकता एवं चरित्र को बचाने में सक्षम है। हमारे ज्ञान की परंपराओं को संरक्षित रखना है, उनका प्रचार-प्रसार करना है और उनको समृद्ध व सशक्त बनाना है। इन परंपराओं के कारण ही हमारी भारतीय संस्कृति व संस्कार कुछ बच पाए हैं। परंपराओं की इस नींव को भवन निर्माण से ओर सुसज्जित करना है। हमारी परंपराएं वैज्ञानिक, आध्यात्मिक एवं धार्मिक भावनाओं से जुड़ी है। इनकी जड़ें वास्तविकता और सत्यता पर टिकी हुई है। भारतीय संस्कृति विविधताओं एकता का संदेश देती है, क्योंकि यह विभिन्न जाति, भाषा, धर्म, वर्ण, प्रांत से भिन्न होते हुए भी विचार में एकरूपता और मिलीजुली संस्कृति है। हमारी ज्ञान परम्परा अपने अद्वितीय ज्ञान का प्रतीक रही है। यह कर्म और मोक्ष, भोग और त्याग, ज्ञान और विज्ञान, लौकिक और पारलौकिक का अद्भुत समन्वय से युक्त है। इस कार्यक्रम में समस्त संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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