जैविभा विश्वविद्यालय में प्रसार भाषण माला में विभिन्न विषयों पर व्याख्यान

विद्या केवल सूचनाएं नहीं, बल्कि जीववन जीने की कला होती है- प्रो. गोपीनाथ शर्मा,

लाडनूँ, 17 अप्रेल 2025। संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर के सेवानिवृत प्रोफेसर गोपीनाथ शर्मा ने कहा है कि भारतीय ज्ञान परंपरा में शैक्षिक परिदृश्य अत्यंत समृद्ध, व्यापक और बहुआयामी है। यह परंपरा न केवल आध्यात्मिकता और दर्शन तक सीमित रही, बल्कि गणित, विज्ञान, चिकित्सा, राजनीति, अर्थशास्त्र, संगीत, कला और भाषा के क्षेत्रों में भी अत्यंत गहन और व्यवस्थित ज्ञान प्रदान करती रही है। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग में आयोजित प्रसार भाषणमाला में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा में शैक्षिक परिदृश्य’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि विद्या केवल सूचना नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला सिखाती है। शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी या जीविका नहीं होकर आत्मबोध, समाजसेवा और मानव कल्याण होना चाहिए। शिक्षा आत्म-नियंत्रण और समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना जगाने का माध्यम है। हमारा व्यवहार, आचरण एवं गुण हमारे व्यक्तित्व को परिलक्षित करते हैं। उन्होंने अनेक उदाहरणों द्वारा शिक्षा के ध्येय को समझाया।

नैतिक व्यक्ति ही बन सकता है अच्छा नागरिक, अच्छा मित्र और एक अच्छा मानव

प्रसार भाषण माला में ही संजय टी.टी. कॉलेज जयपुर के सहायक आचार्य डॉ. भारती विजय ने ‘नैतिकता और नैतिक मूल्य’ विषय पर अपने विचारों में कहा कि नैतिकता सामाजिक नियमों का समन्वय है। गुरु और शिष्य के संबंध में श्रद्धा और विश्वास होता है, जो नैतिकता की नींव है। एक नैतिक व्यक्ति ही एक अच्छा नागरिक, अच्छा मित्र और एक अच्छा मानव बन सकता है। इसी काॅलेज की सहायक आचार्या डॉ. अंजना अग्रवाल ने ‘वास्तविक दुनिया में परियोजना आधारित शिक्षा’ विषय पर बोलते हुए कहा कि यह एक ऐसी शिक्षण विधि है, जिसमें छात्र किसी वास्तविक समस्या पर काम करते हैं, रिसर्च करते हैं, समाधान खोजते हैं और उसे प्रस्तुत करते हैं। बच्चे जब कुछ स्वयं कार्य करते हैं, तो आत्मबल बढ़ता है। इससे पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. बी.एल. जैन ने अतिथियों का स्वागत एवं परिचय प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अमिता जैन ने किया। कार्यक्रम में सभी संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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