‘भारतीय ज्ञान परम्परा में लौकिक और पारलौकिक दर्शन’ विषय पर व्याख्यान आयोजित
भारतीय दर्शन में महत्वपूर्ण है लौकिक और पारलौकिक का संतुलन- डॉ. अमिता जैन
लाडनूँ, 15 जनवरी 2025। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग में संकाय-संवर्धन कार्यक्रम के अंतर्गत ‘भारतीय ज्ञान परम्परा में लौकिक और पारलौकिक दर्शन’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में डॉ. अमिता जैन ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में गतिशीलता रही है। हमारी संस्कृति कर्म और मोक्ष, भोग और त्याग, ज्ञान और विज्ञान, लौकिक और पारलौकिक के अद्भुत समन्वय से युक्त है। भारतीय ज्ञान परंपरा में लौकिक और पारलौकिक दर्शन दो महत्वपूर्ण धाराएं है, जो जीवन और अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं को समझाने का प्रयास करती हैं। लौकिक दर्शन वह दर्शन है, जो हमारे भौतिक और सामाजिक जीवन से संबंधित है। इसका मुख्य उद्देश्य मनुष्य के सांसारिक जीवन को समझना और उसे बेहतर बनाना है। यह जीवन के सुख, दुःख, कर्म और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है। पारलौकिक दर्शन वह है, जो मानव अस्तित्व के भाौतिक परे के क्षेत्र को समझने की कोशिश करता है। यह अध्यात्म, आत्मा, ब्रह्मा (ईश्वर) और मोक्ष (मुक्ति) की खोज से संबंधित है। पारलौकिक दृष्टिकोण में मानव जीवन के अंतिम उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परम सत्य और आत्मज्ञान की ओर बढ़ने का मार्गदर्शन दिया जाता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय दर्शन में लौकिक और पारलौकिक दोनों का संतुलन महत्वपूर्ण है। भारतीय मनीषियों ने यह समझाया कि यदि व्यक्ति केवल लौकिक जीवन में ही व्यस्त रहेगा, तो उसे आत्मिक शांति और परम उद्देश्य प्राप्त नहीं होगा। इसी तरह, यदि व्यक्ति केवल पारलौकिक सिद्धांतों में ही लीन हो जाएगा, तो उसका भौतिक जीवन अधूरा रहेगा। दोनों का समन्वय अति आवश्यक है। हमारे रीति-रिवाज, मान्यताएं, त्यौहार, पर्व, जयंती, दिवसों से हमारी संस्कृति अक्षुण्ण है, जिससे प्राचीन संस्कृति और सभ्यता बची हुई है। हमारी पुरातन ज्ञान निधि को संरक्षित रखने की आवश्यकता है। व्याख्यान कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन ने कहा कि प्रयागराज में महाकुम्भ हमारे अलौकिक दर्शन का ही उदाहरण है, जहां करोड़ों श्रद्धालुओं का आना-जाना दर्शाता है कि वे सभी अपनी कठोर तपस्या से आत्मशुद्धि, आत्मसंयम द्वारा अपने पाप कर्मों से मुक्ति की ओर अग्रसर हैं। कार्यक्रम में डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. गिरिराज भोजक, देवीलाल कुमावत, डॉ. ममता शर्मा, डॉ. आभा सिंह, स्नेहा शर्मा, खुशाल जांगिड आदि समस्त संकाय सदस्य एवं समस्त विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. गिरधारी लाल शर्मा ने किया।
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