साक्षरता सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है, साक्षर अवश्य बनें

असोटा गांव में कार्यात्मक साक्षरता एवं वयस्क बुनियादी शिक्षा पर विशेष कार्यक्रम आयोजित

लाडनूँ,15 अप्रेल 2025। जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग एवं अहिंसा एवं शांति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में असोटा गांव में कार्यात्मक साक्षरता एवं वयस्क बुनियादी शिक्षा (एबीई) विषयक एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण समुदाय, विशेषतः अशिक्षित वयस्कों को बुनियादी पढ़ना-लिखना सिखाना, रोजमर्रा के जीवन में आवश्यक गणना, स्वच्छता, बैंकिंग एवं स्वास्थ्य जैसी जानकारी से जोड़ना रहा।

वयस्क के पढने पर बनता है पूरा परिवार सशक्त

अहिंसा एवं शांति विभाग के डॉ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने साक्षरता को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बताते हुए कहा कि जब वयस्क लोग पढ़ना-लिखना सीखते हैं, तो पूरा परिवार और समाज सशक्त होता है। उन्होंने ग्रामीणों की कार्यात्मक साक्षरता के उनके दैनिक जीवन में उपयोगी होने के उदाहरण भी प्रस्तुत किए तथा मोबाइल फोन चलाने, दवाइयों की पर्ची पढ़ने, बैंकिंग कार्य करने या सार्वजनिक योजनाओं की जानकारी लेने के लिएउनका लाभ समझाया। शिक्षा विभाग की डॉ. ममता पारीक ने साक्षरता को केवल अक्षर ज्ञान तक सीमित नहीं मानकर आत्मनिर्भरता, आत्म-सम्मान और जागरूक नागरिक बनने की ओर पहला कदम बताया। उन्होंने कहा कि कार्यात्मक साक्षरता ग्रामीणों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों की समझ प्रदान करती है, जिससे वे अपने जीवन की गुणवत्ता सुधार सकते हैं।

घर-घर बांटें पैम्फलेट, ग्रामीणों से किया संवाद

कार्यक्रम के दौरान संस्थान की स्वयंसेविकाओं ने घर-घर जाकर पैम्फलेट वितरित किए, जिनमें कार्यात्मक साक्षरता, हस्ताक्षर करना, संख्याएं पहचानना, बुनियादी शब्दावली, और दैनिक जीवन में उपयोगी छोटे-छोटे गणना कौशल जैसे विषयों को चित्रों और उदाहरणों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था। स्वयंसेविका खुशी जोधा ने इस अभियान के दौरान ग्रामीण महिलाओं और बुजुर्गों को साक्षरता को उनके आत्म-निर्भर जीवन की कुंजी बनने के बारे में सहज भाषा में समझाया। कार्यक्रम में ग्रामीणों ने संवाद करते हुए साक्षरता कक्षाओं में नियमित भाग लेने की इच्छा भी जताई। संस्थान के प्रतिनिधियों ने गांव में साप्ताहिक साक्षरता सत्र प्रारंभ किए जाने और इच्छुक ग्रामीणों को बुनियादी शिक्षा उपलब्ध करवाने की जानकारी दी।

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